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गोपाल संग कजरी गाय भाग 10

गोपाल'संग'कजरी गाय-10

नीले आसमान तले नीलवर्ण कृष्ण जु की नीलाम्बर औढ़े काली कजरारी आँखों वाली श्यामा जु के पधारते ही सब खेल रूक से गए हैं।क्यों??
श्यामा जु को कजरी की विदशा का विशेष ध्यान है।वे जानती हैं कि कजरी जिस भावदशा से अभी गुज़री हैं उस मुताबिक कन्हैया और उनके सखाओं का ये रवैया कजरी के प्रति बिल्कुल भी सराहनीय नहीं है।आखिर करूणा छलक रही करूणामयी सरकार के हृदय से।
श्यामा जु कजरी की ओर देखतीं हुईं श्यामसुंदर जु को फटकारते हुए कहतीं हैं
क्यों रे काहे तंग करत हो कजरीया को??
वो सबको गाली सी देतीं हुईं कजरी से कहतीं हैं
चल कजरी तू म्हारे संग चल।
अरी ओ कुंवरी किशोरी जु
काहे काहे ऐसो क्या कर दियो हमने जो कजरी को तू ले जा रही है री!!
कान्हा जु अभी कुछ कह ही रहे होते हैं कि श्यामा जु पीछे पलटती हैं और श्यामसुंदर जु उन्हें देख चुप ही रह जाते हैं और वहीं धरा पर सर पर हाथ रख बैठ जाते हैं।
नटखट पर चंचल कृष्ण जी सोच रहे हैं कि पहले तो कजरी को मनाया और अब ये रूठ बैठीं हैं।अब इनके भी नाज नखरे उठाने पड़ेंगे।श्यामसुंदर जु की चंचलता को माँ यशोदा भलीभाँति जानती हैं तभी तो उन्हें अपने वन में गए हुए लाल की अत्यधिक चिंता रहती है।वे बार बार गांव के बच्चों को भेज कन्हैया की खैर खबर पुछवाती हैं ।वे उनके लिए भोजन भिजवाती हैं वो भी बहुत सारा क्योंकि कन्हैया को खाने से ज्यादा सबको खिलाने की ही चिंता रहती है।पर आज तो उन्हें दोनों काम ही नहीं भा रहे ना खाना ना खिलाना।वो तो श्यामा जु को वंशी की धुन बजाकर बुलाना चाहते हैं पर निगोड़ी सखियों ने वंशी छीन ली है।सब सखा व सखियां अपने अपने कार्य में रत हैं।
वहीं दूसरी ओर श्यामा जु कजरी को श्रमित जान उसकी सेवा में लगीं हैं।वे कजरी को यमुना जु के तट पर स्वयं ही लेकर जातीं हैं और उन्हें जल ग्रहण करने के लिए कहतीं हैं।कजरी भी सब भूल भुला कर श्यामा जु की रसमाधुरी का पान कर अपनी जन्मों की प्यास बुझा रही है।यमुना जु का जल भी उस अनंत रस के आगे खारा ही लग रहा है कजरी को।श्यामा जु का स्पर्श पा लेने के पश्चात वैसे भी भूख प्यास कहाँ!!वो तो मात्र श्यामा जु की आज्ञा का पालन करती यंत्रचालित सी यमुना जु के तट पर झुकी हुई है।जल की प्यास नहीं अब उसे।उसके विशाल काले नेत्र श्यामा जु को ही निहार रहे हैं और अश्रुओं से भीग भी रहे हैं।
श्यामा जु कजरी को वापिस लातीं हैं और सखी के साथ मिल कर उसे छोर पर नहलाने का प्रबंध करातीं हैं।आखिर कजरी जो ठहरी कृष्ण की प्यारी गाय।नहला कर उसे नमन कर घर से लाई हुई भोज्य सामग्री व चारा अपने हाथों से निवेदन करतीं हैं।वृषभानु नंदिनी के लिए गाईयों की उपाधि कीर्तिदा मईया से या किसी भी जगत या ब्रह्मांड के आदरणीय व पूजनीये देवी देवता से कम नहीं है।वे कजरी को अपने हाथों से खिला कर संतुष्ट करतीं हैं और फिर दुलराती हुईं उसे सुला देतीं हैं।
श्यामसुंदर जु दूर खड़े श्यामा जु को व उनका कजरी के प्रति जो प्रेम है उसे देख अत्यंत प्रसन्न हो रहे हैं।श्यामा जु धीरे धीरे कजरी से कुछ कह भी रहीं हैं जो कान्हा जी सुन तो नहीं पा रहे पर उनके हर्ष की भी सीमा नहीं।
कजरी के आँखें मूंदते ही श्यामसुंदर जु उनके पास आ बैठते हैं।श्यामा जु कजरी से स्नेह में ऐसी उलझीं कि वे मान को तो भुला ही चुकीं हैं।श्यामसुंदर जु को वहाँ आया देख श्यामा जु उन्हें चुप रहने को कहतीं हैं और वहाँ से थोड़ी ही दूर श्याम जु संग दूसरे वृक्ष के नीचे बैठ उनसे कजरी की ही सेवा और उपासना की बातें करने लगतीं हैं।
श्यामसुंदर जु भी चुपचाप उनकी प्यारी प्यारी जीवों के प्रति प्रेम भरी बातें सुन अत्यंत प्रसन्न हो रहे हैं।इतने में श्यामा जु को स्मरण हो आता है कि श्याम जु तो कजरी को खिलाए बिना खाते ही नहीं कुछ तो तभी वो सखियों को भेज माँ यशोदा और माता कीर्तिदा द्वारा बनाए भोजन के डिब्बे वहाँ मंगवाती हैं।श्यामसुंदर जु प्रिया जु के उनके प्रति स्नेह और फिक्र को देख आँखों में आंसु भर लेते हैं।श्यामा जु ये देख उन्हें खुद अपने हाथों से भोजन करातीं हैं और श्यामसुंदर जु के हाथो खुद भी खाती हैं।दोनों एकांत में स्मरणीय समय व्यतीत करते हैं और कजरी अभी भी निद्रा में भी प्रियाप्रियतम के असीम प्रेम का एहसास पानी रही है।उसके रोम रोम में से श्यामाश्याम श्यामाश्याम की धुन सुनाई देती है और उसकी देह उनके स्पर्श को पाकर महक भी रही है और आस पास के पूरे वातावरण को भी महका रही है।
क्रमशः••••••••

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