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निकुँज गिलहरी भाग 15

भाग-15

श्यामसुंदर सखियों के पीछे पीछे उनके कुंज में पहुँच जाते हैं और सखी से आग्रह करते हैं कि आज श्यामा जु की साड़ी और श्रृंगार की सारी तैयारी वे अपने हाथों से करेंगे।सखियां तुरंत मान जाती हैं क्योंकि आज के खेल में कोई निर्णय तो ना लिया जा सका तब भी लाल जु स्वंय आए हैं कुंज में और सेवा याचना कर रहे हैं सखियों से।
श्यामसुंदर एक नीले रंग की साड़ी जिस पर कोई हथबुनाई का या कोई जरी गोटापत्ती इत्यादि का काम नहीं किया गया है निकालते हैं और सखियों से अलग अलग भांति के पुष्प लाने के लिए कहते हैं।वे नीले रंग की साड़ी पर नीचे की तरफ से पुष्प लगाना आरंभ करते हैं।सबसे नीचे वे जूही के पुष्प लगाते हैं और फिर चमेली के पुष्पों से उसे सजाते हैं।साड़ी के बीचोबीच वे सुंदर मोगरे के पुष्प लगाते हुए ऊपर के छोर की तरफ बढ़ते जा रहे हैं।उनके हाथों में अब खुशबूदार रात की रानी की अधखिली कलियां हैं जिन्हें वे ऊपर लगाने के बाद फिर साड़ी की ओढ़नी पर बिखरा कर दूसरे पुष्पों के साथ मिला कर लगा रहे हैं।कान्हा जी के कोमल हाथों का स्पर्श पाकर कोमल पुष्प अपना जीवन सफल हुआ मानते हैं  और इधर कान्हा जी भी खुद को भाग्यशाली मान प्रिया जु के लिए साड़ी तैयार करते करते भावों के समन्दर में ही डूबे हैं।

कुछ देर ठहरती संग मेरे श्रृंगार तेरा मैं कर देता
आलिंगन में लेकर तुझको यौवन तेरा मैं गढ़ देता।
वह प्रेम प्रियतमा जैसा था वह रूप रुक्मिणी जैसा था
वह चंद्ररात की बेला थी वह दृश्य स्वपन के जैसा था
मोह भरा था उस मंथन में अश्रु कहां से आए थे?
मेरी चाहत के दर्पण में कुछ पुष्प तभी मुरझाए थे।
तू कह देती मैं सुन लेता तू कह देती मैं बुन लेता।
उस विरह की प्रेम कहानी को तेरे होंठों से चुन लेता।
खामोशी थी तेरी बातों में मैं बिन बोले ही पढ़ लेता।
मैं हूँ अब भी उस शेष प्रेम संग मेरे टूटे हुए ह्रदय संग।
अपनी प्रेम कहानी के उलझे और झूठे किस्सों संग।
शिथिल कहां है भाव प्रेम का मुझे चाहिए छांव प्रेम का।
सूख चुके इस किस्से पर मैं मीठा मलमल मंढ़ देता।
एक बार पलटके देखा होता मुझको तूने जो जी भरके।
मृगनयनी सी तेरी आँखों में मैं प्यार का काजल भर देता।
कुछ देर ठहरती संग मेरे श्रृंगार तेरा मैं कर देता।

श्यामसुंदर यूँ ही भावों में डूबे हुए साड़ी को
पुष्पों से सजा देते हैं और फिर बारी आती है चोली की जिसे कान्हा जी पूरा का पूरा नरम महकते गुलाबी लाल रंग की गुलाब की पंखड़ियो से भर देते हैं।फिर वे पीले जुही के पुष्पों से राधे जु के लिए माला बुनते हैं और लाल और गुलाबी गुलाबों से कर्णफूल बनाते हैं।हाथों पर पहनाने के लिए हल्के नीले रंग के मोगरे का प्रयोग करते हैं और सफेद कलियों से कमरबंध बनाते हैं।पैरो की पायल के लिए वे जूही चमेली की कलियांचुन चुन कर उन्हें जोड़ें लेते हैं।अब अंत में वे सफेद मोगरे से श्यामा जु के लिए वेणुगुंथन हार पिरोते हैं।कलियों से ही वे उनके लिए गजरा भी बनाते हैं।
सखियां आश्चर्यचकित सी लाल जु के द्वारा तैयार की गई साड़ी और श्रृंगार पर बलिहार जाती हैं।आज उन्होंने लाल जु को कई बार आग्रह किया कि क्या वो उनकी मदद करें पर श्यामसुंदर हैं कि आज किसी की भी कोई भी बात को अनसुनी ही किए ही जा रहे हैं।
क्रमशः

Comments

  1. महोदय ये कविता मेरी लिखी हुई है. आपने बिना मेरा नाम दिए इसे प्रकाशित कर लिया. ये एक लेखकर को शोभा नहीं देता है.

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