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Showing posts from November, 2016

वृन्दावन सखी , संगिनी जु 10

"दीजो मोहि वास वृन्दावन माही जुगल नाम को भजन निरंतर,और कदंबन छाही।। बृज वासिनः के झूठन टूका,अरु जमुना को पानी। रसिकन को सत्संगति दीजे,सुनिवो रस भरी वाणी। कुंजन को नित डोलि...

वृन्दावन सखी , संगिनी जु 7

युगल सखी-7 "ढूँढ फिरै त्रैलोक जो, बसत कहूँ ध्रुव नाहिं। प्रेम रूप दोऊ एक रस, बसत निकुञ्जन माहिं। तीन लोक चौदह भुवन, प्रेम कहूँ ध्रुव नाहिं। जगमग रह्यो जराव सौ, श्री वृन्दावन म...

वृन्दावन सखी , संगिनी जु 9

युगल सखी-9 "लाड़ लड़ावति सखियन मनभाविनि निहारत नित नव बिनोद बनावति सुशील अति लड़ैंती नेत्र भरि सकुचावै सुंदर श्यामसुंदर टेरि टेरि अकुलावै" अश्रुपुल्क से सखी के नेत्रों से श...

वृन्दावन सखी , संगिनी जु 7

युगल सखी-7 "ढूँढ फिरै त्रैलोक जो, बसत कहूँ ध्रुव नाहिं। प्रेम रूप दोऊ एक रस, बसत निकुञ्जन माहिं। तीन लोक चौदह भुवन, प्रेम कहूँ ध्रुव नाहिं। जगमग रह्यो जराव सौ, श्री वृन्दावन म...

वृन्दावन सखी , संगिनी जु 8

युगल सखी-8 "देखि मनावत मुरली बजावत इक पग मोहन ठाढे।  करत मनावन जतन रिझावन त्यौं तुव अनखनि बाढे।१। अद्भुत सेज रचि हौं इन संग सब सुख तुव रुचि माढे। आकुल तन ये व्याकुल मन तुव एकै ...