"दीजो मोहि वास वृन्दावन माही जुगल नाम को भजन निरंतर,और कदंबन छाही।। बृज वासिनः के झूठन टूका,अरु जमुना को पानी। रसिकन को सत्संगति दीजे,सुनिवो रस भरी वाणी। कुंजन को नित डोलि...
युगल सखी-7 "ढूँढ फिरै त्रैलोक जो, बसत कहूँ ध्रुव नाहिं। प्रेम रूप दोऊ एक रस, बसत निकुञ्जन माहिं। तीन लोक चौदह भुवन, प्रेम कहूँ ध्रुव नाहिं। जगमग रह्यो जराव सौ, श्री वृन्दावन म...
युगल सखी-7 "ढूँढ फिरै त्रैलोक जो, बसत कहूँ ध्रुव नाहिं। प्रेम रूप दोऊ एक रस, बसत निकुञ्जन माहिं। तीन लोक चौदह भुवन, प्रेम कहूँ ध्रुव नाहिं। जगमग रह्यो जराव सौ, श्री वृन्दावन म...