🌿🌻~प्रेमावली लीला~🌻🌿
(श्री हित ध्रुवदास जी कृत प्रेमावली लीला - कुल 130 दोहे )
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मुकुर पानि लिये लाडिली, बैठी सहज सुभाय।
अनियारी अँखियन दियौ, अञ्जन रूचिर बनाय ||31||
सोचि रही तेहि छिन कछू, इत उत चितवत नाँहि।
प्रीतम मन की मृदुलत, गड़ी आय मन माँहि ||32||
लाडिली श्री प्रिया हाथ में दर्पण लिए सहज स्वाभाविक ढंग से विराजमान हैं। दर्पण में देखकर उन्होने अपने कटीले नेत्रों में अञ्जन की रेखा बना तो दी किंतु दूसरे क्षण ही उनको अपने प्रियतम के मन की मृदुलता का स्मरण हो आया और वे इधर उधर देखे बिना सोच विचार में डूब गईं। (श्री प्रिया ने अपने विशाल एवं कटीले नेत्रों में जैसे ही अञ्जन की रेखा बनाई कि नेत्रों का पैनापन और प्रबल हो उठा। उसे देखकर श्री प्रिया का सहज तत्सुख मय प्रेम(प्रियतम के सुख में सुखी रहने वाला प्रेम) यह सोचकर व्याकुल हो उठा कि प्रियतम का मृदुल मन मेरे इन नेत्रों को देखकर बहुत पीडित हो जाएगा अौर वे अधीर हो उठेंगे। यह विचार आते ही उनकी प्रसन्नता नष्ट हो गई और वे विचार में डूब गईं) ||31-32||
प्रेम रूप कौ सुख सहज, सो ध्रुव कहत बनै न।
कै जानै मन तेहि बिंध्यौ, कै समुझें दोऊ नैन ||33||
प्रेम और रूप से प्राप्त होने वाला सुख सहज होता है अौर इसका वर्णन करना संभव नहीं हाेता। इस सुख को या तो वह मन समझता है जो प्रेमरूप के द्वारा विंध चुका हो या दोनों नेत्र समझते हैं ||33||
नित्य सहज दूलह कुँवर, दुलहनि अति सुकुँवारि।
नयौ चाव नित ही रहै, अद्भुत रूप निहारि ||34||
कुँवर श्री श्यामसुन्दर नित्य सहज दूलह हैं और अत्यन्त सुकुमारी श्री राधा नित्य दुलहिन हैं। एक दूसरे के अद्भुत रूप-सौंदर्य को देखकर इन दोनों में नित्य नवीन प्रेम का चाव बना रहता है ||34||
नव किशोर उन्नत सदा, आनन्द की निधि गोभ।
नई अटक की चाँप दिन, परे प्रेम के लोभ ||35||
आनन्द की निधि प्रेम जिसमें अंकुरित हुआ है ऐसी उन्नत नव किशोर अवस्था वाले श्री श्यामाश्याम में नई प्रीति का चाव रात दिन बना रहता है और उनका हृदय प्रेम के लोभ से पूरित रहा आता है ||35||
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