Skip to main content

श्रेया दीदी के कुछ और सुंदर भाव

रसमयी भावनाएं - श्रीया दीदी

अपने कान्हा से जब-जब भी हम अपना मुक़द्दर माँगेंगे
और भले ही कुछ न माँगें, उन्हें ही उम्र-भर माँगेंगे ।

अब के सावन से हम भी फूलों का बिस्तर माँगेंगे
जब दरस होगा, उनके संग अपना घर माँगेंगे ।

अब की बार घटाएँ जब भी घर की छत पर उतरेंगी,
अपनी प्यास सामने रख कर सात-समन्दर माँगेंगे ।

खोना-पाना एक बराबर जिसमे हो महसूस हमें,
हम अपने महबूब से ऐसा जादू-मन्तर माँगेंगे ।

इश्क़ हुआ था जिस लम्हा हम तब ही जान गए थे ये,
कटा हुआ अपना सर देकर, झुका हुआ सर माँगेंगे ।

मील का पत्थर तुम कहलाओ यही दुआ देकर तुमको,
हम अपने ख़्वाबों की ख़ातिर नींव का पत्थर माँगेंगे ।

जिनमे प्यार के तिनके-तिनके जोड़ के रक्खें जाते हैं,
हवा दिखाए ख़ौफ़ भले हम वो ही छप्पर माँगेंगे ।

जहाँ जाकर सब ग़ज़लें-नज़्म ख़त्म होतें हैं,
उनके इश्क़ में डूब कर सखियों, ऐसा मंज़र माँगेंगे

***    ****   ***

सारे दर्द उठा के रख लूँ ।
ख़ुद में तुझे छिपा के रख लूँ ।

ख़िदमत से मिलती है दुआएँ,
मैं ये दौलत कमा के रख लूँ ।

कभी तो थक के लौटेगा तू कान्हा
आ कुछ साँसे बचा के रख लूँ ।

कड़ी धूप में काम आएँगे,
ख़्वाब सुहाने सजा के रख लूँ ।

तुझे दिखाने होंगे इक दिन,
साथ में मोती वफ़ा के रख लूँ ।

गर तेरी ख्वाहिश बन जाऊँ,
मैं हर ख्वाहिश दबा के रख लूँ ।

देख के तुझको जी करता है,
तुझको तुझसे चुरा के रख लूँ ।

***    ****    ***

ना तो मैं हूँ, ना ही मेरी परछाई है ।
मुझमें कैसी मुसकाती छवि उतर आई है ।

चाँद, सितारे डर कर जाने कहाँ छिप गए,
घर की छत पर मैं हूँ मेरी तन्हाई है ।

सन्नाटों के ख़ाली कुए क़ैद हैं मुझमें,
बाहर चारों और मेरे श्याम नाम की खाई है ।

पीछे-पीछे सच मेरा चलता है पैदल,
आगे-आगे दौड़ने वाली रुसवाई है ।

बदन के अन्दर बेलिबास मेरा ज़मीर है,
बदन के बाहर पूरा शहर तमाशाई है ।

ढलने को है उम्मीदों की शाम भी अब तो,
औ' कम होती जाती मेरी नज़्म-रुबाई है ।

नाप पाएगा कैसे कोई तेरे वजूद को,
तेरे ऊँचाई से ज़्यादा तेरी गहराई है ।

***   ****

वो तुम्हें गर जुबांन दे देगा ।
ये भी तय है कि जान दे देगा ।

यूँ तो रहता है वो फ़कीराना,
पर वो दोनों जहान दे देगा ।

वो तो प्रेम का दरिया है,
अपना हर इम्तिहान दे देगा ।

सिर्फ़ छूएगा तुमको हँस कर वो,
उम्र भर के निशान दे देगा ।

पंख ख़ुद ही जुटाएँगे पंछी,
वो तो बस आसमान दे देगा ।

उसके हाथों में ऐसा जादू है,
पत्थरों को उड़ान दे देगा ।

फ़ैसला हाथ में है गिरधर के,
वो गवाह है बयान दे देगा ।

***   ****
वो समन्दर मुझे दिखाता है ।
फिर मेरा सब्र आज़माता है ।

पहले पत्थर हमें डराते थे,
अब हमें आईना डराता है ।

तैरना तू सिखा गिरधर अब,
डूबना तो हमें भी आता है ।

कोई और चेहरा न दिखा, न बहला हमको
तेरे चेहरे के शिवा और कहाँ कोई भाता है

***
तुझसे जुदा हो जाना उलझन जैसा है ।
ये ख़याल भी अब तो दुश्मन जैसा है ।

साथ चलूँ तो लगे हमसफ़र जैसा तू,
मुड़कर मैं देखूँ तो बचपन जैसा है ।

साँसों में ’दिन-रात’ महकते रहते हैं,
कोई तो है जो मुझमें चन्दन जैसा है ।

दिन तो लगता है जैसे क़व्वाली हो,
रात में तेरा नाम कीर्तन जैसा है ।

करे अगर महसूस तो हर अहसास मेरा,
वृंदावन के महकते मधुवन जैसा है ।

झुलसे हुए बदन और जलते मौसम में,
मुझमें तेरा होना सावन जैसा है ।

आकर जबसे तूने पहना है मुझको,
बदन मेरा बस किसी पैरहन जैसा है ।

Comments

Popular posts from this blog

युगल स्तुति

॥ युगल स्तुति ॥ जय राधे जय राधे राधे, जय राधे जय श्री राधे। जय कृष्णा जय कृष्णा कृष्णा, जय कृष्णा जय श्री कृष्णा॥ श्यामा गौरी नित्य किशोरी, प्रीतम जोरी श्री राधे। रसिक रसिलौ ...

वृन्दावन शत लीला , धुवदास जु

श्री ध्रुवदास जी कृत बयालीस लीला से उद्घृत श्री वृन्दावन सत लीला प्रथम नाम श्री हरिवंश हित, रत रसना दिन रैन। प्रीति रीति तब पाइये ,अरु श्री वृन्दावन ऐन।।1।। चरण शरण श्री हर...

कहा करुँ बैकुंठ जाय ।

।।श्रीराधे।। कहाँ करूँ वैकुण्ठ जाए.... जहाँ नहीं नंद, जहाँ नहीं यशोदा, जहाँ न गोपी ग्वालन गायें... कहाँ करूँ वैकुण्ठ जाए.... जहाँ नहीं जल जमुना को निर्मल, और नहीं कदम्ब की छाय.... कहाँ ...