🌿🌻~प्रेमावली लीला~🌻🌿
(श्री हित ध्रुवदास जी कृत प्रेमावली लीला - कुल 130 दोहे )
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नैनन बाढ़ी तृषा अति, ज्यों ज्यों देखत रूप।
पानी लागै प्यास जो, कहा करै ढिंग कूप ||16||
श्री प्रिया के रूप को श्री श्यामसुन्दर जितना अधिक देखते हैं उतनी अधिक उनके भेजा की रूप-तृषा बढ़ती है। यदि पानी को ही प्यास लग आवे तो निकट स्थित कुँए से क्या सहायता मिल सकती है ?(प्रेमी की प्रेम तृषा(प्यास) प्रेम पात्र का रूप सौंदर्य देखने से मिटती है। अर्थात् रूप सौंदर्य प्रेम की प्यास को शान्त करने के लिए जल के समान होता है। किंतु यदि रूप दर्शन से यह प्यास शान्त होने के बजाय बढ़ने लगे तो यही कहना होगा कि पानी को प्यास लग उठी है और फिर उसकी शान्ति का कोई उपाय नहीं रहता) ||16||
विटप डार अवलम्ब पिय, ठाड़े चित नहिं चैन।
झलमलात भरे प्रेम रस, झलकत सुन्दर नैन ||17||
इस कभी न मिटने वाली बेचैनी की स्थिति में श्री श्यामसुन्दर श्री वृन्दावन के एक वृक्ष की डाल का सहारा लेकर खड़े हुए हैं। प्रेम-रस के आवेश से उनका सम्पूर्ण अंग झलमला रहा है और उनके सुन्दर नेत्र झलक रहे हैं ||17||
अौर सबै सुख देह के, पिय मन ते गए भूल।
अवलोकत मुख माधुरी, रहे प्रेम रस झूल ||18||
श्री श्यामसुन्दर अपने सम्पूर्ण देह सुखों को भूल गए हैं। वे एकमात्र श्री प्रिया की रूप माधुरी को देखते हुए प्रेम रस में झूल रहे हैं ||18||
हेरि-हेरि हियो गहवरयौ, भरि भरि आवै नैन।
कौन अटपटी मन परी, ध्रुव पै कहत बनैन ||19||
मुख माधुरी का निरन्तर दर्शन करने से उनका हृदय भाव पूर्ण बनता रहता है अौर उनके नेत्र अश्रु पूर्ण बनते रहते हैं। श्री ध्रुव दास कहते हैं कि उनका मन प्रेम के किसी ऐसे पेंच में पड़ गया है जिसका वर्णन करने में मैं असमर्थ हूँ ||19||
चितवन सों चित रँगि रह्यौ, मुसिकन रस बस मैन।
अँग अँग दीप अनंग मनौ, परत पतंग जु नैन ||20||
श्री श्यामसुन्दर का मन श्री प्रिया की चितवन से रँग रहा है अौर उनकी मुस्कान श्री श्यामसुन्दर को प्रेम रस में डुबो रही है। श्री प्रिया के अंग-अंग मानो अनंग के दीपक हैं जिन पर श्री श्यामसुन्दर के नेत्र पतंगों की तरह गिर रहे हैं ||20||
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