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मनमोहन मीत पिया तुम्हें लिख दूँ पन्नों पर कुछ लिख दूँ तुम पढ़ लेना , संगिनी

मनमोहन मीत पिया
तुम्हें लिख दूँ पन्नों पर
कुछ लिख दूँ तुम पढ़ लेना
भावों की कतार लिख दूँ
छू कर तुम किताब कर देना
मन तेरे आगोश में हुआ शब्दकोश
उंगलियां बनी कलम हिए की
तूझे अंतस का सारा सम्मान लिख दूँ
हृदय वीणा के बजते हैं
जो तार तेरे नाम लिख दूँ
तुम्हें अपना मान लिख दूँ
या फिर इत्मीनान लिख दूँ
तुम से सुकून है मेरा
तुम्हें मैं आभार लिख दूँ
बच्चों की मुस्कान लिख दूँ
वंशी की मधुर तान लिख दूँ
लिख दूँ तुम्हें कृष्ण कन्हैया
खुद को शब्दावली लिख दूँ
आँखों को तेरी चाँद सितारे लिख दूँ
होंठों को गुल-ए-गुल्फाम लिख दूँ
भुजाओं को समन्दर लिख दूँ
डूब जाने का इरादा लिख दूँ
अंगों को तेरे चंदन लिख दूँ
महक जाने का एहसास लिख दूँ
खुशबू आए पुष्पों की
तुझे गुलिस्तां की पहचान लिख दूँ
गेसुओं को तेरे चाँदनी रात लिख दूँ
कह दो तो आफताब लिख दूँ
निज आँखों का दीप जलाकर
पूजा का स्थान लिख दूँ
तेरी सूरत सूरज लिख दूँ
या प्रेम का परिचायक लिख दूँ
कहो तो रस आनंद का भगवान लिख दूँ
खुद को लिख दूँ एक तपस्या
तुम्हें मैं वरदान लिख दूँ

नहीं नहीं मुझमें हैसियत इतनी
कि अक्षरों में तुम्हें बांध सकुं
नहीं नहीं हूँ तुलसी रसखान कोई
बांची ना कभी कुरान कोई
तुम जान लो मेरे मन की
ऐसे डूबे मेरे जज्बात नहीं
नहीं नहीं लिख पाती कुछ भी मैं
मुझमें राधा मीरा सा भाव नहीं
कहना बस इतना सा है कि
कुछ भी मुझे आता जाता नहीं
कैसे भी करके डूबी रहना चाहती हूँ तुम में
बस दो आशीष हो ये पूरी आस मेरी
खो जाने का तुम में एहसास भर दो
टूटी सी कलम और
फूटी सी वाणी को प्रिए
मौन मौन मौन कर दो
भर कर मुझमें रंग अपने
बस प्रेम का इक एहसास करदो
राधा की चूड़ियों की खनक
पायल की झनकार कर दो
भर दो प्राणों में तान प्रिए
मुझे तुम मीरा का भजन कर दो
प्रेम प्रेम करे हर कोई
तुम मुझे अपना प्रेम कर दो
इस तन को निष्प्राण करके
मन का एक सुरभित मधुर एहसास कर दो

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