सखी नृत्यांगना नित्य प्रति
प्रियतम के द्वार
रिझाने मनाने जाती सखा को
नव किशोरी राधे के संग
सखी भाव निभाती वो
गजरे बिंदिया पायल से
किशोरी को सजाती
देख सुंदर सलोनी को
खुद को भूल जाती वो
प्रेम करती वो सांवरे से
हार तिलक अर्पण कर
दिल में लजाती वो
चूम कर कदम युगल के
निकुंज सेवा में लग कर
आनंद नेह से मदमाती वो
कभी राधे तो कभी मोहन का
वेश धर कर
सखियों संग प्रेम बढ़ाती
प्रिया मेरी स्वामिनी
प्रियतम में मोहन को पाती
करती नादानियां
गुस्ताख सखी कहाती वो
पड़कर अनूठे प्रेम में
वजूद खोकर अपना
नम आँखों से मुस्काती
रूह उसकी तरसती पल पल
सांवरे के रंग राची
श्याम धुन सुनते ही वो
बिन घुंघरू थिरक कर
घूम झूम कर इतराती
छवि बसाकर नयनों में श्याम की
आँखों ही आँखों में नेह लगाती
मूक अधरों से बिन छुए ही
मदमस्त प्याले रस के पीकर
मदहोश होकर राधे के चरणों में गिर कर
मधुर स्नेह दान पा जाती
देख युगल को प्रसन्न समक्ष
आँखों में आनंद भर कर
हृदय में ले उनको छुपाती
सुषुप्त पड़ी वो ना जाने
मिलन हुआ या बिछड़ गई
अश्रुजल से जग कर भीग वो जाती
विशुद्ध प्रीत करती वो
खुद ही प्रेमी प्रेमास्पद थी
अभिन्नता का भेद पाती
निहारी जब से मूर्ति युगल की
अब भिन्न होकर वो
विरहअग्नि में तड़प जाती
कैसा ये रोग लगा है
खुद ही ना समझ पाती
भूख प्यास निद्रा में वो
युगल से ही तृप्ति पाती
बोलन चलन जीवन हुआ दुष्कर
पर प्रियतम सा हंसता रंग
अधरों पर सजा कर
मन में विरह ताप सुलगाती
दिया है वियोग पिया ने
प्रसाद समझ जीवन बिताती
प्रकृति के कण कण में श्याम
और युगल प्रेम में डूबे हर एक को
श्यामा का ही रसरूप बताती
कभी जगत में तो कभी निकुंज में
प्रेम और सौंदर्य की खोज में वो
श्यामाश्याम श्यामाश्याम ही रटती
कभी सदेह तो कभी भाव से
गहन आलिंगन की तरंगों में
आगोश-ए-सपन्दन सिहरन में
मन ही मन सब पा जाती
प्रियाप्रियतम मिलन को
नित्य नवीन लीला में ढल कर
प्रेम अनुराग में भर कर वो
नृत्य कर कुंज निकुंज में
कृष्ण हर्षिणी हो जाती
वंशी की तान पर
प्रिया संग नेह सुधा में डूब कर
प्रेम प्रसादी श्यामा जु से पाती
॥ युगल स्तुति ॥ जय राधे जय राधे राधे, जय राधे जय श्री राधे। जय कृष्णा जय कृष्णा कृष्णा, जय कृष्णा जय श्री कृष्णा॥ श्यामा गौरी नित्य किशोरी, प्रीतम जोरी श्री राधे। रसिक रसिलौ छैल छबीलौ, गुण गर्बीलौ श्री कृष्णा॥ रासविहारिनि रसविस्तारिनि, प्रिय उर धारिनि श्री राधे। नव-नवरंगी नवल त्रिभंगी, श्याम सुअंगी श्री कृष्णा॥ प्राण पियारी रूप उजियारी, अति सुकुमारी श्री राधे। कीरतिवन्ता कामिनीकन्ता, श्री भगवन्ता श्री कृष्णा॥ शोभा श्रेणी मोहा मैनी, कोकिल वैनी श्री राधे। नैन मनोहर महामोदकर, सुन्दरवरतर श्री कृष्णा॥ चन्दावदनी वृन्दारदनी, शोभासदनी श्री राधे। परम उदारा प्रभा अपारा, अति सुकुमारा श्री कृष्णा॥ हंसा गमनी राजत रमनी, क्रीड़ा कमनी श्री राधे। रूप रसाला नयन विशाला, परम कृपाला श्री कृष्णा॥ कंचनबेली रतिरसवेली, अति अलवेली श्री राधे। सब सुखसागर सब गुन आगर, रूप उजागर श्री कृष्णा॥ रमणीरम्या तरूतरतम्या, गुण आगम्या श्री राधे। धाम निवासी प्रभा प्रकाशी, सहज सुहासी श्री कृष्णा॥ शक्त्यहलादिनि अतिप्रियवादिनि, उरउन्मादिनि श्री राधे। अंग-अंग टोना सरस सलौना, सुभग सुठौना श्री कृष्णा॥ राधानामिनि ग
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