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श्याम हमारे प्रेममूलक त्याग

:श्री प्रियाजु सरकार की जय जय !!

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गोपी - सखी के भोग और त्याग दोनों में भग्वत्प्रेम भरा है |
बांई साँ जी (मीरा जी) ने कहा ---

कहो तो मोतियन माँग भरावाँ , कहो तो मुँड मुँडावाँ |
कहो तो कसूमल चुनडि रँगावाँ , भगवाँ बेस बणावाँ ||

जिससे प्रियतम (प्रभु) को सुख , जो प्रियतम को रुचिकारक, जैसी प्रियतम की इच्छा , वही प्रेमी का स्वभाव |

एक उच्च भावमयी नवीन गोपी साधिका ने -- " प्रेम का कैसा रूप होता है , विशुद्ध प्रेम-राज्य में भोग-त्याग का कैसा भाव होता है , उन परम प्रेयसी गोपियों के कैसे भाव-आचरण हैं " --- इसके सम्बन्ध में एक गोपी से पूछा | तब उसे त्यागमय परमानुराग की अधिकारिणी समझकर उस गोपी ने कहा कि हमलेगों को नित्यनिकुंजेश्वरी महाभावरूपा श्री श्यामसुन्दर की अन्तरात्मा श्री राधिका जी ने जो स्वरूप बतलाया था , वह इस प्रकार है --- 

श्याम हमारे बस्त्राभूषण, श्याम हमारे भोजन-पान |
श्याम हमारे घर , घरके सब , श्याम हमारे ममता-मान ||

श्याम हमारे भोग्य , सुभोक्ता, श्याम हमारे कर्त्ता, कर्म |
श्याम हमारे तन-मन-धन सब, श्याम हमारे केवल धर्म ||

श्याम हमारे त्याग, भोग सब, श्याम हमारे श्वासोच्छवास |
श्याम हमारे स्व-पर सभी कुछ,श्याम हमारे सब अभिलाष ||

श्याम हमारे परम् गुप्त निधि, श्याम हमारे प्रकट विभुति |
श्याम हमारे भूत, भविष्यत् , वर्तमान की वाञ्छित भूति ||

श्याम लोक-परलोक हमारे, बन्धन-मोक्ष हमारे श्याम |
श्याम हमारे चरम परम गति, श्याम हमारे चिन्मय धाम ||

श्याम-प्रीति-रुचि-सुख ही केवल एक हमारा सहज सु-रूप |
श्याम सुखार्थ सभी कुछ होता रहता उनके मन-अनुरूप ||

श्याम करावें पूर्ण त्याग, या खुब करावें इन्द्रिय-भोग |
श्याम रखें सब भांति स्वस्थ या दे दें चाहे कठिन कुरोग ||

श्याम कहे तो प्राण त्याग दें सुखपूर्वक अति मन उत्साह |
श्याम कहे तो अमर रहें हम, पूरी हो प्रियतम की चाह ||

श्याम भलें अपमान करावें , करें , करावें या सम्मान |
श्याम सुखी हो जिससे, केवल वही हमारा सच्चा मान ||

श्याम मिले नित रहें, एक पल भी न हमें छोडें, रख राग |
श्याम कभी भी मिलें न हमसे, जीवन में निज भरें विराग ||

श्याम सुखी हो, जैसे ही, है हमें उसी में परमानन्द |
श्याम-चित्त-विपरीत न रहता मन में कभी कहीं आनन्द ||

श्याम-सुखार्थ त्याग यदि होता, उसका रहता हमें न भान |
श्याम-प्रेम से ही सब होता सहज, सरल, सुखमय, गत मान ||

श्याम-प्रीति से भरा हृदय तब कौन करें कैसा अभिमान |
श्याम बन रहे जीवन ही तब किस पर कौन करे अहसान ||

श्याम-प्रेम-फल प्राप्त सर्वथा, कौन परम फल अब अवशेष |
श्याम हेतु सब काम, त्याग का कौन महत्त्व बचा अब शेष ||

श्याम हमारे हैं सबकुछ, हम सदा श्याम की सुख-साधन |
श्याम स्वयं हमसे करवाते रहते निज-सुख-आराधन ||

यें गोपी स्वरूप ! यें भाव जहाँ जिसमें जितना प्रस्फुटित है, उसमें वहाँ उतना ही गोपी भाव का विकास है
... सरल लगता है सरल है नहीं |
अर्थ स्पष्ट ही है | पर फिर भी भावार्थ सहित ऑडियो में भी करेंगें ... सत्यजीत "तृषित"

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