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बनी रे माधो राधा कृष्ण बनी।
कृष्ण रंगे राधा के रंग में, युगल छवि सोहे ईक संग में,
मोर मुकुट धर, पिताम्बर धर, दमकत शीश मणी।
नंद यशोदा के मन भावन, धन्य-धन्य हैं पतित पावन,
संत विप्र के प्राण, प्राण धन, दीनानाथ धनी।
पग नूपूर पैजनियां बाजे, रतन सिंघासन कृष्ण बिराजे,
श्रीजी बनीं मुरली -मनोहर श्रीराधाजी, संग में सखी सजनी।
युगल छवि शोभा कस बरणो, झांकी देख लेलियो शरणो,
रंग अबीर बरष कर बरषे, बूंटी और छनी।
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यथार्थ!
यही यथार्थ है बाँकि सब मिथ्या।
हरि जैसा जीव को कोई दिलवर न मिलेगा.....
एक अवलंब तुम्हीं, हरि! मेरे
बाकी सभी मील के पत्थर, छूटें साँझ-सवेरे
मैंने निशि-दिन जड़ प्रवृतिवश
लिया क्षणिक सुख-भोगों में रस
अब सुध हुई, काल डोरे कस
लगा रहा जब फेरे
हे अव्यक्त, अनाम, अनिर्वच !
सोये भी तुम सृष्टि-नियम रच
पर यदि मेरी श्रद्धा हो सच
नींद रहे क्यों घेरे !
नभ की और टकटकी बाँधे
मैं बैठी हूँ पथ पर आधे
रहो मौनव्रत भी यदि साधे
पल तो रहो अँधेरे
एक अवलंब तुम्हीं, हरि ! मेरे
बाकी सभी मील के पत्थर, छूटें साँझ-सवेरे
🍁🍁🍁🍁👏👏👏
हरि ही अवलंब हैं और वही रहें!!
यही कामना जीवन की।
पल-पल, छिन-छिन हरि ही ध्याऊँ
पूर्ण करो आस यह मान की।
एक अवलंब तुम्हीं, हरि ! मेरे
बाकी सभी मील के पत्थर, छूटें साँझ-सवेरे
🍁🍁🍁🍁👏👏👏
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श्री राधा-माधव, युगल प्राण हमारे!!👏
तुम नए-नए रूपों में, प्राणों में आओ।
आओ, गंधों में, वर्णों में, गानों में आओ।
आओ अंगों के पुलक भरे स्पर्श में आओ,
आओ अंतर के अमृतमय हर्ष में आओ,
आओ मुग्ध मुदित इन नयनों में आओ,
तुम नए-नए रूपों में, प्राणों में आओ।
आओ निर्मल उज्ज्वल कांत
आओ सुंदर स्निग्ध प्रशांत
आओ विविध विधानों में आओ।
आओ सुख-दुख में, आओ मर्म में,
आओ नित्य नैमेत्तिक कर्म में,
आओ सभी कर्मों के अवसान में
तुम नए-नए रूपों में, प्राणों में आओ।
आओ हे मधुसूदन और...😭👏
मेरा मस्तक अपनी चरण्ढूल तले नत कर दो
मेरा सारा अहंकार मेरे अश्रुजल में डुबो दो।
अपने मिथ्या गौरव की रक्षा करती
मैं अपना ही अपमान करती रही
अपने ही घेरे का चक्कर काट-काट
मैं प्रतिपल बेदम बेकल होती रही,
मेरा सारा अहंकार मेरे अश्रुजल में डुबो दो।
अपने कामों में मैं अपने प्रचार से रहूँ दूर
मेरे जीवन द्वारा तुम अपनी इच्छा पूरी करो, हे पूर्ण!
मैं याचक हूँ तुम्हारी चरम शांति का
अपने प्राणों में तुम्हारी परम कांति का,
अपने हृदय-कमल दल में ओट मुझे दे दो,
मेरा सारा अहंकार मेरे अश्रुजल में डुबो दो
डुबो सब मेरे, मैंपन के सारे विकृति
अंतर मम विकसित करो
हे अंतरयामी!
निर्मल करो, उज्ज्वल करो,
सुंदर करो हे!
जाग्रत करो, उद्यत करो,
निर्भय करो हे!
मंगल करो, निरलस नि:संशय करो हे!
अंतर मम विकसित करो,
हे अंतरयामी।
सबके संग युक्त करो,
बंधन से मुक्त करो
सकल कर्म में संचरित कर
निज छंद में शमित करो।
मेरा अंतर चरणकमल में निस्पंदित करो हे!
नंदित करो, नंदित करो,
नंदित करो हे!
अंतर मम विकसित करो
हे अंतरयामी!
मेरा अंतर चरणकमल में निस्पंदित करो हे!
नंदित करो, नंदित करो,
नंदित करो हे अंतरयामी!😭👏
मैं याचक हूँ तुम्हारी चरम शांति का
अपने प्राणों में तुम्हारी परम कांति का,
अपने हृदय-कमल दल में ओट मुझे दे दो,
मेरा सारा अहंकार मेरे अश्रुजल में डुबो दो।😭👏
श्री राधा-माधव, युगल प्राण हमारे!!👏
तुम नए-नए रूपों में, प्राणों में आओ।
आओ, गंधों में, वर्णों में, गानों में आओ।😭👏
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