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गहरे नीले आकाश मे पूर्ण चंद्रमा ... लीला , आँचल सखी

गहरे नीले आकाश मे पूर्ण चंद्रमा कुछ इठलाता सा,रूप सुधा बिखेरता सा चल रहा....पीछे पीछे एक श्यामवर्ण के मेघ का टुकडा चंद्रमा की मनुहार करता हुआ अनुसरण कर रहा है....
यू तो चंद्रमा पूर्ण है किंतु ये वृक्ष तब भी घोर श्याम वर्ण का लग रहा,मानो वृक्ष न होकर उसकी परछाई ही हो......
यह सब तो आकाश मे हो रहा किंतु लगता है ये लीला यहाँ कुंज मे से ही वहा नभ मे अंकित हो रही हो.....
क्यूकी यहाँ का दृश्य भी कुछ ऐसा ही...
राधेजु कुछ रूठी सी आगे आगे चली जा रही,श्यामसुन्दर पीछे पीछे.....राधे सुनो तो,राधे सुनो तो..पुकारते जा रहे।
कुछ आगे जाकर राधेजु रूककर श्यामसुन्दर की ओर मुडकर एक स्थान पर बैठ जाती है।
अब तक कुछ सखिया भी आ गयी है,सब राधेजु के दोनो ओर खडी हो गयी.....
(आज मानो श्यामसुन्दर की पेशी लगी हुई है)
मोहन प्रियाजु के सामने अति दीन से बन खडे है....
कहते है,राधे मै सच कहता हू मै किसी ओर कुंज मे न गया था।
लाडलीजु-तो तुम्हे इतना विलंब क्यू हुआ?
श्यामसुन्दर-श्रीप्रिया,सुनो मै कुंज मे आ ही रहा था की तभी मुझे राह मे एक सखी दीखी,उसका मुख मेरे विपरीत दिशा मे था....
(सब अत्यंत ध्यान से सुन रही)
राधे जाने क्यो मै उसे देखने को उत्सुक हो गया....
उसके पीछे पीछे कुछ दूर चलने पर सहसा उसने मेरी ओर मुख किया....
राधे....मै यह देखकर स्तब्ध रह गया की वह तो स्वयं मेरी प्रणप्रिया,राधे...स्वयं तुम ही थी....
(सब आश्चर्य से मौन हो दोनो को देखने लगी)
प्रियाजु-अच्छा जी,मै....
मोहन-हाँ राधे,तुम...तुम ही थी।
तब मैने सोचा इस निर्जन वन मे मेरी प्राणप्यारी क्या कर रही है,कही तुम भयभीत न हो जाओ ये सोचकर मै पीछे पीछे चलने लगा तुम्हारे....किंतु ह्रदय मे संदेह होने के कारण मै कुछ न बोला।
वहाँ से कुछ दूर जा ठहरकर तुम मेरी ओर मुडी....जब हम परस्पर समीप हुए ओर तुमने मुझे स्पर्श किया तब मुझे भान हुआ की ये तो कोई ओर गोपी है....
ऐसा जान मै शीघ्रता से कुंज मे आ गया....
राधेजु उसी प्रकार रूठी हुई ही बोली...मै नही मानती,
किंतु यदि ऐसा हुआ तो चलो तुम मुझे उस गोपी का चित्र बना कर दिखाओ.....
(यद्यपि प्रियाजु जान गयी है की श्यामसुन्दर सच कह रहे है,तो भी अपनी मुस्कान को दबाते हुए इन्हे चित्र बनाने को कह देती है)
अब श्यामसुन्दर प्रियाजु के निकट बैठ कलम ले पूर्ण तल्लिन्ता से चित्र बनाना प्रारम्भ करते है।
सब अत्यंत उत्सुकता से उन्ही को देख रही.....
कुछ समय बाद चित्र पूर्ण हो जाता है।
सब उसे देखकर आनंदित हो जाती है....
श्यामसुन्दर ने प्रियाजु का हि चित्र बनाया है...
उसे देख प्रियाजु अत्यंत ही प्रीतीयुक्त हो...श्यामसुन्दर के दोनो करो को अपने कर मे लेकर अपने अधरो व नयनो पर लगाती है.........
श्यामसुन्दर का रोम रोम पुलकित होने लगता है....

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