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कान्ह बिरहनी कुछ पद

सन्ध्या श्यामहु गईया बुलाबै !!🌷

संध्या भयो बनै  बन चलत , अब  नन्दभवन  राह  बताबै !
सुरहिनी पद्मिनी गैया कु , टेर  टेर आपन  पास बुलाबै !
मृदु  बंसी  बैन  सुन गैया , सुध भूल खींची चली आबै !
संगहि ग्वाल बाल भैया संग ,कान्ह चलै कछु बतियाबै !
आजहू "बिरहनी" कुटी काट रही , हरी  चलै  मदमाबै !

🌷🌷🌷जय श्री कृष्ण🌷🌷🌷

******

रबी ढल्यो गोधूलि बेर भयो !2!

कान्ह गौ चराबत  खेलत , अबही  थक  सौ  गयो !
बुलाबन  आपन  धेनु गौ , बेनु  बादन टेर  कियो !
सुनी सुरभि सुरहिनी पद्मिनी , धाबत आय गयो !
तस  चल्यो गोपाल गोप गौ संग , लकुटी लियो !
बृज रेणु मण्डित अलकन , चमकत किरण पयो !
कारी गैया बिच कारे कान्हहु , कारी कम्बली लये !
"बिरहनी" संध्यन श्याम  लखी , बोरी बोरी भयो !!कान्ह चलै भबन गौ ग्वालन संग !

गैया  चराबत बेर भयो अबही, थकत हारत हर अंग !
सखा  सखिन  संग  लीला  करत , अब भयो निढंग !
बंसी  बैन  सौ  हार  मिटाबत , जो  ह्वै  कान्हहु  संग !
लखी अद्भुत छबी श्यामहु , पलक नाही लेत ह्वै दंग !
चलत लटपटात बलखात , ह्वै नाही कान्ह कछु ढंग !
आपन  रस  आपहु  लेत , हरी  मद ह्वै  हैं  हर  अंग !
"बिरहनी"  कान्ह  निरखत , निखरै   बिरही  कै  रंग !

******

सन्ध्या श्यामहु गईया बुलाबै !!🌷

संध्या भयो बनै  बन चलत , अब  नन्दभवन  राह  बताबै !
सुरहिनी पद्मिनी गैया कु , टेर  टेर आपन  पास बुलाबै !
मृदु  बंसी  बैन  सुन गैया , सुध भूल खींची चली आबै !
संगहि ग्वाल बाल भैया संग ,कान्ह चलै कछु बतियाबै !
आजहू "बिरहनी" कुटी काट रही , हरी  चलै  मदमाबै !

🌷🌷🌷जय श्री कृष्ण🌷🌷🌷

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रबी ढल्यो गोधूलि बेर भयो !2!

कान्ह गौ चराबत  खेलत , अबही  थक  सौ  गयो !
बुलाबन  आपन  धेनु गौ , बेनु  बादन टेर  कियो !
सुनी सुरभि सुरहिनी पद्मिनी , धाबत आय गयो !
तस  चल्यो गोपाल गोप गौ संग , लकुटी लियो !
बृज रेणु मण्डित अलकन , चमकत किरण पयो !
कारी गैया बिच कारे कान्हहु , कारी कम्बली लये !
"बिरहनी" संध्यन श्याम  लखी , बोरी बोरी भयो !!

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गोधूलि बेला हरी दिब्य झलक हौ !

भानु असति इंदु उदय अस , नभ दिब्य छटा छलक हौ !
गौ  संग  चलत  बजाबत बेनु , रस चहुँ ओर छिटक हौ !
रेणु उरत गौ चलन सौ , हरी सीस परै चमकै अलक हौ !
सबही निरखत कान्हहु , अपलक देखन कौ ललक हौ !
"बिरहनी" कान्ह  निरखत , बैरन  काहू याही पलक हौ !

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कान्ह चलै भबन गौ ग्वालन संग !

गैया  चराबत बेर भयो अबही, थकत हारत हर अंग !
सखा  सखिन  संग  लीला  करत , अब भयो निढंग !
बंसी  बैन  सौ  हार  मिटाबत , जो  ह्वै  कान्हहु  संग !
लखी अद्भुत छबी श्यामहु , पलक नाही लेत ह्वै दंग !
चलत लटपटात बलखात , ह्वै नाही कान्ह कछु ढंग !
आपन  रस  आपहु  लेत , हरी  मद ह्वै  हैं  हर  अंग !
"बिरहनी"  कान्ह  निरखत , निखरै   बिरही  कै  रंग !

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कान्ह पिय कै कटारी नैन !!

जित जित चलत कटत ही  उत उत , मिटत  लूटत सगरी चैन !
अखियन मिली पिय अखियन सौं , बाबरी भई लखी पिय सैन!
नैनन  महँ  नयन  मिलन छल  जाबन , रोबत बीतै सगरी  रैन !
एकहूँ पल  दर्द दवा  बिनु  तलफत , बरसत मचलत रह बेचैन !
"बिरहनी" जरत मरत अहि क्षण क्षण , उर खाय पिय दृग बैन !

*******

महनर मोहन मोहि मोर मन कै !!

तन मन घन मोहि मोहन, मोह्यो मोर जीबन कै !
सुख दुःख मोहि मोहन , मोह्यो निज मधुबन कै !
कली मल मोहि  मोहन , मोह्यो  पाप  जलन कै !
पर निज मेटि  मोहन ,  मोह्यो  आप  अपन  कै !
मोहि मोहि मोहन मेरो , मोह्यो सर्बस बिरहन कै !
"बिरहनी" मोह्यो  मोहन , मिटै  बिरह  अगन कै !

********

छोटे से ललन बृज लीला करै !

छोटे   चरणन   सौ  डोलत  झूमत , बृज  महँ  मोद  भरै !
कबहूँ घुटरूनि चलत नन्द आँगन , रज सौ तन पोटी परै !
कछु  पकड़ी कबहूँ चरण खरै , कबहुँ हाय ! हरी गिर परै !
तोतली  ते  कछु  बोलत खोलत , मुख सौ रस निर्झर झरै !
निज छाँही देखत पकड़त , कबहुँ  संग  कछु  जाय  लड़ै !
"बिरहनी" निरखत लालन लीला , सर्बस हिय बलिहार करै !

*********

उधौ कान्हहु हौ मोरे प्राण !!

कान्ह  प्रेम  करै न करै , हम करेंगी प्राण सामान !
तन-मन-धन  जीबन  बलि , सर्बस  करूँ  कुर्बान !
ज्ञान ध्यान मान मानै जेहि , मन बस  करै  महान !
मोहि मन मोहन बस्यो , नेकहु  नाही  कछु ध्यान !
क्षण  कान्ह  प्राण  टेरत , भूलेहुँ  सबही कौ ज्ञान !
बिरहन कान्ह मन  बस्यो , बचेहुँ नहीं कण स्थान !

उधौ दूर रखू आपन ब्रह्म ज्ञान !!

ब्रह्म ध्यान धरु करू आसन , पै  पाउ  कहाँ  कान्ह  समान !
ध्यान धरि चहुँ प्रकाशन  माहि , बहु करूँ कठिन कर ध्यान !
मिलै कहँ कोटि रबी पुँजन , अंजन थिर न रहति अखियान !
ध्यान कान  कहाँ  मिलै  उधौ , जेहि  मिलै पिय  सुन  तान !
कान्ह हियलग मिलै जेहि , जपति मिलैगो नाही जन्महि ध्यान !
ज्ञान ब्रह्म कहाँ  हौ मनहर ,जेहि हौ मोरे पिया प्राण सुजान !
प्राण छाड़ी देबे सब अबला , पर छुटै ही न मेरो पिया प्राण !
"बिरहनी" कान्ह कबहूँ नाही बिसरै , नाही हौ ज्ञान स्थान !

उधौ मोर पिया प्राणन कहिहौ !!

मोर प्राण  संग  मथुरा  ले ग्यो , तन छोरी बृज  काहे  भुलहिहौ !
प्रेम  रस अपार तोरे उर धारै ,काहू घृत बनाय अगन लगहिहौ !
छोड़न जान्यो  जाबन  हौ  मथुरा , तिन  प्रीति  काहू  लगहिहौ !
मुरली मादक मदमक्त किनी , अब पोरी  छोड़ी काहे भुलहिहौ !
प्रीति प्राण कान्ह करी छोर्यो , अबही निस्ठुर कौ जाय बतयिहौ !
"बिरहनी" कान्हा न माने तबही

उधौ हम कैसेहु ज्ञान ध्यान धरु !!

एकहु क्षण नाही चैन पड़ै , मोहन बिन अकुलात रहूँ !
दृग महँ ध्यान न थिर  रहै , नैनन नीर नित बहात रहूँ !
मनहि मोर मनमोहन बसै , बिन मोहन जरी जात रहूँ !
ध्यान हर  क्षण प्रीतम रहै , पिय  पियहि  बुलात  रहूँ !
"बिरहनी" कान्ह प्राणन रहै , कबहुँ न दोउ कात  रहूँ !

नेक उधौ सुनियौ हमरी बात !!

कान्हा  पिया   बसै  रे  मेरो  , रोम   रोम  अहि  गात !
जानै  न  अबही  अंदर , मोहन   हैं  या  मोर  प्रणात !
श्यामहूँ संग बनै रे ऐसौ , उन बिन कछु नाही दिखात !
एकहि  सौं  प्रीति  होवै  उधौ , एकहि हिय बस जात !
हम  प्रित  असहाय  अबला  कै , पिय यादही सुहात !
बिसारी यादौ जोग करूँ ,निस्ठुर बोलै नाही सकुचात !
"बिरहनी" प्राण देबै उधौ ,पै पिय यादहि नाही भुलात !

उधौ मन मोर मनमोहन बसै !!

सुखौ  रस  रसना  नाही लेत हैं , जेहि नित रसही चसै !
सुस्क दिबस नेक कैसेहु बिताई  ,जेहि नित रसही रसै !
मूक  ध्यान  कैसेहु  धरे कोउ , जेहि बिरह जरैही हसै !
हिय पाषाण  कैसेहु  बनै  , जेहि  नित पिय बाण डसै !
ज्ञान ध्यान कैसेहू धरु , जब एकहि मन पिय महँ लसै !
"बिरहनी" मन ठौर नाही है , पिय ऐसौ मोहि हौ कसै !

कान्हहु  मोर उर प्राणन हौ !

सखियन हिय मनुहार पिया , मोर  सर्बस जानन  हौ !
टेर  टेर  पिय  पियही , अबही पियहु मोहे पानन  हौ !
चित्त कैसेहु  मूक परै  उधौ , गुंजत  पिय  तानन  हौ !
आबै नाही चाहै आबै , नित पियहि मोहे बुलानन हौ !
"बिरहनी" एकहूँ पियहि पै , सर्वस ही बलि जाबन हौ !

कान्ह मोरे सर्बस प्राणनाथ !!

कान्ह  मोरे जान  प्राण  हौ , हौ  मोरे  त्राणनाथ !
दीन हीन सबही कै कान्हा , हौ एकहि दीनानाथ !
उधौ जबहि प्राण छाड़ी दउ ,ते केहू धरि ध्यानाथ !
पिया बिनु अबही बन्यो अस सखियन सबै अनाथ !
"बिरहनी" कान्ह मिलै , तस बनै सुहागन सनाथ !!

क्रमशः.......

चलु पिय झूलन लगाओ री
आओ री सखी आओ री !

चलु सखी री यमुना के तीर ,
जहाँ बहे नित कलकल नीर ,
चलु चल झूलन बनाओ री ,

आओ री सखी आओ री
चलु पिय झूलन लगाओ री...
आओ री सखी आओ री ...

जहाँ कदम्ब की छाई छैया ,
चरत इत उत गोकुल की गैया ,
चलु चल झूलन सजाओ री ,

आओ री सखी आओ री ,
चलु पिय झूलन लगाओ री....
आओ री सखी आओ री...

जहाँ सुक पिक की मीठी कुकन ,
मयूर मयुरी की प्यारी थिरकन ,
चलु चल झूलन सजाओ री

आओ री सखी आओ री ,
चलु पिय झूलन लगाओ री ....
आओ री सखी आओ री...

जहाँ चहुँ ओर पुष्प बाटिका सरोबर ,
दिब्य  प्रकृतिक  छाबै  छटा मनोहर ,
चलु चल झूलन लगाओ री ...

आओ री सखी आओ री ,
चलु पिय झूलन लगाओ री ....
आओ री सखी आओ री...

जमुना  जी  के  तट  आजु , चल्यो  साखियॉ सारी !
बिरहनी संग झूलन लगाबै , मिली कदम्ब की डारि !!

लाओ री सखी लाओ री
मिल संग झूलन सजाओ री

स्वर्ण डोरी डारि बांधी लाओ ,
चन्दन पट लै लाय लगाओ ,
आजु कदम्ब डारि सजाओ री

लाओ री सखी लाओ री
मिल संग झूलन सजाओ री
लाओ री सखी लाओ री

मनी माणिक्य हीरा लै आओ ,
झूलन में अति सुंदर जड़ाओ ,
आजु झूलन सजाओ री ,

लाओ री सखी लाओ री
मिल संग झूलन सजाओ री
लाओ री सखी लाओ री

पुष्प कली केसर लै लाओ ,
लतन पतन लै लाय लगाओ ,
आजु सखी झूलन महकाओ री ,

लाओ री सखी लाओ री
मिल संग झूलन सजाओ री
लाओ री सखी लाओ री

अद्भुत सुंदर अति प्यारा बनाओ ,
बृजराज बोरी होबै ऐसी सजाओ ,
आजु हिय हरी हार सजाओ री ,

लाओ री सखी लाओ री
मिल संग झूलन सजाओ री
लाओ री सखी लाओ री

सबरी  सखी आजु  मिली कै , संग  बिरहनी आय !
जमुना तीर कदम्ब डारि महँ , झूलन लीनी लगाय !

चलु री सखी पिया बुलाओ री ,
चलु री सखी सबरी चलु री..

पिया को चलु सखी आय बुलाये ,
झूलन में मिल सबरी आय झुलाये ,
चलु मिल आय रिझाओ री...

चलु री सखी सबरी चलु री..
चलु री सखी पिया बुलाओ री ,
चलु री सखी सबरी चलु री..

पिय को आजु झूलन झुलाये ,
पिय प्यारी दोउ आज बुलाये ,
चलु री सखी पिय मनाओ री ,

चलु री सखी सबरी चलु री..
चलु री सखी पिया बुलाओ री ,
चलु री सखी सबरी चलु री..

पिय को आजु नब नेह दिखाऊ ,
हिय हार मनु हार बनाऊ ,
चलु री सखी पिय मनाओ री ,

चलु री सखी सबरी चलु री..
चलु री सखी पिया बुलाओ री ,
चलु री सखी सबरी चलु री..

पिय प्यारी दोउ संग झूलन ,
कदम्ब डारि जमुना की कूलन ,
चलु री सखी  पिय बताओ री,..

चलु री सखी सबरी चलु री..
चलु री सखी पिया बुलाओ री ,
चलु री सखी सबरी चलु री..

सबरी सखियाँ मिली कै , संग बिरहनी जाय !
आपन हाव भाव सौ , पिय कु आजु मनाय !!

ओ कान्हा...!चलो चलो जमुना के तीर ,
हम साखियॉ झूलन लगाई हैं ..

अति सुंदर झूलन कदम्ब की डारि ,
लगाई है साखियॉ मिलकर सारी ,

ओ कान्हा चलो जमुना के तीर ,
हम सखियाँ झूलन लगाई हैं ..

स्वर्ण जड़ित अति मनोहर प्यारी ,
हीरा जड़ित याही चमकत भारी ,

ओ कान्हा चलो जमुना के तीर ,
हम सखियाँ झूलन लगाई हैं ..

पुष्प कली केसर से झूला सजाई ,
इत्र बनफुलो है झूला महकाई

ओ कान्हा चलो जमुना के तीर ,
हम सखियाँ झूलन लगाई हैं ..

सखियाँ सबकी हिर्दय धरि है ,
सबकी अब यही आस खड़ी है ,

ओ कान्हा चलो जमुना के तीर ,
हम सखियाँ झूलन लगाई हैं ..

ओ कान्हा चलो जमुना के तीर ,
हम सखियाँ झूलन लगाई हैं ..

झूलन झूलै पिय प्यारी , आजु चलै सखियन संग !
बिरहनी पिय बलिहार ह्वै , सबै पै अद्भुत रंग !!

पिय प्यारी झूला झूली रहै ,
झूला झूली रहै पिय प्यारी झूला झूली रहै ..

यमुना तीर नीर बहै कलकल ,
सखी मंदही समीर बहै

पिय प्यारी झूला झूली रहै ,....

छारी सारी कदम्ब डारि ,
सखी अहि कदमन सभी रहै

पिय प्यारी झूला झूली रहै ,

पुष्प लतामहँ कदमन झुलाहि ,
पै पिय प्यारी बिराज रहै

पिय प्यारी झूला झूली रहै ,

पिय प्यारी छबी लखी आजु ,
सखी री कछु कहूहूँ नाही कहै

पिय प्यारी झूला झूली रहै ,

पिय प्यारी झूलहिँ  झुलाउ ,
"बिरहनी" नितही चहै

पिय प्यारी झूला झूली रहै ,
झूला झूली रहै पिय प्यारी झूला झूली रहै

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