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जावक लीला आँचल सखी

एक सखी नीचे प्रियाजु के चरणो मे जावक रचना करने बैठी है...
प्रियाजु के बगल मे श्यामसुन्दर बैठे हुए।
युगल के आस पास ही कुछ सखिया खडी व कुछ बैठी है।
तभी श्यामसुन्दर को जावक रचना का लोभ हो आया...
ये सखी को संकेत किये,परंतु वह सेवा मे तल्लीन
उसने ध्यान न दिया....
तब इन्होने पाव से उसको चिकुटी काट ली....
उसका हाथ बहका और वो धीरे से....आह! कर बैठी....
प्रियाजु,का ध्यान इस ओर हुआ...
सखी से पूछी....क्या हुआ री...
,सखी बोली....लगता है किसी कीट ने काट लिया....
श्यामा मोहन की ओर देख मुस्कुरायी....
बोली,अच्छा कीट ने काटा....
श्यामसुन्दर बोले,राधे देख इस सखि से हो न रहा....
तुम कहो तो जावक रचना मै कर दू....
साथ ही कहे....राधे,मै तुम्हारे चरण स्पर्श किये बिना जावक रचना कर सकता हू.....
पास खडी एक सखि बोली...अच्छा,कैसे?
और जो न कर पाये तो...?
देख सखी
यदि न कर पाया और मैने बिगाड दिया तो वैसी ही बिगडी हुई जावक रचना तुम मेरी चरण पर कर देना....
ये है श्यामसुन्दर,मानते थोडे ही.....
चले तूलिका ले,जावक रचना करने....
देखो,आज तो सच मे ही बिना छुए कर रहे है जावक रचना.....
किंतु कब तक बचते....
उपर की ओर आते ही श्यामा के चरणो से कुछ उपर से श्यामसुन्दर का कर स्पर्श कर गया.....
और श्यामसुन्दर बस ज्यो के त्यो स्तंभित हो गये ...
तूलिका यहा की वहा लग ठहर गयी.....
परस्पर स्पर्श से युगल स्थिर ही हो गये.....
दोनो के नयन रस वर्षा करने लगे.....
अब तक श्यामसुन्दर ने जो जावक रचना की थी वो भी इनके अश्रुओ से बह गयी.....
दोनो एक दूसरे को अपलक निहार रहे,अश्रु बह रहे....
तभी ललिता सखी के संकेत से ...
सखि ने अपने अंचल से श्यामा चरण साफ कर श्यामसुन्दर के कर से तूलिका ले जावक रचना कर पुनः तूलिका उन्ही के कर मे पकडा दी.......
सब बहुत शीघ्रता से हुआ।
अब ललिता सखी श्यामसुन्दर के कुछ पास आकर बोली.....
अरे,तुमने तो बडी सुंदर जावक रचना की....
युगल भावो से बाहर आते है,श्यामसुंदर देखे.....
जावक रचना पूर्ण हो चुकी है,विस्मित होते है.....
तभी ललिता सखी कहती है,देखो,तुमने एक तो कर ली न...
अब एक सखी को करने दो।
कहकर तूलिका ले लेती है......

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