भाग-17
प्रिया जु और श्यामसुंदर कुछ समय से भिन्न हुए हैं और उनके चेहरों पर अधीरता व्याकुलता अब स्पष्ट दिखने लगी है।भिन्न होकर भी दोनों ने एक पल भी एक दूसरे को नहीं बिसराया और दोनों ही विरह में भी मिलन का ही आभास करते हैं और मिलन में भी अमिलन ही भासता है इन्हें।और एक विलक्षणता ये भी कि आज सखियां भी प्रियाप्रियतम के असीम प्रेम को देखकर उनके मिलन के लिए उतनी ही अधीर व्याकुल हैं।वे भी श्यामसुंदर जु से आग्रह करतीं हैं कि चलो कन्हैया अब प्रिया जु आपकी राह तकतीं होंगी और उधर श्यामा जु से भी सखियां यही कह रही हैं कि श्यामसुंदर आपका इंतजार करते होंगे।आखिर सब सखियां हैं तो श्यामा जु की अंतर्मन की विभिन्न भावपूर्ण विस्मृतियां ही तो स्वभाविक ही है कि वो इनके अंतर्मन की अनकही अभिलाषाएं भी समझ ही जातीं हैं।
तो लो चलीं सब श्यामा जु के संग कान्हा की तरफ और श्यामसुंदर भी प्रिया जु की तरफ आने के लिए कुंज से निकल चुके हैं।सखियों के हाथों में वो दिव्य वस्त्र हैं जो प्रियाप्रियतम जु ने एक दूसरे के लिए तैयार किए हैं।दोनों ही भीतर व्याकुलता लिए तेजी से आगे बढ़ रहे हैं कि श्यामा जु चलते चलते वहीं थम जातीं हैं और कहतीं हैं कि नहीं वो श्यामसुंदर जु से मिलना ही नहीं चाहतीं।सब सखियां समझती हैं कि प्रिया जु लजा रहीं हैं और पहले वहाँ पहुँचने में उन्हें संकोच हो रहा है।
दरअसल प्रिया जु को तो मिलन के बाद होने वाले प्रियाप्रियतम के अलगाव से भय लग रहा है और वो इन इंतजार की घड़ियों को ही मिलन की आस में मधुर जान जी लेना चाहतीं हैं।उधर ऐसा ही हाल है कुछ कान्हा जु का कि जो मिलन के लिए हैं तो व्याकुल मगर जानते हैं कि प्रिया जु इस मिलन में बिछुड़ने का एहसास बनाए ही रखतीं हैं।उन्होंने तो जैसे ठान ही रखा हो कि प्रियतम सुख ही उनका सुख है वे मिल कर भी उनसे मिल ही नहीं पातीं कभी।सखियां दोनों के मन के भावों को समझते हुए माहौल को बदलने के लिए एक दम से खिलखिला कर हंस पड़तीं हैं और लाल जु और लली से हंसी ठिठोली करने लगतीं हैं।
अब जैसे ही श्यामसुंदर राधे सम्मुख आते हैं तो वे उन्हें जल्दी से एक दूसरे का श्रृंगार करने को कहतीं हैं कि हमें भी देखना है कि दोनों दिवाने एक जैसे ही श्रृंगार में कैसे शौभायमान होते हैं।जैसे ही वे श्यामसुंदर जु की तरफ वस्त्र बढ़ातीं हैं जो श्यामा जु ने उनके लिए बनाए हैं वे हैरान हो जाते हैं और प्रिया जु की तरफ प्यार से निहारते हुए उन्हें आँखों ही आँखों में धन्यवाद देते हुए वस्त्र उनसे ले लेते हैं।
खुद अपने हाथों से प्रिया जु को खुद तैयार किए हुए वस्त्र देते हैं जिन्हें प्रिया जु देख आश्चर्य में पड़ जातीं हैं।हालाँकि वो जानतीं हैं कि ये श्यामसुंदर ने ही अपने हाथों से बनाए हैं फिर भी रसांन्नद की खातिर कह देतीं हैं कि जाओ मोहन अब हम तुम से रूठे।श्यामसुंदर चकित से रह जाते हैं कि सब सखियां भी बोल पड़तीं हैं कि हाँ लाल जी आपने ज़रूर ही छल किया है।भला ऐसा कैसे संभव हो सकता है कि आप भी वही सब करें जो प्रिया जु ने किया है।श्यामसुंदर बहुत कहते हैं कि नहीं ऐसा कुछ नहीं है लेकिन सखियां उनकी बात सुनने को तैयार ही नहीं।वे तो प्रिया जु के इशारे मात्र से ही श्याम जु को झुठलाने लगतीं हैं पर श्याम जु भी कुछ कम ना हैं वे एक एक सखी से पुछने लगते हैं कि चलो बताओ तो क्या छल है इसमें।तब कोई सखी कहती है कि आपने लली को देखा होगा आपके लिए ऐसे वस्त्र पुष्पों से सजाते या किसी सखी को भेज पता लगवा लिया होगा।नहीं तो पुष्प ले जा रही सखियों से पूछा तो होगा ही।तो यहाँ फिर से तर्क वितर्क शुरू हो जाते हैं।
क्रमशः
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