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श्यामसुन्दर का चरणों पर मेहँदी लगाना , संगिनी

सुंदर पुष्प वाटिका निकुंज में तमाल तले छांव में श्यामा जु बैठी हैं अपने प्राणप्रियतम के समक्ष लजाई शरमाई सी।श्यामसुंदर प्यारी प्रियतमा के चरणों पर मेहंदी लगा रहे हैं।
श्यामा जु ने घुटनों तक अपने लहंगे को दोनों हाथों से थाम रखा है।वे जानती हैं कि श्यामसुंदर जु जावक लगाने में अत्यधिक व्यस्त हैं और वो ऊपर नजरें उठाकर नहीं देख रहे।तो आज प्रिया जु टकटकी लगाए प्यारे जु को निहार रहीं हैं।सुंदर सुंदर श्यामसुंदर इस समय उन्हें इतने प्रिय लग रहे हैं कि वो उनके मुख के एक एक हाव भाव को बड़े स्नेह से भीतर उतार रहीं हैं।श्यामसुंदर जु की कजरारी गहरी आँखों में डूब ही जातीं हैं और जैसे ही श्याम जु तनिक उनकी तरफ देखते हैं तो वे झट से नजरें झुका लेतीं हैं शर्माकर।श्यामसुंदर जु जानते हैं आज प्रिया जु की मतवारी चित्तवन को इसलिए मुस्करा कर वो फिर अपना काम करने लगते हैं।श्यामा जु धीरे धीरे फिर से पलकें उठातीं हुईं श्यामसुंदर जु को निहारती हैं।उनके रसस्कित अधर श्याम जु के लाल अधरों पर नज़र पड़ते ही तिलमिलाने लगते हैं पर वो खुद को काबू में रखते हुए बुला उठतीं हैं निकुंज द्वार पर खड़ी एक सखी को जो कब से यही चाह रही है कि श्यामा जु उसे भीतर आने की आज्ञा दें।
प्यारी सखी धीरे से पग वाटिका में रखते हुए श्यामा जु के समीप जा बैठती है।उनके चरणों पर तो मेहंदी रचना हो रही है ये देख वो भूमि पर नतमस्तक बैठ श्यामा जु के हाथ को ही चूम लेती है।इतने पर श्यामसुंदर जु मुस्करा कर उस सखी की ओर देखते हैं और फिर श्यामा जु को।
प्रिया जु जावक लगवातीं कुछ श्रमित सी होने लगतीं हैं तो वो सखी उनके हाथों उनके लहंगे को छुड़ा खुद पकड़ लेती है।श्यामा जु अपने हाथों को फैलाती हुई आँखों ही आँखों में सखी से सुकून मिलने का इशारा करतीं हुईं मुस्करा देती है।
श्यामसुंदर जु जावक रचना करते करते चरणों से ऊपर की और बढ़ते हुए उनके घुटनों तक सुंदर चित्र बनाते जा रहे हैं और बीच बीच में जाल की जगह वे बेल लता बना रहे हैं।अद्भुत जावक संरचना हैं लाल जु की।बहुत ही मनमोहक उनके ही जैसी।
अब श्यामसुंदर जु अपनी जगह से उठते हैं और श्यामा जु के पास उनके हाथ पर मेहंदी लगाने के लिए उनके पास आ बैठते हैं।सखी भी लहंगे को ऊपर की तरफ मोड़ती हुई श्यामा जु की टांगों को आराम मिले ये सोच उन्हें थोड़ा नीचे की तरफ झुकाव देती है।
श्यामसुंदर जु राधे जु की कोमल कलाईयों पर मेहंदी लगा रहे हैं और वो सखी पास ही राधे जु के श्रम को ध्यान में रखती हुई उनके हाथ व भुजा के ऊपरी भाग को सहारा देते हुए दोनों हाथों से उन्हें थाम लेती है।
श्यामसुंदर जु गहरे भाव में उतरे हैं और बड़ी ही सुंदर पुष्प बनाते हुए साथ ही श्यामा जु के हाथ पर उनका ही चित्र बना देते हैं।पर ये क्या श्यामा जु तो अभी भी टकटकी लगाए अपने प्राणप्रियतम को ही देख रही हैं।उनको ध्यान ही नहीं है कि श्यामसुंदर जु उन्हें मेहंदी भी लगा रहे हैं।पवन के झोंके से उड़ एक लट श्यामसुंदर जु के कपोलों पर आ उन्हें परेशान करने लगती है तो श्यामा जु झट उसे हटा देतीं हैं जिनकी छुअन से प्रिय श्यामसुंदर जु तनिक सिहर उठते हैं और श्यामा जु की तरफ देखते हैं।प्रिया जु फिर से नज़र झुका लेतीं हैं।ऐसे ही श्यामसुंदर जु राधे जु की गोरी कलाईयों से ऊपर जाते हुए बांह के ऊपरी हिस्से तक मेहंदी लगाते हैं और सरकते हुए श्यामा जु के मुख के पास उनकी महकती श्वासों का व मुख माधुरी का अपने नयनों से पान करने लगते हैं।वे खोए खोए से श्यामा जु के रसीले लाल अधरों को देख लालायित से हो उठते हैं पर श्यामा जु तनिक मुख फेरते हुए सखी की तरफ इशारा कर देतीं हैं।श्यामसुंदर जु देखते हैं कि सखी तो आँखें मूंदे खड़ी मुस्करा रही है जिसे देख वे हंस देते हैं और फिर दूसरे हाथ की तरफ उठ कर जाते हैं व जाते जाते सखी को आँखें खोल लेने के लिए कहते हैं जिसे सुन सखी लजा जाती है।वो श्यामा जु के दूसरे हाथ को अब सहारा देती है।
श्यामा जु थोड़ा सरक कर श्यामसुंदर जु को पास ही बैठने की जगह देतीं हैं।इस बीच एक सखी जल पात्र व ताम्बूल व कुछ फल ले वहाँ आती है और अंतराल में श्यामा जु को खाने के लिए कहती है।श्यामा जु हाँ में सर हिलाती हुई सखी को प्रिय श्यामसुंदर जु के हाथ से मेहंदी का पात्र पकड़ने को कहतीं हैं पर श्यामसुंदर जु तो पहले मेहंदी ही रचाऐंगे और श्यामा जु उनकी अंतर्मन की जान उन्हें अपने हाथ से खिलातीं हैं।
कुछ ही समय में मेहंदी रचने की सेवा पूर्ण होती है पर श्यामा जु कान्हा जु से उनका नाम भी अपने हाथ पर लिखने का आग्रह करतीं हैं तो श्यामसुंदर जु लाल महावर ले उससे अपना नाम प्रियालाल लिखते हुए मुस्करा देते हैं क्योंकि उन्होंने अपने साथ प्रिया जु का नाम भी जोड़ दिया है।
श्यामसुंदर व श्यामा जु अब दोनों साथ बैठे जुड़ कर बैठे हैं और श्यामा जु उनके द्वारा लगाई गई मेहंदी की खूब तारीफ कर रहीं हैं और कहीं हैं श्याम जी मेरा तो मन करता है कि आप मेरे पूरे तन पर जावक लगाएँ और हर एक एक अंग पर अपना ही नाम लिखें।ये कहते कहते श्यामा जु कंपित हो जातीं हैं।श्यामसुंदर जु भी झट से बोल पड़ते हैं क्या सच श्यामा जु।तब तो अगली बार के लिए ये तय रहा।श्यामा जु शर्मा जातीं हैं।
जावक लगते ही सखियां प्रियाप्रियतम जु के लिए भोजन ले आतीं हैं और पीछे खड़ी सखी उन्हें चंवर डुराने लगती है।सब सखियां वहीं बैठ कोई मेहंदी की सामग्री समेटने लगती है तो कोई भिन्न भिन्न पात्र लिए खड़ी हैं।कान्हा जु खुद अपने हाथ से प्रिया जु के लिया खाना परोसते हैं व उन्हें छोटे छोटे ग्रास अपने हाथों से  खिलाने लगते हैं।श्यामा जु शर्माती सी कभी मुख खोल देतीं हैं तो कभी वही अधरों से छुआ निवाला श्यामसुंदर जु को भी खाने के लिए आग्रह करतीं हैं।
ऐसे ही बड़े प्रेम से लाल जु प्रिया जु को छोटे छोटे कोर खिलाते जा रहे हैं और अचानक एक कोर अपने हाथ में लिए उसी सखी के मुख की ओर बढ़ा देते हैं।सखी पहले तो थोड़ा पीछे हट जाती है फिर प्रियतम सुख के लिए श्यामा जु की स्वीकृति से मुख खोल देती है।श्यामसुंदर जु उसके मुख में वो कोर डालते हुए मुस्करा देते हैं।
और वो सखी संगिनी.............

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