Skip to main content

राधा कुण्ड और कृष्ण कुण्ड की कथा

(राधा कुंड ओर कृष्ण कुंड की कथा..)
कान्हा के लिए राधा के कंगन की खुदाई से बना यह एक कुंड, आज सैकडों आते हैं स्नान करने, धुल जाती हैं बुराइयां
हमारे ब्रज की महिमा अनोखी है। यहां आकर हजारों लोगों को सद्-बुद्घ मिलती है। कान्हा और राधा के पर्वों पर कुंण्डों की शोभा हर किसी को खींच लाती है कि आज हमें यहां स्नान करना है। इनकी रौनक अलग ही है, अलग-अलग ही मान्याताएं हैं। राधा कुंड और कृष्ण कुंड तो दुनियां भर में जाने जाते हैं। गोवर्धन की तलहटी में आज भले ही पिछडे क्षेत्र में तब्दील हो गए हों लेकिन अलौकिकता पहले जैसी ही विद्यमान है। हां हालात ऐसे हैं कि खुद कै.राकेश इंटर कॉलेज में राधाकुण्ड़ के करीब 27 साथी पढते हैं, हमने जाननी चाही उनकी मिटटी़ की खुशबू उन्हें पता ही नहीं था। इसलिए हमने फैसला लिया कि साइट पर हम न केवल हर ब्रजवासी को समझा सकेंगे बल्कि विश्वभर के लोग भी हमें देख सकेंगे। चूंकि ज्ञान बांटने से बंटता है। भारत की हिंदी वेबसाइट भी यहां के विभिन्न मौकों पर प्रस्तुति देने में हिचकेंगी नहीं। हमसे तो राधा-कुंड पांच कोस है, लेकिन पर बाहरी लोगों की नजर से दस इंच भी नहीं। पहले राधा-कृष्ण की कहानी लेते हैं, फिर आवंगे ताल, आप रहें निढाल –
कान्हा ने ऐसे बनाया कृष्ण कुंडः
पुराणों में वर्णन है कि जब श्रीकृष्ण ने कंस के भेजे राक्षस अरिष्टासुर का वध कर दिया। उसके बाद उन्होंने राधा को स्पर्श कर लिया। तब राधा जी उनसे कहने लगी की आप कभी मुझे स्पर्श मत कीजिएगा, क्योंकि आपके सिर पर गौ हत्या का पाप है। आपने मुझे स्पर्श कर लिया है और मैं भी गौ हत्या के पाप में भागीदार बन गई हूं। यह सुनकर श्रीकृष्ण को राधाजी के भोलेपन पर हंसी आ गई। उन्होंने कहा राधे मैंने बैल का नहीं, बल्कि असुर का वध किया है।
तब राधाजी बोलीं आप कुछ भी कहें, लेकिन उस असुर का वेष तो बैल का ही था। इसलिए आपको गौ हत्या के पापी हुए। यह बात सुनकर गोपियां बोली प्रभु जब वत्रासुर की हत्या करने पर इन्द्र को ब्रह्मा हत्या का पाप लगा था तो आपको पाप क्यों नहीं लगेगा।श्रीकृष्ण मुस्कुराकर बोले अच्छा तो आप सब बताइए कि मैं इस पाप से कैसे मुक्त हो सकता हूं। तब राधाजी ने अपनी सखियों के साथ श्रीकृष्ण से कहा जैसा कि हमने सुना है कि सभी तीर्थों में स्नान के बाद ही आप इस पाप से मुक्त हो सकते हैंं।
यह सुनकर श्रीकृष्ण ने अपने पैर को अंगूठे को जमीन की ओर दबाया। पाताल से जल निकल आया। जल देखकर राधा और गोपियां बोली हम विश्वास कैसे करें कि यह तीर्थ की धाराओं का जल है। उनके ऐसा कहने पर सभी तीर्थ की धाराओं ने अपना परिचय दिया। इस तरह कृष्ण कुंड का निर्माण हुआ।
राधा ने कान्हा से कहा छूना मत, फिर कंगन से ऐसे बना राधा कुंडः
जब श्रीकृष्ण ने राधाजी और गोपियों को उस कुंड में स्नान करने को कहा तो वे कहने लगीं कि हम इस गौ हत्या लिप्त पाप कुंड में क्यों स्नान करें। इसमें स्नान करने से हम भी पापी हो जाएंगे। तब श्री राधिका ने अपनी सखियों से कहा कि सखियों हमें अपने लिए एक मनोहर कुंड तैयार करना चाहिए। उस कृष्ण कुंड की पश्चिम दिशा में वृष भासुर के खुर से बने एक गड्ढे को श्री राधिका ने खोदना शुरु किया। गीली मिट्टी को सभी सखियों और राधाजी ने अपने कंगन से खोदकर एक दिव्य सरोवर तैयार कर लिया।
कृष्ण जी ने राधा जी से कहा तुम मेरे कुंड से अपने कुंड में पानी भर लो। तब राधा जी ने भोलेपन से कहा नहीं कान्हा आपके सरोवर का जल अशुद्ध है। हम घड़े-घड़़े करके मानस गंगा के जल से इसे भर लेंगे। राधा जी और सखियों ने कुंड भर लिया, लेकिन जब बारी तीर्थों के आवाहन की आई तो राधा जी को समझ नहीं आया वे क्या करें। उस समय श्रीकृष्ण के कहने पर सभी तीर्थ वहां प्रकट हुए और राधाजी से आज्ञा लेकर उनके कुंड में विद्यमान हो गए। यह देखकर राधा जी कि आंखों से आंसू आ गए और वे प्रेम से श्रीकृष्ण को निहारने लगीं।
अब जो लोग नहीं जानते हैं कि कहां हैं ये दोनों,
गोवर्धन मथुरा का वह क्षेत्र है जहां भगवान् कृष्ण ने पर्वत को धारण कर ब्रजवासियों की रक्षा की थी। राधा व कृष्ण कुंड यहीं हैं।आज के हिसाब में गोवर्धन से लगभग पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह कुंड दुनियाभर के श्रद्धालुओं को अपनी ओर खींचता है। माना जाता है कि राधा और श्रीकृष्ण ने बहुत सारा समय यहां साथ बिताया है। वे इस कुंड में जल क्रीड़ा किया करते थे। ये दोनों ही कुंड गोवर्धन के दोनों ओर दो नेत्रों की तरह स्थित हैं। कार्तिक माह की कृष्णाष्टमी को इन दोनों कुंडों का प्राकट्य हुआ था।
इस एवज में कृष्णाटमी, मुणिया पूर्णमा को यहां मेला लगता है और दूर-दूर से श्रद्धालु इस कुंड में स्नान करने आते हैं। कहते हैं श्रीकृष्ण के द्वारका चले जाने पर ये दोनों कुंड लुप्त हो गए थे। कृष्ण के प्रपौत्र वृजनाभ ने इनका फिर से उद्धार करवाया था। पांच हजार साल के बाद ये कुंड लुप्त हो गए। फिर इनका उद्धार महाप्रभु ने करवाया। महाप्रभु जब यहां आए और लोगों से राधा कुंड व कृष्ण कुंड के बारे में पूछा तो लोगों ने कहा ये तो नहीं पता, लेकिन काली खेत और गौरी खेत नाम की जगह है, जहांं थोड़ा-थोड़ा जल है। उसके बाद इसका पुन: उद्धार हुआ। कहा जाता है कि महाप्रभु इसमें स्नान करते हुए हे राधा-हे कृष्ण कहते हुए जहां बेहोश हो गए थे। वहां आज भी तमालतला नाम का प्रसिद्ध स्थान है

Comments

Popular posts from this blog

युगल स्तुति

॥ युगल स्तुति ॥ जय राधे जय राधे राधे, जय राधे जय श्री राधे। जय कृष्णा जय कृष्णा कृष्णा, जय कृष्णा जय श्री कृष्णा॥ श्यामा गौरी नित्य किशोरी, प्रीतम जोरी श्री राधे। रसिक रसिलौ ...

वृन्दावन शत लीला , धुवदास जु

श्री ध्रुवदास जी कृत बयालीस लीला से उद्घृत श्री वृन्दावन सत लीला प्रथम नाम श्री हरिवंश हित, रत रसना दिन रैन। प्रीति रीति तब पाइये ,अरु श्री वृन्दावन ऐन।।1।। चरण शरण श्री हर...

कहा करुँ बैकुंठ जाय ।

।।श्रीराधे।। कहाँ करूँ वैकुण्ठ जाए.... जहाँ नहीं नंद, जहाँ नहीं यशोदा, जहाँ न गोपी ग्वालन गायें... कहाँ करूँ वैकुण्ठ जाए.... जहाँ नहीं जल जमुना को निर्मल, और नहीं कदम्ब की छाय.... कहाँ ...