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लीला भाव आँचल सखी जु 1

अरे! नीचे झुको न...ठीक से छिपो।
ये राधे किसको कह रही है?
आखिर हो क्या रहा है?
कुछ दूर से ये सब सुनती सखी कुएँ के निकट पहुच झाककर देखती है...
ओहो! ये तो........नंदनंदन।
सब सखियो ने कुएँ को घेर रखा है,आगे स्वयं व पीछे घडे रखे हुए है।
किंतु ये छिप क्यू रहे है?किससे?
इधर उधर देखा....
कुएँ से कुछ दूरी पर नंदबाबा चले आ रहे...
सखी समझ गयी...
तो ये सब बाबा से छिपने की योजना है।
लो बाबा कुएँ के पास पहुच गये.....
कुछ रूककर राधे की ओर देख पूछते है
क्या बात है लाली सब की सब कुएँ को यू घेरकर क्यू खडी हो?
राधे कुछ बोलती,उससे पहले ही एक सखी बोली...बाबा,हम सब पानी भरने आयी थी।
आपको देखा ,तो प्रणाम करने कू रूक गयी।
सीधे सरल सुभाव बाबा सखियो की बात मान मुस्कुराकर आशीष दे चलने को हुए की तभी.....
दूर से चिल्लाते हुए एक सखा वहाँ आया।
ये तो मनसुखा है,बडे क्रोध मे लग रहा।
आते ही गुस्से मे एक सखी से बोला...ऐ!बता कन्हैय्या कहाँ है?
सुनकर बाबा भी यही रूक गये।
हाय! सखियो के तो मानो प्राण ही गले मे अटक गये।
सखी कुछ अकडकर बोली--कन्हैय्या,वो यहा कहाँ...
मनसुखा--अच्छा,लगता है तुम सबने पीछे छिपा रखा है
जरा हटो तो....
सखी कुछ ओर अडते हुए,कहा न..यहा नही है।
ओर एक सखी कुएँ की विपरीत दिशा मे अंगुली से संकेत करती हुई कहती है....शायद कन्हैय्या उस ओर गया है।
ज्यो ही सबका ध्यान उस ओर हुआ राधे चुपके से कन्हैय्या को पीछे से निकाल पास के पेड के पीछे भेज देती है।
फिर मनसुखा बोला--ऐसा है तो हटती क्यू न हो।
इस बार तो बाबा भी कह देते है।
हाँ,लाली दिखा दे न मनसुखा कू....
सखी बोली-दिखा देगी,पर जो कन्हैय्या यहा न मिला तो....मनसुखा को बीस उठ बैठ करनी पडेगी।
मनसुखा को पूरा विश्वास की कन्हैय्या यही है,सो पूरे जोश मे कह दियो..हाँ,मंजूर है।
सब सखिया एक ओर हो गयी....
यहा केवल सखियो के घडे रखे...
बेचारा मनसुखा...फँस गया।
बाबा हसते हुए चले गये।
अब तो सखियो ने चारो ओर से घेर लिया मनसुखा को....
और लगवाई जी भर उठ बैठ।
मनसुखा तो थककर वही गीली भूमि पर ही बैठ गया।
उसे यू देख कन्हैय्या हसते हुए पेड के पीछे से आये,सब सखिया भी मनसुखा का ऐसा हाल देख हसी से लोट पोट हो रही।
कन्हैय्या दूर से ही बोले...रे!मनसुखा..
मनसुखा तो बस इतना ही सुना की झट से उसने
पास पडा मिट्टी का ढेला उठा लिया....
कन्हैय्या भागे...
मनसुखा पीछे पीछे मिट्टी का ढेला लिए चिल्लाता हुआ....रूक तू,रूक जा कन्हैय्या......
सब सखिया दोनो को यू भागते देख...अपने अपने मुख को आंचल से छिपा जोरो से हँसने लगती है।

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