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गोपाल 'संग' कजरी गाय भाग -11

गोपाल'संग'कजरी गाय-11

वन में यूँ ही संग संग बैठे श्यामसुंदर जु व श्यामा जु कभी हंसते बतियाते कभी रूठते मनाते कभी बहते और निहारते एक दूसरे को ना जाने कब से कब क्या समय हुआ उनको कुछ भी ना भरमाता है ना ही कुछ भासता ही है।खोए हुए हैं।प्यार भरे तराने गाना चाहते हैं।
प्रेमगीत गुनगुनाने हैं पर वहीं जब प्राकृतिक संगीत में घुलता सखियों और सखाओं का शोरोगुल उनके कानों में पड़ता है तो वे अपने भावों को बहने से रोक लेते हैं।बहुत समय बीत चुका है।अब सखियां बहाने बहाने से प्रिया जु को पुकारने लगी हैं।
श्यामा श्यामसुंदर जु को पता हैं अब सायंकाल तक घर पहुँचना है तो रवानगी का समय आ गया है पर उनका मन अभी नहीं भरा ना कभी भरेगा ही।पर फिर वही समय व स्थान दोनों की विडम्बना।
इसी बीच सखा भी पुकार उठे
अरे ओ कान्हा
गईयां बहुत दूर दूर तक चरने निकल गईं हैं
ज़रा उन्हें पुकारना तो!!
तभी कन्हैया को स्मरण हो आता है कि उनकी वंशी तो उनके पास है ही नहीं तो वो कैसे पुकारें।
प्रिया जु उसी समय सब सखियों को वंशी लौटा देने को कहतीं हैं पर नटखट सखियों ने श्यामा श्यामसुंदर जु का मिलन तो करा दिया बड़ी आसानी से पर अब हठ कर बैठीं हैं कि श्यामाजु आप चाहे कुछ भी कहें कन्हैया को वंशी तो नाए मिलेगी अब।बहुत इतरावे है ये वंशी की धुन में सबको मनचाहा नाच नचावे है।ना वंशी होगी ना इनकी कुछ चलेगी ही।
अरे!!ये क्या?
ये क्या कह दिया आज सखियों ने।
बिन राधा अगर श्याम अधूरे तो बिन वंशी भी ना पूरे।ये तो अनर्थ ही कह दिया इन पगलियों ने।जानती हैं कि इनको भी तो अपना नाम कान्हा की वंशी में सुनने की आदत पड़ी है।कह तो दिया पर ये रह भी ना सकेंगी।
श्यामसुंदर जु भी सखियों को बहुत समझाते हैं और मनुहार करते हैं पर एक ना चली।
तभी एक संगिनी सखी बोल पड़ती है
ठीक है सांवरे वंशी तो मिल जावेगी पर इसके लिए एक खेल खेलना पड़ेगा।
सखागण समझ गए कि चतुर गोपियों के समक्ष अपनी तो चलने ना वाली है तो जा के खुद ही अपनी अपनी गईयों को लिवा लाओ।चुपचाप खिसक लिए सब एक एक करके।कुछ एक रह गए श्यामसुंदर जु का साथ देने के लिए।
अब खेल ऐसा सुझा दिया कि कोई सखा क्या सखी भी इसमें कुछ ना कर सकेगी।सब लीला तो होगी श्यामा जु की और इस खेल को खेलेंगे अकेले श्याम जु ही।ना जाने क्या कह देंगी आज ये सखियां।
श्यामा जु जो अपनी सखियों को जानती भी हैं और समझती भी उनका पक्ष ही लेने वाली हैं क्योंकि जब सखियां ही उनके मिलन का कारण बनती हैं तो श्यामा जु भी खेल में तो उनका ही पक्ष लेतीं हैं।
खेल के कुछ कायदे तय हुऐ।पहले तो श्यामा जु और सखियों में फिर उनकी सहमति से सब श्यामसुंदर जु से कहा गया।
प्रिया जु छुपेंगी और श्यामसुंदर तुम अकेले ही इन्हें ढूँढोगे।कोई तुम्हारी मदद नहीं करेगा।
श्यामसुंदर जु को लगा ये तो बड़ा आसान है।केवल राधे को ही ढूँढना क्या मुश्किल है और वैसे भी वो मुझे ही जिताऐंगी।
श्यामा जु भीतर ही भीतर श्यामसुंदर जु पर मुस्करा देतीं हैं और उनको आँखों आँखों में इशारा करतीं हैं
नहीं मेरे भोले से प्रिय श्याम जु खेल में हम कोई धोखा नहीं कर सकते।तुमसे मिलने आने के लिए सखियों का सहारा ले हम कुछ भी कर सकते हैं पर खेल में ऐसा ना होगा।
श्यामसुंदर जु को एक पेड़ के नीचे आँखों को बंद करके खड़े रहने को कहा जाता है और एक सखी उनकी आँखों पर पट्टी बाँध वहीं खड़ी रहती है।अब पूरे ब्रह्मांड को एक नज़र में जान लेने वाला क्या अपनी श्यामा को ना ढूँढ पाएगा।पर यहाँ वो ब्रह्मांड का कोई नायक नहीं है।यहाँ तो वो ब्रजांग्णाओं व श्यामा जु के प्रेमपाश के अधीन है इसलिए उनके प्रेम के लिए हारना भी जीतना ही है।जहाँ सब सखियों में तत्सुख भाव सम्माहित है वहीं श्यामा श्यामसुंदर जु में भी उनके अगाध प्रेम के बदले में उनका मनचाहा सुख उन्हें प्रदान करना ही उनका ध्येय है।
तो अब खेल आरंभ होता है।श्यामसुंदर जु पट्टी बाँधे खड़े हैं।सखियां सखाओं को वहाँ से भगा देती हैं और फिर श्यामा जु को छुपने को कहती हैं।कहाँ छुपना होगा उन्हें?
आखिर क्या तय किया होगा इन सखियों ने?
सच कुछ नवीन व आश्चर्यचकित ही होगा।
श्यामा जु जितनी सखियां हैं उतने रूप धर लेतीं हैं और एक एक सखी में प्राणवायु बन समा जातीं हैं।
अद्भुत!!
अब कोई कैसे ढूँढ सकेगा उन्हें और श्यामसुंदर जु तो बिल्कुल ही नहीं क्योंकि उनको तो वैसे भी हर कहीं सब में वही नज़र आती हैं ना।प्रिया जु श्यामसुंदर जु में भी समा गईं हैं।श्यामसुंदर जु तो चाहकर भी ना ढूँढेंगे क्योंकि इस अवस्था में राधे जु को ढूंढने का अर्थ हुआ उनको खुद से भिन्न करना तो श्यामसुंदर जु पहले ही हार मान लेते हैं।उन्हें श्यामा जु से विलग होना ही नहीं इसलिए वे थोड़ा नाटक कर श्यामा जु को ना ढूँढ पाने का अभिनय करते हैं और हार मानकर खेल का समापन।
और वंशी।।
वंशी तो सखी के पास ही छूट जाती है।
क्रमशः••••••••

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