Skip to main content

मधुर भोर लीला , संगिनी

ठंडी मधुर मधुर ब्यार,यमुना जु की कल कल,लहलहाते पेड़,पत्तों की सरसराहट,डाल और लताओं का आलिंगन,युगल पक्षियों व जीवों का मधुर मिलन,धरा पर नृत्य करते सुनहरे हरे तृण,सुगंधित पुष्पों पर सुबह की ओस की बूँदें,सुमधुर संगीत की बेला में महकता नाचता गाता निकुंज।
बता रहा है पवन का कण कण कि यहाँ अभी कुछ देर पहले ही हुआ एक नवसिंचित प्रेमबीज का आरोपन।चंचल सखियों के हंसते मुस्कराते अति कोमल सुंदर मुख।नाच रहा है प्रकृति का हर कण।
ये जो निकुंज की मधुर महक भरी पुरवाई है ये छू आई है युगलवर के रसस्कित अधरों को।यमुनाजल भी प्रियाप्रियतम रससुधा से छलका है और पुष्पों की पंखड़ियों पर ये ओसबिन्दु उनके लालसुर्ख भीगे से अधरों का ही रंग चुरा लाए हैं।ये आलिंगन ये संगीत ये नृत्य युगल के आगाध प्रगाढ़ रात्रि संमिलन की ही सब निशानियां हैं जो प्रभात फेरी में ही सम्पूर्ण जगत को प्रेम के रंग में रंग आतीं हैं।
पर अभी भी ये निकुंज में शांति कैसी!!
अब तक तो सब सखियों को जुट जाना चाहिए ना युगल के वस्त्राभूषणों की साज संवार में और प्रिया जु के स्नान की भी अभी कोई तैयारी ना हुई है।आखिर कहाँ गुम हैं आज सब।
मंगला समय भी बीत गया।सूर्य की किरणें भी आज मधुर मिलन की साक्षी हैं नहीं तो उसके उगने से पहले ही सब हो जाता पर आज तो श्यामाश्याम जु की कृपा हुई है सूर्यदेव पर भी कि वो भी निकुंज के पेड़ों में से कहीं कहीं झांक रहा है अल्साए से युगल को।उनके आस पास पुष्पों की पंखुड़ियाँ बिखरी हैं और कहीं कहीं पर पान सुपारी का लाल छींट भी।
हाँ आज अभी तक युगलवर उलझे ही हैं एक दूसरे की कटारी कंटीली निगाहों में।प्रिया जु लाल सुभद्र साड़ी ओढ़े हुए हैं और श्यामसुंदर जु नीले रंग के धोती और लाल चुनरी में जो कल रात प्रिया जु की फेंट पर बंधी थी और ये क्या!उसकी जगह अब लाल जु के पीताम्बर ने ले रखी है।हाए।।बलिहार।।
ये तो हुआ प्रियतम प्रिया जु का संक्षिप्त हाल।
लेकिन ना जाने ये सब सखियाँ कहाँ छुपी हैं आज।ज़रा इधर उधर नज़र घुमाई तो ये देखो यहाँ सब एक सघन पेड़ की ओट में खड़ी निहार रहीं हैं युगलवर को प्रेम में डूबे हुए।सब तैयारी हो चुकी है पर किसी में आज सामर्थ्य नहीं युगलवर के बीच जाकर उन्हें उठाने की।सब शांत खड़ी एक टक बस देख रही हैं।
प्रिया जु तनिक सरकीं तो हैं शायद उन्हें सुबह की किरणों की तांक झांक ने अपने आगमन की सुधि दी हो।पर नहीं ये तो मदहोश ही प्रियतम की निगाहों में देखते देखते उनकी गोद में जा लेटीं हैं और श्यामसुंदर तो तनिक और गहराने की ताक लिए हैं अपनी प्राणप्रिया में।
अरे नहीं कुछ तो लाज धरो प्यारे जु।लाडलीजु को कौन होश दिलाए अब।सब सखियाँ मन ही मन मुस्करा भी रही हैं और लजा भी।पर कोई करे क्या अब।
इतने में एक मदमस्त मलंग चाल वाली नटखट गुस्ताख सखी इठलाती बल खाती अपने ही लहंगे चूनर में उलझी सी कुछ गिलहरियों के पीछे भागती दौड़ती खेलती हुई वहाँ आती है।पगली मनचली हुई को देख सब की हंसी छूट जाती अगर आज निकुंज में कोई होश वाला होता तो।पर सब मस्ती भरा है आज सो इस सखी पर केवल ललिता जु की नज़र पड़ती है और वो वहीं पेड़ के पीछे से ही एक पुष्प उस पर दे मारती हैं जो गाल पर जा लगता है।वो इधर उधर देखती है तो पहले तो नज़र प्रियालाल जु पर पड़ती है जिसे देख वो हड़बड़ा सी जाती है और फिर अपनी पायल नूपुर की झन्कार को रोकती थामती हुई अपनी दाईं ओर ललिता सखी जु को देख डर सी जाती है और दोनों कान पकड़ माफी मांगती है।
आश्चर्य कि आज ललिता जु उसे हर बार की तरह क्रोध ना कर मुस्करा कर पास बुलातीं हैं।दरअसल आज समय की और श्यामाश्याम जु की नज़ाकत भरी चित्तवन को देख ये जरूरी ही था।वो सखी एक बार फिर श्यामाश्याम जु की तरफ देखते हुए पलट ही रही होती है कि एक दम से श्यामसुंदर जु को समक्ष खड़ा पाती है।वो हैरान होती है कि अभी तो श्यामसुंदर प्रिया जु के साथ थे।वो फिर से पलटती है और देखती है कि वो वहीं हैं और अभी तक प्रिया जु में ही खोए हैं पर वे तो उसके सामने भी खड़े हैं।
पर इस बार वो जब श्यामसुंदर जु को देखती है तो वहीं उनके कजरारे नयनों से उसकी नज़र उलझ जाती है और वो जड़ सी हो जाती है जैसे प्रियतम श्यामसुंदर उसकी नजरों से उसके दिल में उतर गए हों।सखियां उसके ऐसे ही खोए हुए से हालात देख हंस पड़ती हैं।इस हंसी का कुछ भी असर श्यामाश्याम जु पर अभी भी नहीं हो पाता पर जैसे ही वो सखी उनकी ओर देखती है तो उसे सब सखियों संग श्यामसुंदर जु खड़े नज़र आते हैं और सब की सब प्रियतम संग प्रेम मनुहार में व्यस्त हैं।अद्भुत सखी के अद्भुत नज़ारे और प्रिय श्यामसुंदर जु की अद्भुत लीलाऐं।धन्य।जय जय।
देखते ही देखते निकुंज की सब सखियां कोई कंगन तो कोई पायल और कोई गले के हार या कटिबंध व्यक्ति व अन्य भिन्न भिन्न आभूषणों का आकार लेकर प्रियाप्रियतम जु के अंगों पर जा विराजती हैं।
वो नटखट पगली सखी जो ये सब देख रही थी अपने प्रियतम मोहन को देखते देखते श्यामा जु की पायल का एक अदना सा मोती बन जाती है और श्यामसुंदर जु अभी भी श्यामा जु को ही निहार रहे हैं और वास्तव में सब आभूषणों में विराजित सखियां श्यामाश्याम जु की लीलायमान चकित कर देने वाली प्रेयसियाँ ही हैं जिन्हें प्रिय प्राणप्रियतम अलग अलग भी प्रेमातुर अपने कजरारे नयनों से निहारते प्रतीत हो रहे हैं।

Comments

Popular posts from this blog

युगल स्तुति

॥ युगल स्तुति ॥ जय राधे जय राधे राधे, जय राधे जय श्री राधे। जय कृष्णा जय कृष्णा कृष्णा, जय कृष्णा जय श्री कृष्णा॥ श्यामा गौरी नित्य किशोरी, प्रीतम जोरी श्री राधे। रसिक रसिलौ ...

वृन्दावन शत लीला , धुवदास जु

श्री ध्रुवदास जी कृत बयालीस लीला से उद्घृत श्री वृन्दावन सत लीला प्रथम नाम श्री हरिवंश हित, रत रसना दिन रैन। प्रीति रीति तब पाइये ,अरु श्री वृन्दावन ऐन।।1।। चरण शरण श्री हर...

कहा करुँ बैकुंठ जाय ।

।।श्रीराधे।। कहाँ करूँ वैकुण्ठ जाए.... जहाँ नहीं नंद, जहाँ नहीं यशोदा, जहाँ न गोपी ग्वालन गायें... कहाँ करूँ वैकुण्ठ जाए.... जहाँ नहीं जल जमुना को निर्मल, और नहीं कदम्ब की छाय.... कहाँ ...