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गोपाल संग कजरी गाय भाग 13

गोपाल'संग'कजरी गाय-13

इधर श्यामसुंदर डूबे हैं अपनी स्वामिनी की अनवरत यादों में।उनको आज विरह ऐसे सता रहा है जैसे वे प्रियतम ना होकर प्रिया जु ही हों।प्रयत्न करने पर भी वे समझ नहीं पा रहे हैं कि श्यामा जु उनकी अभिन्न अंतरंग शक्ति स्वरूपा हैं जिनका उनसे भिन्न कोई आस्तित्व ही नहीं।ना उनका है श्यामा जु के बिन।
वहीं दूसरी तरफ श्यामा जु श्यामसुंदर जु में ही डूबीं हैं।कजरी संग उनका स्नेह बढ़ता ही जा रहा है।एक तो कजरी है करूणा की खान गऊमाँ वहीं दूसरी तरफ वो श्याम जु द्वारा पूजित व सेवित है।
दोनों ही भावों से प्रिया जु कजरी में अपने प्रियतम का ही प्रेम ओतप्रोत पातीं हैं।उनको पता है कि कान्हा अपनी दिनचर्या का अधिकतम समय गईयों संग ही बिताते हैं।
जहाँ माँ यशोदा,नंदबाबा या गोपियों का प्रेम है वह आसक्ति से परिपूर्ण है।वे सब बंधनयुक्त आसक्त हैं कन्हैया के श्यामल सौंदर्य और स्नेह से।
वहीं दूसरी ओर कान्हा का जो प्रेम बालसखाओं और इन मूक जीवों के लिए खासतौर पर गईयों की तरफ है उसमें लेशमात्र भी आसक्ति और स्वार्थ नहीं।
सखियों का कान्हा के प्रति प्रेम या तो अपनी स्वामिनी के स्वामित्व के कारण है या वे उनकी रूपमाधुरी पर आसक्त हैं।
पर बालसखाओं और गईयों का प्रेम विशुद्ध प्रेम है।उनको एक दूसरे से किसी भी प्रकार की कोई लालसा या चाह नहीं।वे प्रेम के लिए ही प्रेम करते हैं।तभी तो कन्हैया अपना अधिकतर समय इनके संग में ही बिताते हैं।
नित्य प्रति की गईयों की पूजा अर्चना के पश्चात वे जब गोपसखाओं संग वन विहार के लिए जाते हैं तो उन्हें मईया के उनको उठाने,नहलाने और खिलाने पिलाने तक की भी परवाह नहीं होती।वे जल्दी में ही अपना नहाना निपटा पाते हैं।मईया मक्खन मिसरी लिए खड़ी ही रह जातीं हैं।पर कान्हा को जो आनंद बछड़ों को समय से पूर्व ही खोल कर फिर मटकी फोड़ कर मक्खन चुरा कर खाने में आता है या राह चलती गोपियों की दही हांडी तोड़ने में आता है वो अकेले में माँ के हाथों से खाने में कहाँ!उनको तो गांव के बच्चों के साथ साथ सब जीवों को भी रजाना होता है।खुद नहीं खा कर वो बांटने में ही खुश ज्यादा होते हैं।
वन जाने से पहले मईया को आदेश ज़रूर देते हैं कि आज वन मे भोजन में क्या क्या भेजना है और कितनी मात्रा में।ये सब अपने लिए नहीं अपने मित्रगणों के लिए ही।उनके मित्रगण में केवल गोपसखा ही नहीं बल्कि सब वन्य जीव भी आते हैं।
श्यामा जु भी ऐसी ही दीनदयालु करूणा की खान हैं।नित्यप्रति अपने माँ बाबा संग गौ पूजन से ही दिनचर्या का आरंभ करना उनका नियम है।
आज तो कजरी संग है तो प्रिया जु और भी स्नेह से भरीं हैं।कन्हैया जितना ध्यान कजरी का रखते हैं आज प्रिया जु को उससे भी अधिक कजरी पर लाड आ रहा है।वे माँ के साथ ग्रहकार्यों में मदद करवाने के साथ साथ बार बार आकर कजरी को भी देख जातीं हैं कि कहीं कजरी को नई जगह आकर कोई परेशानी तो नहीं ना।वे उसके खाने पीने का भी विशेष ध्यान रखे हुए हैं।हालाँकि बाबा के गौ रक्षक भी सब गईयों के साथ कजरी का भी ध्यान रख रहे हैं पर राधे जु कजरी की देख रेख पर विशेष रूप से ध्यान रखने का उन्हें आदेश ही दे आतीं हैं जिसे सुन सब गोप ग्वाल हंस देते हैं और पूछते हैं
अरी बिटिया क्यों परेशान होती है?कजरी सब गायों जैसी ही तो है तो जैसे हम सबका ख्याल रखे हैं कजरी का भी रख लेवेंगे।
पर नहीं प्यारी बिटिया तो माने ही ना है।पल पल भाग दौड़ करे हैं कजरी की खातिर।
आज तो जैसे कोई यंत्र ही लगा है उनके पाँव तले।थकतीं रूकतीं ही ना हैं।जैसे राधे आज राधे ना होकर श्यामसुंदर ही हों।ऐसी ही भागदौड़ वे करते हैं प्रतिदिन।
माँ कीर्तिदा व वृषभानु बाबा भी आज बिटिया को मगन देख अत्यंत खुश हैं।आज एक अभिन्न ही उन्माद जगा है राधे में जो कृष्णमयी राधा का ही गुण है।नहीं तो वो अक्सर ही खोई खोई सी कान्हा की याद में ही रहतीं हैं।आज जैसे दोनों के भाव परस्पर बदल से ही गए हैं।राधे जो प्राणवायु बन उनमें उतरीं थीं।ये शायद उसी का असर बाकी रह गया है प्रियतम प्रिया जु में।
अब अगर कजरी की विदशा के बारे में बात करें तो उसकी तो खुशी का कोई ठिकाना ही नहीं है।भीतर वो जैसे नाच ही उठी है कि श्यामा जु तो श्यामसुंदर जु से भी अधिक दयावान हैं।चंचल श्यामसुंदर जु का मुख देखने के लिए तो रम्भाना पड़ता है पर यहाँ तो आवश्यकता ही नहीं।प्रिया जु खुद ही अपना दरस दिखा देतीं हैं।
प्रिया जु तो वास्तव में भी ऐसी ही हैं।भक्त को क्या चाहिए उनको गा कर या रिझा कर नहीं कहना पड़ता।वे तो स्वतः ही कृष्ण प्रेमियों पर न्यौछावर ही रहतीं हैं।करूणामयी हैं वो।चंचल कान्हा जी को ढांप लेतीं हैं और अपार कृपा बरसातीं हैं भक्तगण पर। तभी तो बरसाने वाली को अथाह रस बरसाने वाली जान भोली को ही सब भजते हैं ताकि श्यामसुंदर जु तो खुद ही वश में हो जाएँगे अगर प्यारी जु की कृपादृष्टि हुई तो।
उनकी अद्भुत मुख कांति व आभा तो कजरी में उन्माद के साथ साथ अह्लाद भी भर देते हैं और उसे श्यामा जु में ही श्यामसुंदर भी नज़र आने लगते हैं।
कजरी आज दोनों को ही देख पा रही है राधे जु में।उनका गौरवर्ण नीली साड़ी व लाल चोली और भव्य श्रृंगार जिसे वो मदनमोहन की आँखों में निहारती है आज उसके समक्ष प्रत्यक्ष हो आया है और श्यामा जु की आँखों में वो श्यामसुंदर जु का ही प्रेम व चंचलता देख रही है।
कजरी अपने सौभाग्य पर आंसु भी बहा रही है।असीम कृपा की पात्रा जो बनी है।वो तो इंतजार में है कि कब प्यारी जु उनके निकट आएं और वो अपने अश्रुओं से प्यारी जु के चरण धोए।
क्रमशः••••••••

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