Skip to main content

मोरपंख या कान्हा , आँचल सखी जु

ये दोपहरी का समय है।सुहावनी सी धूप खिल रही,कोई उष्णता नही...मानो केवल प्रकाश हेतु ही आयी है अपना उष्णता का स्वभाव विस्मृत कर चुकी है....
हो भी क्यू न...इस स्थान का प्रभाव ही ऐसा.....
कुंज के बाहर,मुख्य द्वार से दायी ओर कुछ ही दूरी पर.....
एक पतली सी पगडंडी जिस पर श्यामा अपने ही प्रेमभावो मे खोयी अकेली सब सुध-बुध बिसार चली जा रही........(पीछे से कुछ सखिया दौडती हुई आती है व संग चलने लगी)
अपने कर मे एक लंबा मोर पंख लिये है,जिसे स्वयं से कुछ दूरी पर अपने मुख के सामने रखे है.....
इसे एकटक निहारती जा रही,निहारती जा रही......
नुकीले,लंबे नयनो मे ऐसा अनुराग है जैसे ये मोर पंख न होकर श्यामसुन्दर ही है.....
इसे देख कभी तो लजाकर पलके झुका लेती है,कभी पुनः नयनो की कौर से तो कभी पूरे नयन उठा देखती है।
कभी मंद मुस्कुराती है,तो कभी कुछ अनमनी सी हो जाती......
तभी सामने से पवन का एक तेज झोका आता है और
और वो मोर पंख
वो उनसे लिपट जाता है।
हाय! वो उनके अधर,नयन,ह्रदय से यू लिपट गया की मानो प्रियाजु के भावो ने उसे श्यामसुन्दर बना दिया.....
या संभवतः वो छलिया ही वेश बदल मयूर पंख बन गये है......
इस प्रकार लिपट जाने से श्यामा तो स्तंभित ही हो गयी वो ज्यो की त्यो भूमि पर गिरने को हुई...
किंतु सखियो ने तत्परता से संभाल लिया उनको....
यह सब होते होते वो पवन का झोका गुजर गया और वह पंख पुनः उनसे हट पूर्व स्थिति मे हो गया....
उसे अचानक ही यू हटा देख,उन परम भावमति प्रियाजु के नयन जलपूर्ण हो गये....
वो इस विछोह मे नयनो से जल वर्षा करने लगी.....
सखिया उन्हे वही एक वृक्ष के नीचे वृक्ष का सहारा दे बैठाती है।
उनके नयन बंद हो चुके है।
तभी इस स्थान की विपरीत दिशा से श्यामसुन्दर आते दीखते है,सखियो का तो सब ध्यान श्यामा पर ही...
किंतु सखियो को यहा देख श्यामसुंदर वृक्ष के निकट आये तो राधे को ऐसे देखा......
प्रियाजु को ऐसे देख वो वही उनके चरणो मे ही बैठ गए,नयनो से अश्रु प्रवाह होने लगा...
और एक अश्रु बिन्दु श्यामा चरणो पर ढुलक गया....
लाडली तो खोयी ही रही,नयन न खुले....
बाह्य ज्ञान है ही नही उनको...
उन्हे यू देख अब तो श्यामसुन्दर का धैर्य भी छूट ही गया....
उन्होने अपना मस्तक ही स्वामिनी के चरणो पर धर दिया और अपने नयन जल से उन चरणो को भिगो ही दिया....
(सब सखिया तो स्तंभ सी खडी ही है)
किंतु इससे श्यामा उन भावो से बाहर आ जाती है नयन खोलती है तो श्यामसुन्दर को चरणो मे पाकर....उनका नाम
पुकारती है....
किंतु केवल "का..."ही निकलता है।
गला रूंध गया...
बस अविरल अश्रु प्रवाह ही कर रहे युगल.....
कोई शब्द नही...
श्यामा इन्हे उठा ह्रदय से ही लगा ली.....
दोनो ही एक दूसरे के प्रेम पर बलिहार जा रहे,एक दूसरे के नयनो मे देखते हुए....
नयनो से जल वर्षा कर रहे.....
--- युगल प्यारी सखी जु

Comments

Popular posts from this blog

युगल स्तुति

॥ युगल स्तुति ॥ जय राधे जय राधे राधे, जय राधे जय श्री राधे। जय कृष्णा जय कृष्णा कृष्णा, जय कृष्णा जय श्री कृष्णा॥ श्यामा गौरी नित्य किशोरी, प्रीतम जोरी श्री राधे। रसिक रसिलौ ...

वृन्दावन शत लीला , धुवदास जु

श्री ध्रुवदास जी कृत बयालीस लीला से उद्घृत श्री वृन्दावन सत लीला प्रथम नाम श्री हरिवंश हित, रत रसना दिन रैन। प्रीति रीति तब पाइये ,अरु श्री वृन्दावन ऐन।।1।। चरण शरण श्री हर...

कहा करुँ बैकुंठ जाय ।

।।श्रीराधे।। कहाँ करूँ वैकुण्ठ जाए.... जहाँ नहीं नंद, जहाँ नहीं यशोदा, जहाँ न गोपी ग्वालन गायें... कहाँ करूँ वैकुण्ठ जाए.... जहाँ नहीं जल जमुना को निर्मल, और नहीं कदम्ब की छाय.... कहाँ ...