भाग-12
बांसुरी की तान पर और वो भी जब श्यामा जु अपने अधरों से छू दें तो सब दिशाएं गूँज उठती हैं।मीठी मीठी मधुर ताल से ताल बजा देते हैं निकुंज के सभी जीव एवं पक्षी भी।अर्धखिली कलियां खिल जाती हैं यमुना जी की लहरें कल कल करती लय दे रही हों जैसे और पवन तो महक ही गई है प्रिया जु के अधर रस को छू कर।अनवरत प्रेम की छटा बिखर रही हो ज्यों सम्पूर्ण जगत में।
और कान्हा जी की तो क्या कहुं भूल ही गए हों जैसे सब।प्रिया जु के अधरों से लगी बांसुरी से तो आज उन्हें भी जलन ही हो रही हो जैसे लेकिन फिर भी उन्हें वंशी की धुन से अपना ही नाम उच्चारण सुनना अपनी और खींच रहा है और वो श्यामा जु को जिनके नेत्र अभी भी भीगे ही हैं रोकना तो चाहते हैं कि अब वो उनके पास ही हैं पर नहीं रोक पाते।तभी उन्हें श्यामा जु के श्रमित होने का आभास होता है और वो उन्हें रोक देते हैं।
रूको प्रिए की ध्वनि कानों में पड़ते ही श्यामा जु के कर्णफूल भी झन्करित हो उठते हैं और श्यामा जु तो श्यामसुंदर जी से लिपट ही जाती हैं और कभी ना अभिमान करने का वायदा करके उनसे यूँ कभी ना छोड़ जाने का आग्रह ही करतीं हैं।उनके विशाल कतरारे मोटे मोटे नयनों से आंसु बहते ही चले जा रहे हैं और वो कान्हा से लिपटीं लिपटीं हुई उनसे प्रेम मनुहार करती जा रहीं हैं।उनके हृदय की धक धक तरंगायित लहरियां श्यामसुंदर जु को व्याकुल कर रहीं हैं कि उनसे राधे जु का यूँ रोना सहा नहीं जाता।वो उन्हें अपने हृदय से कस कर लगाते हुए उन्हें शांत होने को कहते हैं और कभी फिर ना कहीं जाने का वायदा करते हैं।दोनों ना जाने कब तक यूँ ही लिपटे लिपटे हृदयुदगार भरी असीम प्रेम वार्तालाप में डूबे रहते हैं।सब सखियां कुछ क्षण तो युगल को स्नेह से निहारती रहती हैं फिर वे चल कर अपनी अपनी सेवा सामग्री इकट्ठा करती हुईं जाने लगती हैं।कुछ तो भोज्य सामग्री जुटाती हैं तो कुछ सखियां आज क्या कैसा विचित्र खेल खेला जाए ये सोचने लगती हैं।
ललिता सखी जु और कुछ और सखियां श्यामश्यामा जु को लिवा लाती हैं और उन्हें भोजन के लिए आमंत्रित करती हैं।सखियों ने ऐसा भोजन तैयार किया है कि जिसकी महक से मुझे भी भूख लगने लगी है और चल देती हूँ सबके पीछे पीछे।
प्रिया जु श्यामसुंदर को पहला कोर्स अपने हाथों से खिलाने लगती हैं कि श्यामसुंदरजु उसी कोर को श्यामा जु के कोमल हाथों से लेकर उन्हें खिला देते हैं।श्यामा जु झुके नयनों से ही कोर मुख में डलवाती हैं और फिर श्याम जु को खिलाती हैं।
कुछ समय पश्चात अब सब सखियां मिल बैठतीं हैं युगल के साथ।कोई कुछ तो कोई कुछ कह कर प्रियाप्रियतम को आनंद दे रही हैं।तभी एक सखी कहती है कि चलो अब कुछ खेलते हैं जैसा कि उन्होंने पहले से ही तय कर रखा है।एक सखी एक काला वस्त्र लाती है और कहती है कि ये वस्त्र पहले श्याम जु की फिर श्यामा जु की आँखों पर बांधा जाएगा और जो जीतेगा वही आज दूसरे की सेवा करने का मौका पा सकेगा।श्यामसुंदर तो ये सब सुन आनंदित हो जाते हैं और श्यामा जु प्रतियोगिता मैं ही जीतूंगी कह कर इतराने लगती हैं और सखियों की टोली में जा छुपती हैं।
क्रमशः
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