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पाती प्रभु के नाम
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हे देव ! ( आपके सिवा ) दीनोंपर दया करनेवाला दूसरा कौन है ? आप शीलके भण्डार, ज्ञानियोंके शिरोमणि, शरणागतोंके प्यारे और आश्रितोंके रक्षक हैं ॥१॥
आपके समान समर्थ कौन है ? आप सब जाननेवाले हैं, सारे चराचरके स्वामी हैं, और शिवजीके प्रेमरुपी मानसरोवरमें ( विहार करनेवाले ) हंस हैं । ( दूसरा ) कौन ऐसा स्वामी है जिसने प्रेमके वश होकर पक्षी ( जटायु ), राक्षस ( विभीषण ), बंदर, भील ( निषाद ) और भालुओंको अपना मित्र बनाया है ? ॥२॥
हे नाथ ! मायाका सारा प्रपंच एवं जीवोंके दोष, गुण, कर्म और काल सब आपके ही हाथ हैं । यह तुलसीदास, भला हो या बुरा, आपका ही है । तनिक इसकी और कृपादृष्टि कर इसे निहाल कर दीजिये ॥३॥
देव ! दूसरो कौन दीनको दयालु ।
सीलानिधान सुजान - सिरोमनि, सरनागत - प्रिये प्रनत - पालु ॥१॥
को समरथ सरबग्य सकल प्रभु, सिव - सनेह - मानस मरालु ।
को साहिब किये मीत प्रीतिबस खग निसिचर कपि भील भालु ॥२॥
नाथ हाथ माया - प्रपंच सब, जीव - दोष - गुन - करम - कालु ।
तुलसिदास भलो पोच रावरो, नेकु निरखि कीजिये निहालु ॥३॥
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