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सब सखिया व प्रियाजु श्यामसुन्दर की प्रतिक्षा में ... लीला भाव आँचल सखी

सब सखिया व प्रियाजु श्यामसुन्दर की प्रतिक्षा मे कुंज मे बैठी है।
तभी एक तरूणी प्रियाजु व सखियो के समक्ष आकर कहती है,बडभागिनी ,सुकुमारी किशोरीजु को वंदन.....
सब आश्चर्य से इन्ही की ओर देखने लग गयी...ये कोई नयी ही गोपी लग रही,अत्यधिक आकर्षण है इनमे...सब मंत्रमुग्ध सी निहार रही......प्रियाजु इनका परिचय पूछती है....सखी तुम कहाँ से आयी हो?
वो नयी सखी बोली राधेजु मै पास के गाँव से आयी हू.....
मैने आपके और श्यामसुुन्दर के प्रेम की बहुत चर्चा सुनी है।अतः ऐसे प्रेम के दर्शनो के लिए अातुर हो मै यहा चली आयी......
आप दोनो के दर्शन कर मै स्वयं को धन्य समझूगी...
किंतु आप तो अकेली ही है,श्यामसुन्दर कहाँ है...
तब एक सखी इनको बताती है की हम उन्ही की प्रतिक्षा मे है...
प्रियाजु अत्यंत स्नेह से इनको अपने निकट बैठा लेती है।
बातो बातो मे ये सखी कहती है,श्यामाजु मुझे कुछ ज्योतिष विद्या का ज्ञान है,यदि आप आज्ञा दे तो मै आपका हाथ देखना चाहती हू.....
श्रीजु अपना कर-कमल आगे कर देती है....
सखी प्रियाजु का हाथ देख कहती है...
राधे तुम्हारे श्यामसुन्दर तुमसे अत्यधिक प्रेम करते है।(प्रियाजु कुछ लजाती है).....
हाँ राधे,वो तुमसे अत्यधिक प्रीती करते है,परंतु ये भी सच है की वे पर स्त्रियो का संग भी करते है....
वे दूसरी ब्रजांगनाओ के संग भी प्रेम वार्ता व क्रिडा करते है राधे....
सुनकर राधे मुस्कुराकर बहुत मीठे व शांत स्वर से कहती है....
सखी,तुम सत्य कहती हो...
किंतु तुम पूर्ण सत्य नही जानती...सुनो,मै बताती हू।
मेरे श्यामसुन्दर अत्यधिक भोले,सुन्दर व कोमल ह्रदय है।
वो इतने सुंदर है की प्रत्येक स्त्री उन्हे देख......
उन पर अपना सर्वस्व न्योछावर करने को आतुर हो उठती है,और मेरे प्रियतम इतने सुह्रदय है की उनके प्रेम निवेदन को अस्वीकार नही कर पाते.....बस इसी कारण तुमको लगता की वो निष्ठुर है......
नयी सखी बोली,राधे तुम अत्यधिक भोली हो जिसके कारण तुम्हे श्यामसुन्दर के अवगुण भी गुण दिखाई देते है।
तुम श्यामसुन्दर को कोमल ह्रदय कहती हो किंतु जब वह किसी अन्य स्त्री को स्पर्श करते है तब उन्हे तुम्हारे ह्रदय की कोमलता का भान नही होता क्या......
अब राधेजु इन नयी सखी को समझाने के लिए जैसे ही इनके कर को स्पर्श करती है.....
दोनो ही एक प्रेममयी स्पर्श से कंपित हो जाते है.....
इस सखी के अंगो से निलिमा झाकने लगती है.....
देखते ही देखते ये पूर्ण श्यामसुन्दर रूप मे परिवर्तित हो गयी....
श्रीजु व सखिया सब बात समझ गयी...
श्यामसुन्दर के नैनो मे प्रेमाश्रुओ की अधिकता होने लग गयी....
दोनो यू ही एक दूसरे के कर को पकडे प्रेममग्न हो बैठे है....

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