भाग-9
अगर हृदय की पुकार सच्ची होगी तो जल्दी ही वो रसमयी सखी संग होगी।खैर अभी मेरी ही वेदना पुकार में बहुत कमी है जो उस तक ना पहुँची है।अभी मुझमें ही तो अभाव हैं जो उसे ना खोज सकी।उसी का बल था जो आज मैं यहाँ हूँ अन्यथा मुझमें तो किंचित भाव भी ना है।
मेरे प्राणप्रियतम
देखो तो तनिक नज़र जो हटी श्यामा जु से तो दीनदयाल की पड़ी उन पुष्पों पर जो मैं वहीं छोड़ आई थी।बोले प्रिय ये क्या है तो जैसे ही उन्होंने पूछा तो सब की नज़र वहीं गई।आपका श्रृंगार अभी पूर्ण नहीं लगता है सखियां आपको पुष्प हार पहनाना भूल ही गईं।इतना ही कहना था कि प्रिया जु तो शर्मा कर उनकी ओर झुक गईं और प्रियतम ने लपक कर वो हार और गजरे झट से उठा लिए।वे जानते थे कि अगर ललिता सखी जु ने उनसे कोस लिए तो वो सौ मिन्नतों से मानेंगी कि श्रृंगार को मैं अपने हाथों से पूरा करना चाहता हूँ ।
हाए।देखो ना प्राणप्रिय को जैसे वे इस अभागिन की भी सुधि लिए हों।जैसे वे जानते ही हों इन पुष्पों का प्रयोजन कि ये यहां क्यों हैं।और कोई समझे या ना समझे लेकिन मेरे युगलवर अंतरयामी हैं वे जानते ही हैं कि ये तो~~~~~~
श्याम जी ने उन गजरों को हाथ में लिया और पहना दिया श्यामा जु की नागिन सी काली वेणी में जिसे पहले ही सखियों ने सुंदर हीरे जड़ित बंदनवार से सजा कर बांधा था।और दूसरे जब उन्होंने हार उठाया तो वो श्यामा जु ने उनसे लेकर उनके ही गले में पहना दिया।
आहा।अरी इस पगली के पागलपन का छोर ही ना रहा।कदम्ब की आड़ में ही अश्रु बहाती जैसे नाच ही उठी कि आज तो इसकी खुशी का कोई ठिकाना ही नहीं।सोच रही कि क्या हुआ जो कोई ना जाने है ये गजरे और हार कहाँ से आए और बेशक खुद ना भी पहना सकी।और इन पुष्पों की शोभा तो देखो कैसे जा लगे हैं श्याम जु के कंठ और प्रिया जु के तो वेणी से लिपटे गुस्ताख उनके गालों को ही चूम रहे हैं।हाए।कैसे कहुं इन नन्हे हाथों से अभी उन पुष्पों की महक गई भी ना है कि वो लगे महकाने प्रियाप्रियतम के तन को और छेड़ उनके मन के तारों को महकाने लगे निकुंज की पवन को।मेरा तो रोम रोम उनकी इस महक से पुलकित हुआ और अश्रुजल बिंदु इस देह को मिट्टी को जैसे बारिश की बूँदें महका रही हों वैसे ही महका रहे कि मस्ती में आज नृत्यांगना सा अचल मन धरा पर धम्म धम्म पग ताप दे ज्यों थिरक उठा।
क्रमशः
Comments
Post a Comment