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सुनो दयामयि ! करुणामय हे !

सुनो दयामयि ! करुणामय हे ! महाभावरूपा ! रसराज !॥

गोकुलचन्द्र, गोपिकावल्लभ, राधाप्रिय, हे आनँदकन्द !।

दिव्यरसामृत-सरिता जिनके रस-लोलुप सत्‌‌-चित्‌-‌आनन्द॥

मंगलमय यश सुनूँ तुहारा, करूँ नाम-यश-गुण नित गान।

उभय पाद-पद्मोंकी सेवा करूँ नित्य तज सब अभिमान॥

कृष्णप्रिया-शिरोमणि रसमयि ! रसमय प्रभु ! हे श्यामा-श्याम !।

रहै बरसती कृपा तुम्हारी नित्य अधम जनपर अविराम॥

रक्खो सदा शरणमें ही निज इस पामरको विरद विचार।

जर्जर देह-प्राण-मन अब तो रहें न पलभर तुहें बिसार॥

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