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मोहे वास वृन्दावन को

जेहि विधि तोहे अति प्यारी लागो..

तैसी मोहे कीजिये किशोरी मैं तो बार बार ये मांगो..
और न काज कछु का हो सो बस तुम संग ही अनुरागो..
भोरी तेरी रीझ लहन हित ये त्रिभुवन तृण सो त्यागो..

श्री वृन्दावन तोहि करुँ परनाम
रँग भरी केली करत जहाँ नित नित, रँग भरे श्यामा श्याम
रँग भरै यमुना तीर सुहायौ, रँग भरे राजत  धाम
रँग भरी ललित रागनी गावत, रँग भरी  सहचरी वाम
भोरी  ह्रदय  रंग  में  बोरौ, देहु प्रीति निष्काम

मोहे वास सदा वृन्दावन कौ , मैं नित उठ जमुना पुलिन नहाऊँ
गिरि गोवर्धन की दऊँ परिकम्मा , दर्शन कर जीवन सफल बनाऊँ
सेवाकुंज की करूँ आरती , ब्रज की रज में ही मिल जाऊं
ऐसी कृपा करो श्री स्वामिनी , वृन्दावन छोड़ बाहर नहिं जाऊं

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