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गोपाल 'संग' कजरी गाय-12

गोपाल'संग'कजरी गाय-12

खेल की गम्भीरता को देख कोई भी कुछ नहीं कह पाता।ना ही हार जीत का कोई फैसला होता है।श्यामा जु खुद ही श्यामसुंदर जु के समक्ष आ जातीं हैं और उनके सजल नयनों को अपने मन में बसा उन्हें नेह की नज़र भर से निहारतीं हैं।श्यामसुंदर जु इतने पर ही श्यामा जु पर सर्वस्व लुटा बैठते हैं।ऐसा मधुर अति मधुर प्रेम हो तो हार जीत क्या और खेल ही क्या?
शाम ढलने को है।राधे जु को अब जाना है।श्यामसुंदर जु और कजरी दोनों ही नहीं जाने देना चाहते उन्हें।पर मईया देर होने पर चिंतित होंगी ये सोच श्यामसुंदर जु तो मान जाते हैं पर कजरी नहीं मान रही।उसे तो कन्हैया के साथ गांव जाना ही नहीं है।वो वहीं बैठ जाती है जैसे आज वन में ही रहना चाहती हो।
श्यामसुंदर जु कह रहे हैं
च्यों री कजरी
आज तोहे संन्यास धरियो है जो तू वन में ही रहेगी।देख तोकु छोड़ मैं नाए परत सकूँ।मोहे मईया और बाबा से पिटवानो है का तोहे।
पर नहीं कजरी तो ज़िद्द पर अड़ी है।कन्हैया उसे बार बार समझा रहे हैं।
देख कजरिया संध्या हो आई।सबको देर होए रही याके कारण।
सब सखागण भी समझा रहे।कहा था कान्हा तुमसे कि इसको सर चढ़ा रखा है तूने।अब देख फिर सुबह की तरह हठ कर बैठी है।अब फिर पैर पड़ो इसके।सुबह तो वन आने में देर हुई तब भी ठीक था पर अब अंधेरा होने से पहले घर नहीं पहुँच पाए तो पूरा गाँव यहाँ आ जाएगा हमें लिवाने और डांट पड़ेगी सो अलग।
ये सुन कान्हा सबसे चलने को कहते हैं पर कैसे वे भी श्यामसुंदर जु को छोड़ चले जाते।
तभी श्यामा जु बोल पड़तीं हैं।
तुम इसे तंग करते हो तभी ना जाती है कजरी तुम संग।कान्हा समझ जाते हैं पर यूँ ही कह देते हैं
तो आप ही बता दो क्या करें हम कजरी जी के साथ
कैसे रखें इनको
और क्या इसके साथ हम भी आज वन में ही रूक जाएँ???
ये सुन सब हंस देते हैं और पूरे वन में मधुर ध्वनि संगीत बन गूँज जाती है।पर श्यामा जु यह सुन खीझ ही जातीं हैं और झट से कह देतीं हैं
तुम सब तो कहीं रहने के लायक हो ही नहीं
और तुम संग कोई रहे ही कैसे?
कहते कहते श्यामा जु कजरी के पास जातीं हैं और बड़े प्रेम भाव से उसे अपने संग अपने भवन ले जाने का आग्रह करतीं हैं।कजरी तो ये सुन झट से उठ खड़ी होती है और भीतर मन से श्यामसुंदर जु से विनती कर आज्ञा भी ले लेती है।श्यामसुंदर जु राधे की इच्छा जान सहमति भी दे देते हैं।
पर भीतर वे भी सोच रहे हैं कि आज रात उनकी कैसे कटेगी कजरी बिन।और वंशी भी तो ना है।खैर कजरी की खुशी के लिए और प्रिया जु के गाय प्रेम और सेवा भाव के लिए ये अनिवार्य भी है।
तो हो गया तय आज कजरी श्यामा जु संग उनके भवन जाएगी और कान्हा सखाओं संग नंदगांव की ओर रवाना हो जाते हैं।
आज कजरी प्रिया जु के साथ है तो उन्हें कन्हैया से दूरी महसूस ही नहीं होगी।वे तो हर किसी में अपने मनमोहन कान्हा का ही दरस कर समर्पित भाव से सेवा करतीं हैं।वन से घर पहुँचने तक श्यामाश्याम जु जैसे एक दूजे में खोए बातें करते जा रहे हैं।आज उनके भाव गहनतम हैं जैसे श्याम जु आज राधे हुए और श्यामा जु कृष्ण।
नंदभवन पहुँचने पर श्यामसुंदर जु खोए खोए से हैं।हर रोज़ की तरह ना तो बात कर रहे हैं ना ही मईया से राधे जु के बारे में ही कुछ बता रहे हैं।माँ ने कई बार पूछा पर कोई उत्तर नहीं।ना भूख है ना प्यास।ना ही कोई दर्द ना तक्लीफ।फिर क्या?
क्या है आज जो बदल गया है?
कान्हा आज ऐसे क्यों कर रहे हैं?
मईया ये सोच हैरान भी है और परेशान भी।बार बार कन्हैया से पूछ रही है।कभी चंचल कान्हा की बलाईयाँ लेती है तो कभी उसे इतनी भाग दौड़ करने के लिए मना करती है।आज शायद कन्हैया थक गया है।उसे बहुत प्रयास कर हल्दी मिला गर्म दूध पिलाती हैं कि देखो कान्हा अगर ये दूध तुमने ना पिया तो पदमा गाय तुमसे रूठ जाएगी।तब कहीं जा के कन्हैया माँ की बात सुनते हैं और दूध पी लेते हैं।
रात ढल आई है।कान्हा अभी भी उसी अवस्था में ही हैं।वे किसी से बात नहीं कर रहे।मईया चिंतित है।बलराम से पूछती है आज इसे क्या हुआ है।बलदाऊ सब जानते हैं और ये भी कि कान्हा की स्थिति मईया को समझाना नामुमकिन सा ही है तो कह देते हैं मईया कान्हा आज थका हुआ है।तुम चिंता ना करो।
पर माँ हैं ना।चिंता कैसे ना करें?
बलदाऊ गए तो नंद बाबा को ही पकड़ लिया।नंदबाबा भी वही उत्तर देते हैं और मईया को भोजन परोसने का आदेश दे देते हैं।पर मईया का मन किसी काम में रमे तब ना!
बाबा को खाना देकर मईया फिर कान्हा के पास जाकर बैठतीं हैं और खाना खिलाने का प्रयास करतीं हैं पर नहीं कान्हा को नहीं खाना।तब मईया भी भूखी ही रहेगी आज कह मईया लौट आती है।
आकर वो नज़र उतारने के लिए सब सामग्री एकत्रित करतीं हैं और रोते-रोते बड़बड़ा रही है
कितनी बार कहा है कोमल है लाल मेरा पर कोई सुने तब ना।रोज ही भेज देते हैं गईयों को चराने कान्हा को।
सब चरवाहे मर गए हैं क्या जो लल्ला को ही वन जाना पड़ता है।मेरी कोई सुने तब ना।कान्हा भी नहीं सुनता तो किसे क्या समझाऊं।
मईया कान्हा की नज़र उतारती हैं और व्याकुलता में ना जाने क्या क्या कह जातीं हैं।तभी हड़बड़ाहट में मईया पूछ बैठती है
क्यों रे
आज क्या राधा ना मिलने आई तोसे जो तू यूँ बुझा सा है
या आई थी और सखियों संग कोई कारस्तानी कर मेरे लल्ला को परेशान किया किसी ने।
बस इतना ही कहना था कि कान्हा जु उठ बैठे बिस्तर से और मईया से कहने लगे उनका हाथ पकड़
ना री माई
ऐसा कुछ ना हुआ है
जा तू भोजन ले आ
तू मुझे खिलाना और मैं अपने हाथ से तुम्हें खिलाऊंगा।
मईया फिर पूछती है
अरे अभी तो कुछ भी ठीक ना था
अब राधे का नाम लेते ही सब एक दम ठीक कैसे हो गया?
मईया अब तू छोड़ ये सब
तूने भी खाना ना खाया है और मैं भी भूखा हूँ
चल भोजन ले आ।
मईया अभी भी सोच में डूबी है।इतने में कन्हैया खुद जा के भोजन का थाल उठा लाते हैं और मईया को खिलाने लगते हैं।मईया की आँखें अभी भी नम ही हैं और वो अपने लल्ला को भी भोजन खिला रहीं हैं।अभी तक ना जान पाईं हैं कि आखिर लल्ला को क्या हुआ था।हाँ पर राधे का नाम सुनते ही स्वस्थ हो बैठा है।कितना स्नेह करता है ये राधे से!
भोजन करने के बाद कान्हा मईया को सो जाने को कहते हैं और आश्वस्त करते हैं कि कन्हैया को कुछ नहीं हुआ है और वो भी अभी सो ही जाएँगे।मईया कुछ बेचैनी सी हृदय में दबा वहाँ से चली जातीं हैं।
मईया के जाते ही कान्हा फिर उसी भावदशा में उतरने लगते हैं।वो बहुत रोकते हैं खुद को इस दशा में जाने से पर आज नहीं रोक पाते और गहरे में उतर रहे हैं।उनकी हालत खराब है और परेशानी बढ़ती ही जा रही है।राधे उनसे दूर नहीं है
अभिन्न है
फिर भी ये विरह वेदना क्यों?
यूँ ही डूबे डूबे श्यामसुंदर जु बाहर चाँदनी रात में पेड़ के नीचे बैठे हैं।नींद और चैन आज दोनों ही खो गए हैं कहीं।आँखों में अनवरत अश्रु और मुख पर राधा नाम!
वंशी तो है नहीं तो बैठे "राधा मेरी प्राणवल्लभा राधा"मिट्टी पर लिखते जा रहे हैं।रोते रोते मिटा देते हैं और फिर लिखते हैं और मिटाते हैं।
क्रमशः•••••••

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