यशोमती मईया पहले ही गोपियों की शिकायतों से कन्हैया के लिए परेशान हैं।आए दिन कभी कोई तो कभी कोई गोपी मईया से कान्हा की शिकायत करती हैं और ताना मारती हैं कि माँ के लाड़ प्यार ने ही कन्हैया को सर चढ़ा रखा है।हालाँकि नंदबाबा और गोपसखा सब मुस्करा ही देते हैं माँ और गोपियों की नोंक झोंक पर और लल्ला की शैतानियों पर भी।
सुबह एक गोपी आई और बोल गई कि मईया तेरे लाल ने मेरी मटकी फोड़ डाली है।मईया कान्हा को समझाती है।फिर दूसरी आती और कहती मईया तेरे लाड़ले ने मेरे घर माखन चुराया और खुद भी खाया व बालसखाओं के साथ साथ बंदरों को भी खिलाया।पूरा घर तहस नहस पड़ा है।इस पर तो मईया खीज कर बोली
अरी तूझे कैसे पता लल्ला ने ही माखन की मटकी फोड़ी तेरे भी तो लाल है उसने फोड़ी होगी और सबने मिल कर खाया होगा।घर आंगन बिगड़ा है तो यहाँ क्यों कर खड़ी है जा के काम लग और साफ सफाई कर ले।उधर वो गोपी कन्हैया की आँखों में आँखें डाल खड़ी है स्तब्ध सी।मईया फिर बोलती है कि तेरे से नहीं होता तो अपने बेटे को और उसके सखाओं को साथ लगा ले।पर वो गोपी है कि कुछ नहीं देखती सोचती और झट से बोल पड़ती है कि हाँ यशोदा अपना लल्ला देदे मोकू, याके संग संग सब ठीक कर लेऊंगी।गोपी अभी भी मंत्रमुग्ध सी खड़ी श्यामसुंदर को ही निहार रही है कि उसे देख तमाम कार्यकर्ता ,नंदबाबा व मईया ज़ोर ज़ोर से हंसने लगते हैं और गोपी ये देख नजरें झुकाए वहाँ से चली जाती है।इस पर बाहर द्वार की तरफ जाती गोपी को कान्हा व बलदाऊ भैया रोक लेते हैं और उसे और अधिक चिढ़ाने लगते हैं।
यूँही आए दिन कोई ना कोई गोपी मईया से कान्हा की शिकायत करती है और खूब उत्पात मचता है।कभी माँ खीज जाती है तो कभी रीझ जाती है इन सब बाललीलाओं पर।
पर अब तो हद ही हो गई।तब तो कान्हा बालक थे तो मईया का रवईया भी बालपन की अठकेलियों को समझता था।पर अब कान्हा बड़े हो चुके हैं।अब उनकी शरारतें भी बड़ी हो गई हैं।लड़कपन वाली।
अब तो मईया को लाला की हरकतों का कोई इलाज ही समझ नहीं आता ना।छोटे थे तो लाठी पकड़ पीछे भागती थी पर अब क्या करे।कभी कभी जो रो देती है तो कन्हैया कान पकड़ माफी मांगते हैं और मईया को रिझाते हैं।
अब कान्हा कन्हैया या लल्ला नहीं रहे ना।हुआ कुछ यूँ कि एक दिन एक गोपी अपनी बिटिया को ले आई और मईया के सामने पूछती है
अरी बता तो इन दोनों में से कौन छेड़े है री तोहे राह में तो वो बालिका श्यामसुंदर जु की तरफ उंगली उठा देती है।
लो हो गई हद।मईया को तो विश्वास ही नहीं कि लल्ला ऐसा कर सकता है ये तो बड़ो भोलो सो है।खूब फटकार लगा कर गोपी को भगा देती है वहाँ से।
कुछ दिन बाद फिर ऐसा ही हुआ तो मईया को अब अपने लाल पर शक होने लगा पर फिर भी मईया ने कहा मैं तो जब तक आँखों से ना देखुं तब तक ना मानूंगी।
एक दिन तो और भी हद हो गई।एक सास अपनी नव बियाही बहु को ही ले आई और कहती तेरे कन्हैया ने मेरी बहु का मुख देखने के लिए पहले तो उस पर कंकर मारा,फिर मटकी भी फोड़ी।ये फिर भी ना मानी तो उसका घूंघट ही उठा दिया।अब आज तो कान्हा की खैर नहीं।नई नवेली बहुरिया को तो माई कुछ कह ही ना सके है तो बुला भेजा कान्हा और उसके सखाओं को।आज कौन बचाएगा कन्हैया को।
हालत सबकी खस्ता है।सब डर रहे हैं आज मईया से।पर श्यामसुंदर से कौन जीत सकता है।वो जानते हैं कि जब उस रोज़ सखी ने कान्हा जु को देखा तो वो खुद ही सटक गई थी इनकी श्यामल रूप माधुरी पर।तो आज जब माई उसकी सास को बहका फुसला रही है और उसकी खूब आवभगत कर रही है तो कन्हैया चुपके से उस नवनवेली दुल्हन सखी का हाथ थाम लेते हैं।
बस फिर क्या था वो तो गई काम से।श्यामसुंदर जु उसे वहाँ से हटा कर अपने एक गोपसखा को दुल्हन का लिबास पहना देते हैं और उसकी जगह खड़े कर देते हैं।बाहर ले जाकर सखी को दुलराकर घर भेज देते हैं।
भीतर आते ही जब मईया श्यामसुंदर जु से पूछती हैं तो वो साफ मुकुर जाते हैं और सासु माँ को झूठा साबित करने के लिए दुल्हन का मुख मईया को दिखाने के लिए कहते हैं और साथ ही उसे मुँह दिखाई भी देंगे ऐसा कह बात भी मनवा लेते हैं।अब जैसे ही सखी के मुख से चुनरी हटातीं हैं उसकी सास तब तो पूरे नंदभवन में हंसी के ठहाके ही फूट पड़ते हैं और दुल्हन बना सखा तो मईया को बहकाने के लिए बंदर सा कूद कूद कर नाच दिखाने लगता है।मईया तो हस हस कर झल्ला गई है और सासु जी तो खुद अपना मुख छुपा कर वहाँ से भाग निकलती है।जाते जाते जब वो कान्हा जु की तरफ देखती है तो गुस्सा भूल हंसती हुई लौट जाती है।
ऐसी ऐसी तो करामातें करते हैं श्यामसुंदर जु कि शिकायत करने के लिए आई गोपी व मईया सब भूल ही बैठतीं हैं।
लेकिन कुछ भी हो आखिर कितने दिन कान्हा जी माँ की नज़र से छुपे रहते।वो दिन आ ही जाता है जब मईया कान्हा जु को रंगे हाथों पकड़ लेतीं हैं और सखी के साथ बैठे देख ही लेती है।मुख तो वो देख नहीं पातीं पर श्यामसुंदर जु को कानों से पकड़ वहाँ से उठा लाती है और खूब डांट लगाती हैं।
कहती हैं कि बातें तो तू करता है राधे की और यहाँ किसके साथ तू यूँ बैठा है और रोते रोते ये भी कह देतीं हैं कि गाँव वाले सब सच ही कहते होंगे वो तो मैं ही अंधी हूँ जो किसी की आँखों देखी को भी झुठला देती हूँ।बस फिर तो कान्हा को मईया के बहते आंसु बहा ही देते हैं।वे बहुत सी प्यार मनुहार भरी चिकनी चुपड़ी बातों से मईया को समझाते हैं पर माई नहीं मानती।फिर वो कभी कान पकड़ कर तो कभी मईया के पैर पड़कर मनाने का प्रयास करते हैं।पर आज तो माँ ने हठ ही ठान ली हो कि कान्हा की एक ना सुनुंगी।
अब क्या हो ये सोच कन्हैया माँ से झूठ ही कह देते हैं कि मईया तू नहीं जानती है वो राधे ही तो थीं।तूने उनका मुख तो देख्यो ही ना और मोहे कान पकड़ यहाँ ले आई।क्या सोचती होगी तेरी होने वाली बहु बता।
उल्टा चोर कोतवाल को डांटे।
मईया भी कम ना थी बोली चल दिखा।
कान्हा जु एक बार तो डर गए पर फिर बोले माँ तू मोकू और अधिक शर्मिन्दा करनो चाहवे है ना।पर माँ भी हठ जो किए बैठीं हैं और कहती हैं मैं तो मुख देख कर ही रहूंगी।ये सुन अंदर खड़ी सखी के तो पसीने छूट जाते हैं पर श्यामसुंदर जु बड़ी चतुराई से मईया को भीतर जाने को कह देते हैं।उन्हें लगा कि अब तक तो वो वैसे भी भाग ही गई होगी।
आश्चर्य।।भीतर कोई है जिसे माँ लाड़ लड़ा रही है।जैसे ही श्यामसुंदर जु भीतर झांकते हैं तो मईया तो राधे जु को कंठ लगाए खड़ी हैं।राधे जु श्याम जु को देख मुस्करा देती हैं पर श्यामसुंदर जु की आँखों में अश्रु आ जाते हैं।
जय जय श्री राधे
पाकीज़ा मोहब्बत की कहानियाँ अच्छी लगती हैं
उस बेवफ़ा की हुई बदनामियाँ अच्छी लगती हैं
छुपा लेती हूँ मैं खुद को दूसरों की नज़रों से
मुझे महफिल में गुमनामियाँ अच्छीलगती हैं
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