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निकुँज गिलहरी , भाग 10 , संगिनी

भाग-10

अरे ये क्या हो जाता है बार बार उन्मादित हो उठती हूँ।रोकना चाहती हूँ खुद को पर कहाँ कहाँ रोकुं।मेरे प्राणप्रियतम युगलवर हैं ही ऐसे उनकी दया करूणा अपार है।एक झलक पाकर आनंदित हो उठना स्वभाविक ही है ना।
अब कहाँ चले अरे कहाँ चले ये सब।रूको मुझे भी तो आने दो।लगता है नोका विहार के लिए जा रहे हैं पर नहीं ये तो अभी और सघन वन की और चल दिए सब।क्या करेंगे वहाँ।और यहाँ प्रियाप्रियतम जु को अकेले छोड़ चले।चलो खैर मैं भी चलती हूँ।यहां सब सखियां ही सखियां हैं जो श्यामसुंदर संग आए सखागण को सखी बनने को कह रही हैं लेकिन कोई भी उनकी बात मानने को तैयार नहीं।सबका एक ही कहना है कि पहले कन्हैया को सखी बनाओ तो मानें।
आज सखियां कान्हा को सखी नहीं बनाना चाहतीं और वो तो निकुंज के नायक हैं ना।तो सब में इस बात को लेकर खूब नोक झोंक हो रही है।मैं तो चली अपने श्यामाश्याम जु पास गिलहरी हूँ ना मुझे कौन रोक सकता है भला।
आहा। यहाँ तो श्यामा जु मोहन के कंधे पर सर रख कर बैठी हैं और श्यामसुंदर उनके सौंदर्य की रूप माधुरी पान करते एक टक उन्हें निहार रहे हैं।श्यामसुंदर विभिन्न उपमायें देकर राधारानी को प्रसन्न करने के प्रयास में हैं।
हे राधे त्रिभुवन सुंदरी तुमसे किसी की क्या तुलना करूँ तुम तो अत्यंत सुंदर अति कोमल चाँद सितारों से भी परे सूर्य से भी अत्यधिक प्रकाशमय सुंदरतम से भी सुंदरतम सुंदरता की मूर्त हो।दिव्यता और रूहानियत की पहचान है तुमसे।तुझे नख शिख तक कोई भी उपमा दे सकुं ऐसी सामर्थ्य ही नहीं।
श्यामसुंदर के मुख से ऐसी बातें सुन कर राधेरानी कुछ प्रसन्न नहीं हैं।कहती हैं मोहन तुम भी तो तीनों लोकों के स्वामी हो अगर तुम मेरी सुंदरता की व्याख्या नहीं दे सके तो और कोई क्या देगा।श्यामसुंदर फिर एक बार कोशिश करते हैं श्यामा जु को चंदा समान शीतल सौम्य व सुंदर बताते हुए उपमा देने लगते हैं कि प्रिया जु नाराज़ हो उनसे मान जताने लगती हैं कि देखो ना कान्हा चाँद तो घटता बढ़ता रहता है क्या कहीं से भी वो तुम्हें मुझसा लगता है।अब जब कन्हैया किसी तरह भी श्यामा जु को खुश नहीं कर पाते और उन्हें प्रतीत होने लगा कि प्रिया जु को अपने सौंदर्य का अभिमान हो आया है तो वो वहाँ से अपनी असामर्थ्य देख अंतर्ध्यान हो जाते हैं।
आह।।ये क्या कहाँ गए मोहन
मोहन मोहन ओ मोहन आओ ना प्यारे कहाँ गए तुम श्यामसुंदर।हे प्रिय आओ ना मुझे तन्हा छोड़ ना जाओ कहीं।जानते तो हो तुम मैं तुम बिन एक पल ना रह सकती हूँ प्यारे जु।मुझे क्षमा करो और मेरे समक्ष आओ।हाँ दोष मेरा ही है मैं अभिमानवश ना जाने तुमसे क्या क्या कह जाती हूँ।सच में मैं हूँ ही नहीं तुम्हारे काबिल।तुम इतना नेह करते और मैं अभागिन कुछ ना समझ पाती हूँ।हा श्याम।।हा श्याम करतीं श्यामा जु तब व्याकुल हो उठती हैं।वो अधीर हुईं श्यामसुंदर को पुकारते पुकारते निकुंज में यहाँ वहाँ उनको ढूँढने लगतीं हैं।
अरी राधा जु की ऐसी व्याकुलता अधीरता देख मुझे भी बड़ा अभाव सा लग रहा है।ना जाने कान्हा कहाँ होंगे।श्यामा जु उस समय वहाँ अकेली हैं और उनकी दशा देख मैं भी व्याकुल हो रही हूँ कि किसी तरह उनकी सहायता कर सकुं।पर क्या कर सकती हूँ मुझमें ऐसी सामर्थ्य कहाँ।राधे कान्हा जु को और मैं सखियों को ही पुकार सकती हूँ और तो अब मुझसे क्या हो।
क्रमशः

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