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कभी सताये कभी तड़पाये , संगिनी

कभी सताए कभी तड़पाए
कभी आए कभी देर लगाए
कभी कहे मैं तेरा
कभी कहे तू मेरी
कभी रूलाए
कभी हसाए
सब रंग हैं उसी के
बाहर भीतर भीतर बाहर
खुद ही नाचे खूब नचाए
कभी विरहअग्नि
तो कभी रससुधा
खुद ही बहे
खुद ही बहाए
गले लगे खुद के
खुद को गले लगाए

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