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तुम तुम नहीं मैं ही , संगिनी

तुम तुम नहीं मैं ही
अब कोई मैं नहीं
सिर्फ और सिर्फ मैं ही

कुंज में बैठ
आज सखी कहीं खो गई
कुंज की जगह एक सुंदर आशियाने ने ली
प्रेम पंछी गीत गा रहे
सरस महकती पुरवाई
आ ढांप ली किसी आँखें आज संगिनी की
छूते ही बोल पड़ी ये तुम हो कोई और नहीं

तुम!!!
कौन तुम???
समक्ष बैठ जब श्याम ने पूछा तब घबरा गई
ले आगोश में श्याम ने
प्रीति का सारा भेद बताया
प्रेम करने वाले ने अपना अभिमान गंवाया
मिलन हुआ जब हमारा तुम्हारा

तब तुम तुम थी और मैं मैं ही रहा
अब जब मिलकर कई बार मिले
तो देह देह नहीं रूह रूह में घुल गई
अब तुम तुम ना रही
मैं हुआ

तेरा मैं भी अब कहीं नहीं
आस्तित्व तेरा राधे के रंग में घुला
घुल कर मुझमें
डूब कर तुझमें
जब मैं तुम में समा ही गया
तो मैं और तुम तुम और मैं का
भेद ही ना रहा
अब समा कर तुम में प्रिय
मैं नहीं
सब मैं ही हुआ

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