राधे राधे
🌾🌹आज की "ब्रज रस धारा"🌹🌾
दिनांक 23/12/2015
1. -आनंद कन्द श्री कृष्ण से त्रिभुवन को आनंद प्राप्त होता है परन्तु श्री कृष्ण को आन्दित करती है श्री राधा जी.2. -श्रीकृष्ण का माधुर्य, उनका रूपकोटि-कोटि कामदेव के सौंदर्य को लजाने वाला है, पर श्रीकृष्ण के नेत्र श्रीराधा के अप्रतिम रूप सौंदर्य का दर्शन करके ही शीतल होतेहै.3.-श्रीकृष्ण की कलित-ललित वंशी-ध्वनि चतुर्दश भुवनो को आकर्षित करती है, पर श्रीकृष्ण के कान श्रीराधा के वाक्य सुधा पान से ही तृप्त होते है.4.-श्रीकृष्ण के दिव्य अंग गंध से जगत सुगन्धित होता है, जगत के समस्त मनमोहक सुगंध श्रीकृष्ण के अंग-गंध से ही सुगन्धित है, परन्तु श्रीकृष्ण के प्राण नित्य श्रीराधाके अंग-सुगंध के लोभी बने रहते है.5.-साक्षात् रस रूप रसराज शिरोमणि श्रीकृष्ण के रस से जगत सुरसित है, पर श्रीकृष्ण राधारानी के अधर रस केवशीभूत है.6.-श्री कृष्ण का स्पर्श कोटि-कोटिशशांक (चंद्रमा)सुशीलता ,है किन्तु श्याम सुशीलता प्राप्त करते है श्रीराधा के अंग स्पर्श से इतना सब होने पर भी श्रीराधा के प्रति श्रीकृष्ण की प्रीति अत्यंत प्रबल होने पर भी,श्रीकृष्ण के प्रति राधा की उज्जवल निर्मल प्रीति कही अधिक है.वे अपने विचित्र विभिन्न भाव तरंग रूप अनंत सुख समुद्र में श्रीकृष्ण को नित्य निमग्न रखने वाली महाशक्ति है.ऐसी श्री राधा की महिमाश्रीकृष्ण के अतिरिक्त और कौन कह सकता है.पर वे भी नहीं कह सकते क्योकि राधा गुण स्मृति मात्र से हीवे इतने विहल हो जाते है, कि उनका कंठ रुध जाता है और शब्दोच्चारण ही संभव नहीं होता.फिर हम तो कह ही कैसेसकते है ये उनकी लीला उनके गुण के सागर में से मानो एक बूंद ही है.इतना होने पर भी श्री राधा रानी को देखो न वे विलासमयी रमणी है, न वे कवि ह्रदय की कल्पना है, न उनमे किसीप्रकार का गुण रूप सौंदर्य अभिमान है.धन्य है वे राधा रानी और उनकी कायव्युह रूपा त्याग प्रेम की जीती जागती प्रतिमा श्री गोपीजन और धन्य है वह दिव्य व्रज जहाँ ऐसी दिव्य लीलाएँ होती है.
🌹लाड़ली जी के चरण सेवक🌹 "श्याम सुन्दर गोस्वामी"
बृज रसिक बरसाना धाम
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