Skip to main content

निकुँज गिलहरी भाग 18

भाग-18

सब सखियां यूँ ही कान्हा को सता रही हैं कि तभी श्यामा जु आकर सबको चकित कर देतीं हैं।वे उस साड़ी को पहन आईं हैं।ऐसी दिव्यता और भव्यता को देख कर सखियां श्यामसुंदर जु को चिढ़ाना तंग करना भूल ही जातीं हैं।श्यामा जु अत्यधिक सुंदर लग रही हैं।उनके चेहरे पर मोहन प्रेम की आभा साफ झलकती है जो कान्हा जी ने साड़ी के हर पुष्प में भावभावित होकर पिरोई है।जूही चमेली मोगरे के पुष्पों की महक से महकती राधा और महक रहीं हैं।
सखियां उनको घेर कर खड़ी हो जातीं  हैं लेकिन श्यामा जु की आँखें श्यामसुंदर को ढूँढ रही हैं।श्यामसुंदर वहाँ नहीं हैं तो प्रिया जु व्याकुल हो उठीं हैं कि कहीं वे उनसे व सखियों से नाराज तो ना हो गए हैं।वे उसी क्षण लाल जु को पुकार उठतीं हैं और चित्रा सखी जु के हाथों में कृष्ण की बांसुरी देख उनसे पूछतीं हैं बार बार कि श्याम जी कहाँ हैं।सखियां प्रिया जु की व्याकुलता को देख उन्हें धीर बंधाती हैं और कहतीं हैं श्यामसुंदर अभी यहीं थे और आते ही होंगे।प्रिया जु को वहीं कदम्ब तले बिठातीं हैं और श्याम जु को ढूँढने लगतीं हैं कि तभी श्यामसुंदर वहीं पेड़ के नीचे प्रकट हो जाते हैं और उन्होंने भी वही धोती और मलमल की कुर्ती पहनी है।श्यामा जु उन्हें अधीर हो निहार रहीं हैं और पूछतीं हैं तुम कहाँ थे।श्यामसुंदर मुस्करा देते हैं और कहते हैं सखियां उन्हें ढूँढने जाएँ और मैं आपको इस साड़ी में एकांत में देख सकुं इसलिए कुछ समय के लिए अंतर्ध्यान हुआ था राधे।
राधा जु ये सुनकर शर्मातीं हैं और श्यामसुंदर की और बढ़तीं हैं।श्यामसुंदर कुछ कहें इससे पहले श्यामा जु उनके मुख पर हाथ रख देतीं हैं।उनकी छुअन से लाल जु व्याकुल हो उठते हैं और श्यामा जु का हाथ अपने मुख से हटाकर अपना हाथ उनकी कमर पर रखते हैं।उनकी नज़र श्यामा जु के पीछे छुपाए हुए हाथ पर पड़ती है और वो उनसे पूछते हैं क्या छुपा रही हो प्रिय।तो प्रिया जु बड़ी कोमलता से धीरे से अपने हाथों में पकड़े फूलों के हार व कंगन कान्हा जु को दिखातीं हैं जिन्हें देख श्यामसुंदर कहते हैं अरे ये तो मेरे पास भी हैं।श्यामा जु उन्हें पुष्पों से बने एक जैसे गहनों को देख उन्मादित हो उठतीं हैं और उन्माद में श्याम जु का मुख चूम लेतीं हैं।श्यामसुंदर एक बार तो हैरान से उनकी और देखते हैं और फिर मुस्करा देते हैं।तभी श्यामा जु शर्मा कर कान्हा जु से मुख फेर लेतीं हैं और जाने लगतीं हैं कि श्यामसुंदर उन्हें थाम कर बाहों में भर लेते हैं।कहते हैं आओ तुम्हें ये गहने पहना दूँ।तभी श्यामसुंदर और श्यामा जु परस्पर एक दूसरे को सजाने लगते हैं।दोनों एक दूसरे को गहने पहनाते कभी शर्माते सकुचाते से एक दूसरे में खोए खोए से हैं।वे दोनों परस्पर इतने करीब हैं कि जैसे दोनों अभी एक और कभी दो प्रतीत होते हैं।एक दूसरे को ऊपर से नीचे तक सजाते जा रहे हैं और उस हर अंग अंग को देखने और छूने का आनंद उन्हें अत्यधिक रोमांचित कर रहा है।इन घड़ियों का अंत ना हो इसलिए श्यामसुंदर प्रिया जु के बालों को भी सुलझाने लगते हैं और धीरे धीरे आज खुले महकते गेसुंओं में ही पुष्प व कलियां सजाते हैं।
तभी श्यामा जु फूलों की पायल और नूपुर भी आगे बढ़ा देतीं हैं और कान्हा जु की तरफ घूम कर अपने दोनों चरण साड़ी को थोड़ा सरकातीं हुईं आगे हो जातीं हैं जिन्हें देख श्यामसुंदर मेहंदी और अलता के रंग और महक से मंत्रमुग्ध से होते जा रहे हैं।वे उन्हें पायल और नूपुर तो पहनाते हैं और साथ ही प्रिया जु के अधरों की तरफ देखते हुए उनसे बहती रस सुधा का नेत्रों से पान करने लगते हैं।श्यामा जु लजाती सी उनके उद्देश्य को समझ जातीं हैं और उन्हें इशारे से ही सहमति दे देतीं हैं।श्याम जु तो तभी प्रिया जु के मुख को अपने हाथों में लेकर प्रेम करने लगते हैं और बहुत देर तक अधरामृतपान करते हैं।वे प्रिया जु व पुष्पों की कोमलता की बेहद तारीफ करते हैं और श्यामा जु भी श्याम जु की भी कई उपमाएं देकर तारीफ करतीं हैं।युगल आज ऐसे ही एक दूजे में डूबे हैं कि उन्हें अपने आस पास क्या हो रहा है इसका कुछ ध्यान ही नहीं कि अचानक से एक सखी की हंसी छूट जाती है और
क्रमशः

Comments

Popular posts from this blog

युगल स्तुति

॥ युगल स्तुति ॥ जय राधे जय राधे राधे, जय राधे जय श्री राधे। जय कृष्णा जय कृष्णा कृष्णा, जय कृष्णा जय श्री कृष्णा॥ श्यामा गौरी नित्य किशोरी, प्रीतम जोरी श्री राधे। रसिक रसिलौ छैल छबीलौ, गुण गर्बीलौ श्री कृष्णा॥ रासविहारिनि रसविस्तारिनि, प्रिय उर धारिनि श्री राधे। नव-नवरंगी नवल त्रिभंगी, श्याम सुअंगी श्री कृष्णा॥ प्राण पियारी रूप उजियारी, अति सुकुमारी श्री राधे। कीरतिवन्ता कामिनीकन्ता, श्री भगवन्ता श्री कृष्णा॥ शोभा श्रेणी मोहा मैनी, कोकिल वैनी श्री राधे। नैन मनोहर महामोदकर, सुन्दरवरतर श्री कृष्णा॥ चन्दावदनी वृन्दारदनी, शोभासदनी श्री राधे। परम उदारा प्रभा अपारा, अति सुकुमारा श्री कृष्णा॥ हंसा गमनी राजत रमनी, क्रीड़ा कमनी श्री राधे। रूप रसाला नयन विशाला, परम कृपाला श्री कृष्णा॥ कंचनबेली रतिरसवेली, अति अलवेली श्री राधे। सब सुखसागर सब गुन आगर, रूप उजागर श्री कृष्णा॥ रमणीरम्या तरूतरतम्या, गुण आगम्या श्री राधे। धाम निवासी प्रभा प्रकाशी, सहज सुहासी श्री कृष्णा॥ शक्त्यहलादिनि अतिप्रियवादिनि, उरउन्मादिनि श्री राधे। अंग-अंग टोना सरस सलौना, सुभग सुठौना श्री कृष्णा॥ राधानामिनि ग

वृन्दावन शत लीला , धुवदास जु

श्री ध्रुवदास जी कृत बयालीस लीला से उद्घृत श्री वृन्दावन सत लीला प्रथम नाम श्री हरिवंश हित, रत रसना दिन रैन। प्रीति रीति तब पाइये ,अरु श्री वृन्दावन ऐन।।1।। चरण शरण श्री हरिवंश की,जब लगि आयौ नांहि। नव निकुन्ज नित माधुरी, क्यो परसै मन माहिं।।2।। वृन्दावन सत करन कौं, कीन्हों मन उत्साह। नवल राधिका कृपा बिनु , कैसे होत निवाह।।3।। यह आशा धरि चित्त में, कहत यथा मति मोर । वृन्दावन सुख रंग कौ, काहु न पायौ ओर।।4।। दुर्लभ दुर्घट सबन ते, वृन्दावन निज भौन। नवल राधिका कृपा बिनु कहिधौं पावै कौन।।5।। सबै अंग गुन हीन हीन हौं, ताको यत्न न कोई। एक कुशोरी कृपा ते, जो कछु होइ सो होइ।।6।। सोऊ कृपा अति सुगम नहिं, ताकौ कौन उपाव चरण शरण हरिवंश की, सहजहि बन्यौ बनाव ।।7।। हरिवंश चरण उर धरनि धरि,मन वच के विश्वास कुँवर कृपा ह्वै है तबहि, अरु वृन्दावन बास।।8।। प्रिया चरण बल जानि कै, बाढ्यौ हिये हुलास। तेई उर में आनि है , वृंदा विपिन प्रकाश।।9।। कुँवरि किशोरीलाडली,करुणानिध सुकुमारि । वरनो वृंदा बिपिन कौं, तिनके चरन सँभारि।।10।। हेममई अवनी सहज,रतन खचित बहु  रंग।।11।। वृन्दावन झलकन झमक,फुले नै

कहा करुँ बैकुंठ जाय ।

।।श्रीराधे।। कहाँ करूँ वैकुण्ठ जाए.... जहाँ नहीं नंद, जहाँ नहीं यशोदा, जहाँ न गोपी ग्वालन गायें... कहाँ करूँ वैकुण्ठ जाए.... जहाँ नहीं जल जमुना को निर्मल, और नहीं कदम्ब की छाय.... कहाँ करूँ वैकुण्ठ जाए.... परमानन्द प्रभु चतुर ग्वालिनी, ब्रजरज तज मेरी जाएँ बलाएँ... कहाँ करूँ वैकुण्ठ जाए.... ये ब्रज की महिमा है कि सभी तीर्थ स्थल भी ब्रज में निवास करने को उत्सुक हुए थे एवं उन्होने श्री कृष्ण से ब्रज में निवास करने की इच्छा जताई। ब्रज की महिमा का वर्णन करना बहुत कठिन है, क्योंकि इसकी महिमा गाते-गाते ऋषि-मुनि भी तृप्त नहीं होते। भगवान श्री कृष्ण द्वारा वन गोचारण से ब्रज-रज का कण-कण कृष्णरूप हो गया है तभी तो समस्त भक्त जन यहाँ आते हैं और इस पावन रज को शिरोधार्य कर स्वयं को कृतार्थ करते हैं। रसखान ने ब्रज रज की महिमा बताते हुए कहा है :- "एक ब्रज रेणुका पै चिन्तामनि वार डारूँ" वास्तव में महिमामयी ब्रजमण्डल की कथा अकथनीय है क्योंकि यहाँ श्री ब्रह्मा जी, शिवजी, ऋषि-मुनि, देवता आदि तपस्या करते हैं। श्रीमद्भागवत के अनुसार श्री ब्रह्मा जी कहते हैं:- "भगवान मुझे इस धरात