तुम्हीं हो मेरे सब कुछ स्याम।
तुम्हें छोड़ है कहीं न कुछ भी, तुम सब के निज धाम।
तुम ही साधन-सिद्धि प्राणधन! तुम ही मेरे साध्य।
तुम ही मेरे ज्ञान-ध्यान हो, तुम ही परमाराध्य।
तुम्हें पाकर मैं हुआ अकाम।
तुम ही मेरी भक्ति-शक्ति हो, तुम ही राग-विराग।
तुम हो तन-मन-प्राण प्राण-प्रिय! तुम ही भाग-सुहाग।
तुम्हींमे पाते सब विश्राम।
तुम ही मेरे स्वधन-स्वजन हो, तुम ही पुत्र-कलत्र।
तुम ही सुहृद् शत्रु भी तुम ही, तुम ही प्रियतम मित्र।
तुम्हें तजि अपना और न श्याम।
तुम ही गुरु शिष्य भी तुम ही, तुम ही शासन-शास्त्र।
तुम ही से अनुशासित होते प्रियतम! प्राणीमात्र।
तुम्हीं हो मेरे परमाराम।
तुम ही ‘मैं’ तुम ही ‘तुम’ प्यारे! ‘मैं-तुम’ के आधार।
मैं तुमका भी लेश न जिसमें वह तुम हो अविकार।
कहूँ कैसे प्रिय! तव गुणग्राम।
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