Skip to main content

नित नव लीला नव नित माधुरी , तृषित ।

नित नव लीला नव नित माधुरी
नित नव श्यामा श्याम कली
नित नव कुसुम नित नव भोर
नित नव उत्स विवर्धित कीर्ति
नित नव सिंगार वस्त्र नव नित
नित नव पिय अधरन स्फुर रस
नित नव हर नित नव हरि मिलित
नित हरिका हरित नित नव प्रेम कलि
नित नव तृषा नित नव तरंगिनी
नित नव ताल-राग वाद्य वादिनि
नित नव ठुमुकत नाचत सजनी
नित नव भाव चित्र-विचित्र सखी
नित नव सुकुमार-सुकुमारी होत
नित नव रचत-राजत लीला न्यारी
--- सत्यजीत "तृषित"

********     *******

तव रँग-रँगिनी विलसत मम उर
कुँजन विलास छलकत तव उर

उछल-छलकत उन्मद विलसे तव रस महकत मम उर
नैन निहारे तव नैनन कहे रैनन की हर लहरन को भरपूर
--- सत्यजीत "तृषित"

Comments

Popular posts from this blog

युगल स्तुति

॥ युगल स्तुति ॥ जय राधे जय राधे राधे, जय राधे जय श्री राधे। जय कृष्णा जय कृष्णा कृष्णा, जय कृष्णा जय श्री कृष्णा॥ श्यामा गौरी नित्य किशोरी, प्रीतम जोरी श्री राधे। रसिक रसिलौ ...

वृन्दावन शत लीला , धुवदास जु

श्री ध्रुवदास जी कृत बयालीस लीला से उद्घृत श्री वृन्दावन सत लीला प्रथम नाम श्री हरिवंश हित, रत रसना दिन रैन। प्रीति रीति तब पाइये ,अरु श्री वृन्दावन ऐन।।1।। चरण शरण श्री हर...

कहा करुँ बैकुंठ जाय ।

।।श्रीराधे।। कहाँ करूँ वैकुण्ठ जाए.... जहाँ नहीं नंद, जहाँ नहीं यशोदा, जहाँ न गोपी ग्वालन गायें... कहाँ करूँ वैकुण्ठ जाए.... जहाँ नहीं जल जमुना को निर्मल, और नहीं कदम्ब की छाय.... कहाँ ...