गोपाल'संग'कजरी गाय-4
वंशी बजाते श्याम कजरी के संग नंदभवन तो पहुँच जाते हैं लेकिन कजरी अभी भी गहरे भावावेश में ही है।पूरी राह वो श्यामसुंदर के दिव्य पर धूल धूसरित व श्यामा जु के भव्य दर्शन का आनंद उठाती मदमाती सी चलती रही और खूंटी से बंधी हुई उसी दिव्य आवेश में ही गुम है।दिन ढला शाम हुई कि अचानक ही कजरी ने रम्भाना आरम्भ कर दिया।
कान्हा मईया यशोदा के पास बैठे मईया को अपनी प्यारी चिकनी चुपड़ी बातों से रिझा रहे हैं।राधे जु के बारे में बतियाते वो इठला रहे हैं।जब से किशोर अवस्था में कदम पड़े हैं तब से माँ ने शायद ही कभी कोई दूसरी वार्ताा सुनी होगी कन्हैया के मुख से।नहीं तो पहले कभी कबार बालसखाओं की या गोपियों की शिकायत भी कर ही लिया करते थे लल्ला।पर अब कुछ और सूझता ही नहीं है लाडली के सिवाए।सखियों की शिकायत तो चाहे करें कभी से कि वो राधा और कान्हा के मिलने में घड़ी घड़ी अपनी मनुहार करवाती हैं और अब सब सखागण जान से प्यारे हो गए हैं क्योंकि वो हमेशा कन्हैया का ही पक्ष लेते हैं राधे की सखियों के समक्ष।पर अब मईया भी क्या करे।जानती हैं लल्ला का भी इसमें क्या कसूर।सारा दोष तो बाली उमरीया का ही है ना और मईया भी खूब आनंद से लाल के मुख से अपनी लाडली की रोमांचक बातें सुनती हैं। राधे के सौंदर्य व कुशलता की बातें मोहन नटखट के मुख से सुनकर मईया अपनी चूनर में मुख छुपा-छुपा कर हंसती हैं और कभी मुस्करा कर अपने लल्ला की बलाईयां लेती हुईं कहती हैं कि मेरा लाल कितना भी बड़ा हो जाए पर रहेगा चंचल और भोला ही।कान्हा की मटकती आँखों की पुतलियों में मईया बार-बार श्यामा जु के ही दर्शन करतीं हैं और कहती हैं हाँ हाँ काले कनुवे तेरा बियाह गोरी-गोरी सुंदर सुशील राधे से ही करवाए दूंगी बस तेरे बाबा को आ जाने दे तो बात करने बरसाना भेज दूंगी और खिलखिला कर हंस देतीं हैं।तब कान्हा मईया से रूठ जाते हैं कि क्यों मोहे कारा कनुवा कहे है।मईया तू भी अब मुझसे ज्यादा स्नेह राधे से ही करने लगी है ना।पहले तो तुझे मुझ जैसा कोई ना दिखता था और अब राधे गोरी है तो मैं कनुवा हो गया।अब बता मैं कैसे गोरा हो जाऊं।तू राधे को दुल्हनिया बनवा देगी मेरी तब तो मुझसे नेहा लगाना भूल ही जाएगी ना।ऐसे कहते कहते श्यामसुंदर मुख फेर लेते हैं।लो अब पड़ गए लेने के देने।पर मईया तो मईया हैं ना।झट से बात बदल देतीं हैं और घुमा फिरा कर फिर से राधे जु की तारीफ पर कान्हा को बहका फुसला कर ले ही आतीं हैं और कान्हा भी मान जाते हैं।अब वो छोटे तो नहीं हैं पर मईया से रूष्ट भी नहीं रह पाते ना।
भोले श्यामसुंदर मईया की हंसी को समझ तो जाते हैं पर माता यशोमती के आनंद के लिए खुद ही हास परिहास का माध्यम बनने से नहीं हिचकते।
कान्हा मन ही मन सोच रहे हैं कि आज कजरी को खास देखरेख की आवश्यकता है और वो मईया को रोक खुद वहाँ कजरी के पास जाते हैं और उसे प्रेम से सहलाते हैं।उसने आज शाम होने तक भी कुछ ना खाया है ये जान वो कजरी को माँ के हाथों बनाए लड्डू व रोटी खिलाते हैं।कजरी श्यामसुंदर के हाथों भोग पाकर कुछ देर शांत होकर बैठ जाती है पर आज ना जाने वो क्यों बार बार रम्भाने लगती है।नंदबाबा और मईया को लगता है कि जैसे आज कजरी कुछ ठीक नहीं है तो श्यामसुंदर माँ बाबा को कह कर कि मैं देखता हूँ बाहर आँगन में जाते हैं।वहीं कजरी के पास बैठे कान्हा उसके कानों में कुछ कहते हैं जिसे देख माँ बाबा अपने कान्हा का भोलापन देख मुस्कराते हैं।
पर यहाँ श्यामसुंदर तो कजरी की दशा को जानते हैं कि हाँ कजरी मुझे पता है तुझे क्या हुआ है।आज देख लिया ना तूने भी किशोरी जु को और जान गई है ना कि वो जादूगरनी है कोई।वन विहार से लौटते समय मेरी भी विचित्र दशा होती है राधे से मिलने के बाद।आज तू भी उसी वियोग को सह नहीं पा रही है ना और मेरी तरह उसे बार बार पुकार उठती है।देख कजरी अब माँ बाबा को सोने दे और तू भी सो जा।मुझे तो नींद आने वाली है नहीं राधे की याद में पर तू सो जा।कल सुबह जल्दी उठ कर फिर तुझे राधा से मिलवाने ले चलूंगा।इतना सब कह कर कन्हैया मधुर वंशी बजाने लगते हैं।कजरी तो सो जाती है पर कन्हैया चाँद में राधा जु की छवि को निहारते हुए उनसे बातें करते रहते हैं।माँ बाबा तो सो गए और कजरी भी तो कान्हा वंशी तो नहीं बजा रहे और राधे को भी सो जाने को कह कर वे खुद भी स्वप्न संगम की आस लेकर सो जाते हैं।उनके अधरों पर मदमाती मुस्कन है प्रिया मिलन की हर रात्रि की तरह ही पर आज तो कजरी की सोती आँखों में भी युगल की छवि ही है वही जो उसने वन में देखी।
कजरी का चित्त अभी भी वहीं अटका है।सुबह तक वो इसी आवेश में है कि वन में फिर से श्याम के साथ श्यामा जु के दर्शन होंगे।सुबह ही श्यामसुंदर उठकर आते हैं पर ये क्या?कजरी को तो कन्हैया में भी किशोरी जु दिख रहीं हैं।वो भाव में यही महसूस कर रही है कि मईया नहीं श्यामा जु ही आज दूध दुहने आईं हैं।
क्रमशः••••••••
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