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जयति वेणुधर चक्रधर शंखधर पद्मधर गदाधर शृंगधर वेत्रधारी।
मुकुटधर क्रीटधर पीतपट-कटिनधर कंठ कौस्तुभ धरन दु:खहारी।
मत्स को रूप धरि बेद प्रगटित करन, कच्छ को रूप जल-मंथनकारी।
दलन हिरनाच्छ को बाराह को रूप धरि, दन्त के अग्र धर पृथ्वि भारी।
रूप नरसिंह धर भक्त रच्छा करन, हिरनकश्यप-उदर नख बिदारी।
रूप बावन धरन छलन बलिराज को, परसुधर रूप छत्री सँहारी।
राम को रूप धर नास रावन करन, धनुषधर तीरधर जित सुरारी।
मुशलधर हलधरन नीलपट सुभगधर, उलटि करषन करन जमुन-वारी।
बुद्ध को रूप धरि बेद निंदा करन, रूप धरि कल्कि कलजुग-सँघारी।
जयति दशरूपधर कृष्ण कमलानाथ, अतिहि अज्ञात लीला बिहारी।
गोपधर गोपिधर जयति गिरिराजधर, राधिका के बाहु पर बाहु धारी।
भक्तधर संतधर सोइ ’सब संतन’ धर, बल्लभाधीष द्विज वेषकारी॥
यह पद श्रिया दीदी , देहली से ,
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