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प्रियाप्रियतम प्रेम निकुँज पर कुछ अभिव्यक्तियां , तृषित

इश्क में खामोशियों के दरवाजे से
ना जाने कौन बात करता है ।
पुछने पर कहता है ... तू ही तो है ...
तब लगता है ओह् ...  मैं ही ... हूँ ।
पर मैंने कभी खुद का शोर न सुना
यह कोई और है जिसे मेरी तन्हाइयों का तसब्बुर रहता है , घड़ी दो घड़ी वो मुझे अपना कह सके ... बोलता है , पर कहता नही मै हूँ ।
उसके लबो पर एक ही लफ्ज़ तू ही तो है ..

इश्क ने उसे ऐसी साजिशें सीखा दी कि साँस मैं लूँ और वो जी सके ।
मुझसे गुफ्तगू भी करता है तो मुझमेँ खोकर

मुझे तो तलब है कारवां अब दफनिस्तान को चलें
और वो चाँद बन कर मेरे अरमाँ रोशन मुझमें करने लगता

उसकी खुशबुओं की याद न दिलाओ आसां न होगा , अभी एक ज़िंदगी गुजारनी है

कभी आये कभी न आये
हमने हर दफ़ा ..
पलकों पर मुलाकातों को सजाया ...
बन्द चिलमन में वो शरारत कर आँख खुला ही जाते
बुझती शब में वो सुबह बन लौट आते

कभी आये कभी न आये
हमने हर दफ़ा ..
पलकों पर मुलाकातों को सजाया ...
बन्द चिलमन में वो शरारत कर निगाह खुला ही जाते
बुझती शब में वो सुबह बन लौट आते

कभी सोचा था अब ना फिर खोलेंगे नैना
बन्द ही की थी कोई बोल गया खोल भी दो ना

देखा तो अहसास दिखा
हर अंग को छूकर गया कोई इतना पास दिखा

फ़क़त यें कौन हुस्न बन गुजर गया मुझमें
काश निगाह कभी तो अपना काम तबीयत से करती

जिन्हें मुहब्बत है वो खूबसूरत है यारों
हम तो किसी की मुहब्बत से बेनिगाह हो बैठे थे
क्योंकि सुना था इश्क अँधा होता है ...

देख भी लेते तुझे
तेरा दीदार भी करते
पर तू न ठहरा
ना ठहरा तेरा हुस्न ...

वो चाँद नहीं
वो चाँद का है चाँद
गर जो चाँद कोई होता
तो दीदारे यार भी होता
मेरी तबियत के लिये उसने
यह चाँद भी बना दिया

मैं उसे ढूंढ रहा हूँ
जिसकी निगाह ने
उसकी खूबसूरती पी ली हो
मेरी निगाह में वो आलम नही
कि दीदारे हुजूर कभी गुस्ताखी भी हो
है किसी की निगाह जिनमें सागर
नजरों का हीरा बन निखरता है

इश्क़ चाहता है तो कुछ ... खामोशियाँ
इश्क़ गुजरता है वहीँ जहाँ कुछ ...
खामोशियाँ

एक तैरता पत्ता जो होता
खुद से टुटा जो होता ...
किसी में उतरा होता ...
समन्दर में कभी गुजरा होता ...

इस दफ़ा मुझसे तो ना होगा
तुमने जो किया ... किया !!
तेरे छूने से होता है असर ...
मेरे छूने से तुम्हें कहाँ होगा ...

तेरी और से आता पानी भी मुझे बहा लें जाता
गर तुम आ गए तो , फिर क्या होगा ?

तुम जैसे भी आओ ना जाया करो
और चले जो तो ... दम भी लें जाया करो

बारिश बाहर बरसती है
मुझमें भीतर भी बरसती है

हवा बाहर जो चलती है
अंदर तक तेरी छुअन गुजरती है

फिर आकाश आग लुटाता है
शायद तभी दिल सुलगता जाता है

काश उस रोज मुझे तेरी नज़र लग जाती
मैं कुछ और देखना भूल ही जाता तो अच्छा होता ...

ऐ मेरे रब ...
हर खूबसूरत कतरे में अक्स तेरा दिख रहा
और ना जाने क्यों हर क़तरा खूबसूरत लग रहा

तुझसे ज़ुदा न रूह ना रूहानियत
हर आलम में वहीँ छिप कर क्यों खेल रहा

इश्क में सब का एक हाल है

कभी सोचा था ...
चिड़िया गुफ्तगू बारी बारी क्यों नही करती । सब संग संग चहचहाती है । सबके दिल में जब एक ही लफ्ज हो एक ही ज़ज्बात क्या बारी ...
क्या इंतज़ार ... जो तुझे कहना वो
ही था मुझे जब कहना , तो चल संग संग मिल कर कहे । कभी जब तू गुम होगी , तभी तो मुझे है गुम होना । इश्क के परिंदों की एक आवाज़ ।।।

इश्क़ के परिंदों की एक आवाज़
वही कहना जो सुन रहे है
सब वही कह रहे है वही सुन रहे है
बड़ी गज़ब होती है इनकी मुलाकातें
एक सा नाच उठता है और
उठती एक सी बातें ...
खामोशियाँ भी गुजरती सब में एक सी
तूने किसी को कुछ पंख दिए
और ऐसी मुहब्बत पिला दी कि वो उड़ गया
पंख तो मैंने भी बहुत बटोरे थे
उन्हें गिरना आता था ना जाने उड़ना कहाँ छुटा था
तेरी हवा - तेरा आकाश -तेरा पंछी - तेरे ही पंख
नाचते नभ पर किसी परिंदे से जब नज़र किसी तरह मिली
साँसों में सवाल बना कर उसकी और फ़ेंका
क्यों उड़ते हो तुम - चुग कर दाना इतना उड़ जाते हो !
कल न मिला यें बिन सोचे तब भी उड़ जाते हो ,
किस का इश्क है जो हवा में खेल जाते हो ,
कभी कभी हवा में रोकते हो जब पंख ऐसा क्या छु जाते हो ,
और थे सवाल बहुत ...
उसने पँखों से उसे पढ़ा
जिसे पसंद नृत्य हमारा उस हेतु हम उड़ जाते है ,
जिसे पसन्द स्वर शब्दहीन हमारा उस हेतु चहचहाते है
जिसने दिया कोई दाना उसे सदा रिझाते है
कभी हवाओं में रूबरू हो जाते है ...
कभी संग-संग नाच जाते है
यह तुम्हारा उत्तर है
सच भी दूर है ...
इश्क के हम परिंदे
इश्क से ही आ हम उतरे
इश्क़ ही हमें उड़ाता है
इश्क़ किसी का हवा में नाच जाता है इश्क़ क़ुदरत सजाता है
इश्क़ ही फ़िज़ा पर फ़िदा हो जाता है हमारा अक्स गुम हो जाता है
कोई है जो इश्क में हर बार उतर जाता है ।
इश्क़ के हम परिन्दे हमारी एक आवाज़ ...

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