रसमयी भावनाएं - श्रीया दीदी
अपने कान्हा से जब-जब भी हम अपना मुक़द्दर माँगेंगे
और भले ही कुछ न माँगें, उन्हें ही उम्र-भर माँगेंगे ।
अब के सावन से हम भी फूलों का बिस्तर माँगेंगे
जब दरस होगा, उनके संग अपना घर माँगेंगे ।
अब की बार घटाएँ जब भी घर की छत पर उतरेंगी,
अपनी प्यास सामने रख कर सात-समन्दर माँगेंगे ।
खोना-पाना एक बराबर जिसमे हो महसूस हमें,
हम अपने महबूब से ऐसा जादू-मन्तर माँगेंगे ।
इश्क़ हुआ था जिस लम्हा हम तब ही जान गए थे ये,
कटा हुआ अपना सर देकर, झुका हुआ सर माँगेंगे ।
मील का पत्थर तुम कहलाओ यही दुआ देकर तुमको,
हम अपने ख़्वाबों की ख़ातिर नींव का पत्थर माँगेंगे ।
जिनमे प्यार के तिनके-तिनके जोड़ के रक्खें जाते हैं,
हवा दिखाए ख़ौफ़ भले हम वो ही छप्पर माँगेंगे ।
जहाँ जाकर सब ग़ज़लें-नज़्म ख़त्म होतें हैं,
उनके इश्क़ में डूब कर सखियों, ऐसा मंज़र माँगेंगे
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सारे दर्द उठा के रख लूँ ।
ख़ुद में तुझे छिपा के रख लूँ ।
ख़िदमत से मिलती है दुआएँ,
मैं ये दौलत कमा के रख लूँ ।
कभी तो थक के लौटेगा तू कान्हा
आ कुछ साँसे बचा के रख लूँ ।
कड़ी धूप में काम आएँगे,
ख़्वाब सुहाने सजा के रख लूँ ।
तुझे दिखाने होंगे इक दिन,
साथ में मोती वफ़ा के रख लूँ ।
गर तेरी ख्वाहिश बन जाऊँ,
मैं हर ख्वाहिश दबा के रख लूँ ।
देख के तुझको जी करता है,
तुझको तुझसे चुरा के रख लूँ ।
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ना तो मैं हूँ, ना ही मेरी परछाई है ।
मुझमें कैसी मुसकाती छवि उतर आई है ।
चाँद, सितारे डर कर जाने कहाँ छिप गए,
घर की छत पर मैं हूँ मेरी तन्हाई है ।
सन्नाटों के ख़ाली कुए क़ैद हैं मुझमें,
बाहर चारों और मेरे श्याम नाम की खाई है ।
पीछे-पीछे सच मेरा चलता है पैदल,
आगे-आगे दौड़ने वाली रुसवाई है ।
बदन के अन्दर बेलिबास मेरा ज़मीर है,
बदन के बाहर पूरा शहर तमाशाई है ।
ढलने को है उम्मीदों की शाम भी अब तो,
औ' कम होती जाती मेरी नज़्म-रुबाई है ।
नाप पाएगा कैसे कोई तेरे वजूद को,
तेरे ऊँचाई से ज़्यादा तेरी गहराई है ।
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वो तुम्हें गर जुबांन दे देगा ।
ये भी तय है कि जान दे देगा ।
यूँ तो रहता है वो फ़कीराना,
पर वो दोनों जहान दे देगा ।
वो तो प्रेम का दरिया है,
अपना हर इम्तिहान दे देगा ।
सिर्फ़ छूएगा तुमको हँस कर वो,
उम्र भर के निशान दे देगा ।
पंख ख़ुद ही जुटाएँगे पंछी,
वो तो बस आसमान दे देगा ।
उसके हाथों में ऐसा जादू है,
पत्थरों को उड़ान दे देगा ।
फ़ैसला हाथ में है गिरधर के,
वो गवाह है बयान दे देगा ।
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वो समन्दर मुझे दिखाता है ।
फिर मेरा सब्र आज़माता है ।
पहले पत्थर हमें डराते थे,
अब हमें आईना डराता है ।
तैरना तू सिखा गिरधर अब,
डूबना तो हमें भी आता है ।
कोई और चेहरा न दिखा, न बहला हमको
तेरे चेहरे के शिवा और कहाँ कोई भाता है
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तुझसे जुदा हो जाना उलझन जैसा है ।
ये ख़याल भी अब तो दुश्मन जैसा है ।
साथ चलूँ तो लगे हमसफ़र जैसा तू,
मुड़कर मैं देखूँ तो बचपन जैसा है ।
साँसों में ’दिन-रात’ महकते रहते हैं,
कोई तो है जो मुझमें चन्दन जैसा है ।
दिन तो लगता है जैसे क़व्वाली हो,
रात में तेरा नाम कीर्तन जैसा है ।
करे अगर महसूस तो हर अहसास मेरा,
वृंदावन के महकते मधुवन जैसा है ।
झुलसे हुए बदन और जलते मौसम में,
मुझमें तेरा होना सावन जैसा है ।
आकर जबसे तूने पहना है मुझको,
बदन मेरा बस किसी पैरहन जैसा है ।
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