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गोपाल संग कजरी गाय भाग 6

गोपाल'संग'कजरी गाय-6

संध्या समय गोपाल संग कजरी नंद भवन लौट आई है।आज कजरी बहुत प्रसन्नचित्त है।श्यामसुंदर कुछ थके से हैं या यूँ कहो कि राधे का गईयों के साथ स्नेह देख कुछ वंचित से हैं।राधे जब भी मान करतीं हैं तो वे और सब सखियां मिल उन्हें खूब सताते हैं।बालसखा कान्हा का पक्ष लेते तो हैं लेकिन सखियों की चतुराई और राधे जु का साथ उनकी कोई मनमानी नहीं चलने देती।उस समय भले ही राधे सखियों का ही पक्ष ले रहीं होतीं हैं पर भीतर मन में वे मोहन की मनःस्थिति से भी अनभिज्ञ नहीं रहतीं इसलिए कभी कभी या अंत में तो कन्हैया का ही पक्ष धरतीं हैं।तब अपने मनमोहन श्यामसुंदर की चाटूकारी और सखियों के तीक्ष्ण तर्क वितर्क से वे मंत्रमुग्ध सी पूरा आनंद भी लेतीं हैं।पर दिन के आरंभ से अंत तक अंतर्मन में अपने प्रियवर का ही ध्यान करतीं हैं कि कब वो घड़ी आए जब श्यामसुंदर जु को इन सब से पृथक अपना स्नेहसुधा रस प्रदान करूँ।श्यामा जु भलिभांति जानतीं हैं कि अगली सुबह तक श्याम जु उसी रसान्नद में डूबे राधे की याद में मदमस्त रहते हैं।वे भी बालसखाओं के माध्यम से घड़ी घड़ी श्यामसुंदर के लिए मधुर प्रेमरस से सराबोर पैगाम भेजतीं रहतीं हैं और सखियों संग उनकी बातें करके उनकी कुशलक्षेम पूछती रहतीं हैं।दोनों एक दूसरे से दूर होते हैं तब भी प्रेम वार्ता में डूबे ही रहते हैं।
प्यार मनुहार तो जैसे इनकी पल पल की प्यास ही हो ऐसे ये किसी ना किसी ज़रिए से जुड़े ही रहते हैं।इधर राधे अगर अपनी सखियों संग हैं तो उधर श्याम जु भी सखाओं संग।यहाँ अगर बाग बगीचे में राधे समय एकांत में व्यतीत करतीं हैं तो उधर मोहन भी डाल पात में श्यामा जु के दर्शन करते हैं।अगर वहाँ श्यामा जु माँ संग कुछ घरेलू कार्य में जुटी हैं तो श्यामसुंदर भी बाबा संग उनके काम में हाथ बटाते हैं।राधे जब किसी कार्य में संलग्न खुद में खोई सी हैं तो श्याम जु मईया से राधे की ही बातें करते हैं।आईने में जब वे अपना मुख कमल निहारते हैं तो परस्पर अपना नहीं एक दूसरे को ही देख पाते हैं।माँ भोजन परोसती है तब भी वो पहले तुम पहले तुम कह कर ही भोजन आरंभ करते हैं।शाम ढलते ही दोनों विरह वियोगी चाँद सितारों में या यमुना की लहरों में उतर कर भावों के समन्दर में डूबते हैं।ये उनकी मूक वार्तालाप अन्यत्र बेरोक टोक चलती ही रहती है फिर चाहे वे किसी कार्य में व्यस्त ही क्यों ना हों।दोनों एक दूसरे की यादों में ही खोए रहते हैं।सत्य ही ये उनके किशोर से युवा होने की ही निशानियां हैं कि अब वो एक एक पल को भी पृथक होते हुए भी संग ही जीते हैं।स्वप्न संगम हो या ख्यालों में सदा संग एक दूसरे में खोए खोए कभी सुषुप्ति के आलस्य में सोए सोए से।
और इस मूक प्रेम की साक्षी मूक कजरी दोनों के स्वभाव से पूर्णतः वाकिफ है।वो आज बार बार रम्भा रम्भा कर श्याम जु को बुला रही है।जानती है आज श्यामसुंदर श्यामा जु से एकांत में मिल नहीं पाए तो क्षण प्रति क्षण उन्हें पास बिठाकर उनसे स्नेह करना चाहती है।जैसे वो श्याम जु के अकेलेपन को दूर करना चाहती हो।इसी आस में वो उठ उठ कर उन्हें बुला रही है।श्यामसुंदर भी जानते हैं कि आज कजरी क्या चाहती है तो दिनचर्या व संध्या काल के सभी कार्यों से निर्वृत होकर प्रियतम श्यामसुंदर कजरी के पास आते हैं और अपने सखाओं संग वहीं उसके पास बैठ कर हास परिहास व खेल खेलते हैं।रात्रि के ढलते ढलते जब सखागण और माँ बाबा सोने चले जाते हैं तो श्यामसुंदर वंशी बजाना आरंभ करते हैं कि श्यामा जु उनके हाथ से वंशी लेकर कहतीं हैं क्या करते हो!!तुम भी ना!!यूँ भी तुम्हारे पास ही हूँ ना प्रिय तो क्यों तुम रात्रि के हमारे एकांत मिलन को इस वंशी की धुन से अवरुद्ध करते हो।रात्रि के अंधियारे को चीरती श्यामा जु की पुकार सुन श्यामसुंदर वंशी बजाना छोड़ अपनी ही भावों की दुनिया में खो जाते हैं राधे के साथ।
और यहाँ कजरी श्यामसुंदर में ही राधे के दर्शन करती कान्हा से नेह लगा रही है।वो श्यामसुंदर के चरणों को चाटती हुई अपना प्रेम दर्शाती है और श्यामसुंदर भी उसे सहलाते हुए उसके प्रेम का प्रतिफल उसे देते हैं।कजरी गाय से श्यामसुंदर का ये अद्भुत प्रेम कजरी को उनका दुलराना बहुत ही आकर्षक है।श्यामा जु भी श्यामसुंदर के इस प्रेम पर बलिहार जातीं हैं और दोनों परस्पर एक दूसरे के प्रेम को ही बड़ा बता रहे हैं।उनका ये प्रेम है तो पूजनीय ही।
कजरी यूँ ही प्रियतम प्रिया के प्रेम की भागीदार बनी मंत्रमुग्ध सी सो जाती है एक नई सुबह के नए इंतजार में।
क्रमशः•••••••

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