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तेरी बेरूखी हैरां करती है मुझे ये बेखुदी परेशां करती है , ek sangini

: जब-जब सनम की निगाहों के इशारात बदल जाते हैं
तब खुद-ब-खुद दो दिलों के जज्बात बदल जाते है

तेरी बेरूखी हैरां करती है
मुझे ये बेखुदी परेशां करती है

तेरा मुझमें घुल जाना ऐ नशेमन
मेरे जीने की खूबसूरत वजह बनती है

खो कर तुम में पा जाती हूँ खुद को
तुम्हें पा कर मीठी सी दिल की हर सदा लगती है

दूर होकर हर पल खौफज़दा है
दूरी तुमसे तो जिंदगी कज़ा लगती है

तुम जो मिल जाओ तो
आब-ए-हयात है

खो जाओ गर तो बेरंग
हर गज़ल है

रहने दो यूँ प्यासे अब मुझे
ये सपंदन ये सिहरन अब दगा देगी

कुछ रहे ना रहे यहाँ अब
दहकते लावा की राख तो रहेगी

छूना ना अब इसे कभी यूँ
कि ये महोब्बत अब वफा  करेगी

दुरी जो तुम ले आए हो
शुष्क लबों पर ओस खिल उठेगी

कभी अजनबी सी कभी जानी पहचानी सी
जिंदगी रोज मिलती है क़तरा-क़तरा                    

मैं रहूँ या ना रहूँ
तू मुझमें कहीं बाक़ी रहना

अजनबी तुम जाने पहचाने से लगते हो
बेगानों में अपने से लगते हो

हो जाऊँ गर बेवफा कभी तुमसे
तुम तब भी दिल में मेरी जगह रखना

मुझको ये मालूम है लेकिन साथ मेरे कुछ दूर तो चल

चल ना सकुं गर तो तू रूकना ना
छोड़ देना साथ तब राह अपनी बदलना ना

चलते चलते राह में जिसका
साथ हुआ था पल दो पल

आज वो ही गीत तू बना
आज वो ही है तू ग़ज़ल

ये बेनाम सा रिश्ता है
जो है तेरे मेरे दरमियाँ
मुझे बेवजह फिर से
जीने की वजह देता है

हाँ प्रकृति हूंं अंदाज़ बदलती रहती
हर पल लम्हा लम्हा करवट बदलती

पर यकीं मानो तेरे आगोश में आकर
नित नव संवरती रहती

देखो न
ढलती शाम के साथ फ़ैल जाती हैं
ना जाने कितनी यादें मेरे आँगन में

तेरा ही तेरा वजूद लहराता है
घुल जाता है मेरी वजूदियत में

जमाना तो दिलों से खेलता है

और आप कहते हो
लफ्जों से ना खेलुं

दिन भर सजाये आँखों में ख़्वाब
फिर रात भर नींदों को तलाशती फिरी

शतरंज खेल रही है जिंदगी कुछ इस कदर
कभी तेरा इश्क़ मात देता है कभी मेरे लफ्ज़...

कभी दो कदम तुम आगे हो जाते हो
कभी बस मेरे हमकदम बन जाते हो
तेरी मेहरबानियों को क्या बयाँ करूँ
कभी हमसफ़र कभी तू हमराज़ बन जाते हो

मुझे बरसात बनालो
इक लम्बी रात बना लो
और कुछ नहीं तो
जज्बात बनालो
मुझे अपने अल्फाज़ बनालो
दिल की अपने आवाज़ बनालो
गहरा सा इक राज़ बनालो
नशा हूँ मैं बहकने दो
मेरे कातिल मुझे जीने का हक तो दो

हम अल्फाज़ों को ढूंढते रह गए
और वो आँखों से ग़ज़ल कह गए

कभी साथ देने के वादे
कभी भूल जाने की कसमें

मुझे आज तक पता न चला
कि तू मजबूर है या मग़रूर

आज फिर झूठी तसल्ली दी उसने
आज फिर मैंने उम्मीद रखी थी

वो बुरा भी जो कहे तो बुरा लगे ना मुझे
जाने इश्क़ ने क्या पट्टी पढ़ा रखी थी

दूर हो जाऊं तो जरा इंतज़ार करना
अपने दिल में इतना तो ऐतबार करना
लौट के आयेंगे हम अगर कहीं चले भी गए तो
आप बस हमसे ये दोस्ती बरकरार रखना

: या तो तुम खूबसूरत ना होते
या फिर तुम ख़फ़ा कभी ना होते

कुछ और हो न हो
तेरी मेरी खामोशियों में मुलाक़ात जरुर होती है
और सुनो
रात होती है
दिल ही दिल में बात होती है

लिखने को लिखती पूरी रात गज़ल और प्रेम के तराने गाती

पर तेरी ममता और मासुमियत ने मेरे लफ्ज़ों में हया भर दी

कुछ लोग मुझे अपना कहा करते थे
सच कहूं

वो सिर्फ कहा करते थे

एक बात कहूँ कान्हा
अगर सुनते हो
तुम मुझको अच्छे लगते हो
कुछ चंचल से कुछ चुप चुप से
कुछ पागल पागल लगते हो
हैं चाहने वाले और बहुत
पर तुम में है एक बात बहुत
तुम अपने अपने लगते हो
सुनो
एक बात कहूँ
अगर सुनते हो
ये बात बात पर खो जाना
कुछ कहते कहते रूक जाना
इसको ही कहते हैं महोब्बत जाना
एक बात कहूँ
अगर सुनते हो
तुम मुझको अच्छे लगते हो

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