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निकुँज गिलहरी भाग-14

भाग-14

आहा।।ऐसा मधुर संगीत कि आज श्यामसुंदर तो रूकने का नाम ही नहीं ले रहे।राधे जु की वीणा की तान में बहते चले जा रहे हैं कि सखियां भी सब भूल कर अब नाचने गाने लगती हैं।प्रतियोगिता की जगह आज अनुपम रास लीला ने ले ली है।जब सब सखियां नृत्यांगना हो जाती हैं तो श्यामसुंदर राधे जु से भी नाचने के लिए आग्रह करते हैं।श्यामा जु शर्माई सी नहीं में उत्तर देती हैं लेकिन लाल जु अब कहाँ नहीं सुनने वाले।वो तो पीछे ही पड़े हैं उनके और वंशी की धुन को और गहरा देते हैं कि श्यामा जु को कान्हा की बात माननी ही पड़ती है और वो भी मस्ती भरे आनंद सागर में डूबने लगतीं हैं।गूँज उठता है ब्रह्मांड जैसे उनके मधुर पायल नूपुर की ध्वनि से और धरा भी कंपायमान हो रही है।यमुना जु की संगीतमय लहरें उठ उठ कर श्यामाश्याम जु के साथ नृत्य करने को आतुर।सारा नभमंडल चाँद सितारे नाच उठे हैं।सूर्य की किरणें जो मद्धम होते होते भी आकाश की लालिमा से झांक झांक कर इस आनंद सागर का लुत्फ ले रहे हैं।सम्पूर्ण प्रकृति आनंद में डूबने लगी है धरा अम्बर जैसे बरसों से बिछड़े आज मिल रहे हों जैसे।नदियों के छोर किनारे जो कभी ना मिलते इस संगीत महोत्सव में लहरों से ताल मिलाते मिल रहे हों जैसे।आज जो भी इस रास लीला का आनंद ले रहा है चाहे वो कोई भी हो सब खुद को सौभाग्यशाली मानते हुए भावविभोर हो उठे हैं।
कई घंटे बीत चुके हैं राधे जु और सखियों को यूँ ही नाचते गाते कि श्यामसुंदर अचानक वंशी बजाना रोक देते हैं कि श्यामा जु अब कहीं थक ना जाएँ।पर अब वो रूकना नहीं चाहतीं कि श्याम जु लय टूट जाने का बहाना कर बैठ जाते हैं और श्यामा जु को भी संग बिठाकर अपने प्रगाढ़ नेह से उनकी थकान उतारने का प्रयास कर रहे हैं कि श्यामा जु भी उनके कंधे पर सर रख देतीं हैं और कहतीं हैं मोहन आप भी तो श्रमित हो ही ना।तो दोनों यूँ ही काफी समय तक बैठे रहते हैं।
दूसरी और सब सखियां वहाँ से एक एक कर जाने लगती हैं।कुछ एक प्रियाप्रियतम की सेज शय्या सजाने में जुट जाती हैं और कुछ खाने पीने का प्रबंध करने लगती हैं।सबके चेहरे खिले खिले से हैं।किसी के भी मुख पर लेष मात्र भी श्रम नहीं और व्यस्त हैं अपने प्राणप्यारे और प्राणप्यारी की सेवा में।
और इधर श्यामसुंदर और प्रिया जु अभी भी नोका में ही विराजमान हैं अष्टसखियों के साथ कि अब बातों बातों में इनकी हंसी की फुव्वारों में लाल जु की शरारतें और राधे जु की अटकेलियां आरम्भ होती हैं और वो यमुना जी के जल से एक दूसरे को अंजलि भर जल से भिगोने लगते हैं।और लौटते लौटते वे सब तट आने से पहले ही यमुना जु में ही उतर जाते हैं।कुछ समय तक जल विहार के दौरान वे जैसे यमुना जु की मन की बात ही पूरी कर रहे हों।यमुना जी खुद को धन्य मान उनके अंगस्पर्श से स्पंदित हो कर और भी अधिक भावभावित हो उठीं हैं और तेज बहाव से बहती हुईं जैसे अपने करकमलों से सुगंधित पुष्प जो धरा पर बिखरे हैं बहा लाती हैं और प्रियाप्रियतम को अर्पित करती हैं।लाल जु श्यामा जु को और सब सखियां लाल जु को अंजलि भर भर भिगोती जा रही हैं यूँ ही जलक्रीड़ा करते करते वे सब अब भीग चुके हैं तो एक सखी आकर उन्हें बुला भेजती है।
भीगे श्यामसुंदर और भीगी श्यामा जु हाथ में हाथ ले यमुना जु से बाहर आते हैं।दोनों के भीगे वस्त्र उनसे लिपटे हुए उनकी अंगकांति को और चार चाँद लगा देते हैं।उनके अंगों से झरता पानी बारिश की बूँदें हों जैसे ऐसे धरा को भिगोते हुए निकुंज के कण कण को महका रहा है और वे दोनों आपस में भी लिपटे सिमटे से बाहर निकल अद्भुत सौंदर्य की छटा से दो भिन्न कभी अभिन्न आकृतियों में शोभायमान होते हुए पूरे वातावरण को ही अपनी आकृति के आभामंडल में भिगो रहे हैं।
तभी सखियां उनके लिए नए वस्त्रों का प्रबंध करने चली जाती हैं कि श्यामसुंदर प्रिया जु को वहीं उनकी सखियों के साथ छोड़ वस्त्र तैयार कर रही सखियों के साथ उनके पीछे पीछे चल देते हैं।अब ना जाने उनके मन में क्या चल रहा है।
क्रमशः

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