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गोपाल'संग'कजरी गाय भाग-7

गोपाल'संग'कजरी गाय-7

एक नई सुबह का नया सा आगमन
वही अमृतवेला वही सुंदर खेत खलियान
वही बाग वही फल व पुष्प उद्यान
वही प्रकृति का मुस्कराना
वही आकाश में प्रेम मिलित सुबह का प्रभात प्रसार
वही सूर्य की मधुर आवन फैलता वही प्रकाश
वही पक्षियों का चहचहाना
वही वन्य जीव मयूर कोकिल का कलरव
वही यमुना का सुमधुर बहता सरसराता जल
वही है गोपसखाओं का शोर-ओ-गुल
वही सखियों का गोपी गीत गुनगुनाना
नदी किनारे ब्रजवासियों का नहाना और
वही माताओं का पीताम्बर धोना और सुखाना
सब वही हाँ वही तो है
पर क्या है जो खो गया है?

हाए।।शायद कजरी का स्वप्न टूट गया है
सब तो वही है पर ना निकुंज ना निकुंज में बहती वो महकती पुरवाई
ना हैं श्यामा जु ना ही श्यामसुंदर नज़र आएं
ना वो वातावरण ना ही वो मधुर चहचहाहट और मधुर कलरव की कहीं कोई छुअन
तो क्या है??क्या है आज वहाँ??
क्या है आखिर कजरी की मनःदशा????
क्या भाव लेकर आज ये प्रभात आई?
आखिर क्या है करूणा की व्यथा??

हाँ व्यथा!!अब व्यथित है कजरी
उसकी आँखों में करूणा है वही
इस संसार निकुंज में दूध की है धार वही
कई कजरियाँ आज भी दे रहीं अपना ममत्व वही
तो क्या है जो बदल गया क्या जो कजरी का स्वप्न संगम टूट गया
क्या है जो ममता उसकी हुई झूठी
आँखों की करूणा उसकी अश्रुओं से पड़ गई फीकी

कजरी आज सुबह जब नींद से जगी
उसे वो सब नहीं दिखा जो पिछले दो दिन और रात से देख रही
नहीं जानती स्वप्न था या वो अतीत उसका
या था सब खेल नज़र का शायद एक धोखा
किसी गली नुक्कड़ पर बैठी वो सब देख रही
बैलगाड़ियों की मधुर धमनियों की जगह अब यातायात ने ली
प्रकृति की झोली में है सब कुछ पहले ही जैसा
पर उम्र हो गई है उसकी छोटी
सुंदर सुबह का प्रकाश जल्दी ही घुल जाता कहीं
गौरव भारत का गौवंश गौपूजन से था
भारत खो गया है वो कहीं
इन्सान अब हैवान से भी जल्लाद हुआ
दरिंदगी की हदों से पार हुआ

गईयों के दूध से लेकर उसकी देह का भी व्यापार होने लगा
मतलबी इन्सानों की दुनिया में मूक जीवों का है कोहराम मचा
कान्हा की सुंदर प्रेम वाटिका धूल मिट्टी में मिली
राधे के सस्नेहिल संस्पर्श का जीवों पर कोई निशां ही नहीं

अपने बाल बच्चों के लिए लोग मंदिरों में भक्ति गीत गाते हैं
कहीं राधे राधे तो कहीं हरि बोल की धुन में मस्त हो जाते हैं
पर करूणा और दया भूल कर प्रकृति के जीवों की भेंट चढ़ाते हैं
मास चीर फाड़ कर जीवों का देस परदेस भिजवाते हैं
ममता का गला घोंट कर नाम युग का डुबाते हैं

हर कजरी आज बैठी यही सोच रही
क्या स्वांग रचा है धरा आज लहु से लथपथ हुई
घरों की छतों पर थे जो घोंसले खुशियों के
उनकी आज खुले आसमान में भी बादशाहत नहीं
खेलते थे जो गिल्ली डंडा काँटे छुरी अब उनका शोंक हुआ
गुलेल से कभी जो मटकी फूटती थी वही आज मौत का सामान हुआ
मधुर प्राकृतिक संगीत ध्वनियों को भूल पाॅप का कोहराम हुआ
गौ पाल थे जो गौ रक्षक कभी आज वही भक्षक हुए
नन्हे नन्हे कदमों से थे चलते वही माँ को ठोकरें मार रहे
खान पान की वस्तुओं में है आज प्लास्टिक घुला
गौ चारे थे जो वाड़ों में आज सड़क पर पड़ा ज़हर हुआ
कहो कजरी की कैसे क्यों हुई ये दशा??

कट रही कर रही वो अब करूण पुकार
लौटा दो कोई राधे माधव के पद चिन्हों की सौगात
जगा दो कोई वही प्रेम प्रियतम प्रिया का
वही धरोहर जिस पर टिका था ये संसार
प्यार दो कोई कजरियों को करो धरा पर उसी प्रेम का विस्तार
है कोई जो कलि में दे गहन आलिंगन प्रेम का
सींच दे कोई फिर से प्रकृति में वही चैतन्यता

दिखाया था माँ ने प्रेम वात्सल्य और करूणा का श्रृंगार
पढ़ाया था पाठ ममत्व और पितृत्व का मूक जीवों में भी है अपार
होते हैं प्राण इनको भी प्यारे
करते हैं ये भी प्राणेश्वर से गुहार
आज देख वही करूणा कजरी की आँखों में
हुआ जाता है दिल-ए-जज्बात बेज़ार
हो रही है उसकी करूणा तार तार
काट काट कर ओ फेंकने वालो देख लेना माँ की आँखों का वो दुलार
कर रही है तुमसे वो भीतर मन से आग्रह
मत मारो मुझे मैं हूँ पृथ्वी की जीवनाधार
धाया हूँ धाय की भी मत लो धैर्य का इम्तिहान
सक्षम हो तुम मत अक्षम्य बनो
बना दो निकुंज ये संसार
करो प्रेम राधे कृष्ण सा
कर दो कजरी पर उपकार
कर दो.........
कर दो.........  उपकार

देखो देखो ओ जग वालो
कजरी की आँखों से करूणा वही बरस रही.....
करूणा वही बरस रही.....

बदल गए हो तुम सब
पर ना ममता खुद को बदल सकी
देख सको तो देखो राधे जु भी कजरी की व्यथा देख रो रहीं
कह रहीं गोविंद तुम करो उद्धार मानवता का
मैं प्रेम सुधारस छलका दूँगी

श्यामसुंदर चरणों में बैठ समझाते हैं
होता नहीं मुझसे भी बर्दाश्त प्रिय
तलवार ले हाथ में हो घोड़े पर सवार जब आऊँगा
करूँगा नरसंहार ऐसे जैसे आज गौ हत्या हो रही
होगी तब धरा फिर आखिरी बार लहुलुहान पर सुहागन प्रकृति भी
फिर हर कण कण धरा का मुस्कराएगा
हर कजरी और हर जीव गीत प्रेम के गाएगा

समझ जाओ ओ हत्थारो
करूणा अभी भी तुमसे यही कह रही.........
हो रही अभी करूण पुकार प्रेम भरी
कह रही कजरी संग संगिनी भी 
श्यामाश्याम की चौखट पर पड़ी
आ जाओ हरि......
आ जाओ हरी
आजा....... ओ हरि
हर ले दुःख सारे
कजरी बाट तेरी जोह रही.......

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