सुबह की किरण बोली
उठ देख क्या नजारा है
मैने कहा रूक
पहले दर्शन करलू मेरे श्याम का
जो सुबह से भी प्यारा है
जय श्री श्याम
हाँ पता है साँवरिया....
हमें तुम्हारे ये इतराने का राज़....
तुम्हारे चाहने वाले
तुम्हारी शान में इतने
कशीदे जो पढते हैं.....
ज़ख्म नहीं सजदे कहो
दिल के दिल को फरमान कहो
रूह तक लफ्ज ही जाते
गर महसूस आंसु दिल से होते तो
जिस्म से होते हुए तिनके भी महसूस तड़प के होते
इश्क हुआ ही नहीं ना होगा ये कभी
ना आरजू जगेगी
चाहत है महबूब ही
है सच्चा आशिक वही
ना अपनी कोई जुस्तजू होगी कभी
आसां ना करना इश्क को
जब चाहत ही ना गमगीन होगी
फुर्सत मिलेगी ना इश्क में
जब महोब्बत ही इबादत से होगी
इश्क की गली में तुफां उठते हैं
यहां दिल वाले ही सौदे किया करते हैं
दर्द से होते हैं नाते रूह के
और अश्क भी रूह से पिया करते हैं
महोब्बत को यूँ भुलाया नहीं जाता
गर हो सच्चा इश्क तो याद दिलाया नहीं जाता
गल्तफहमी में भी निभ ही जाता है
याद करने वाले को इश्क कह कर जताया नहीं जाता
गिन कर महोब्बत के शिकवे नहीं होते
याद करने के भी फलसफे नहीं होते
इश्क में याद कुछ रहता ही नहीं
महोब्बत के कभी कोई तराज़ु नहीं होते
सोचती हूँ अब झूठ कहना सीख लूं
बोझ रूह का कुछ हल्का कर लूं
इश्क तो मुनासिब ही हुआ है
अश्रुओं को सीने में पर दफना रखा है
लफ्जों में जो लिख जाती हूँ
उससे ज्यादा तो छुपा रखा है
नुमाइश तो ज़माने भर को लगी
हमने जज्बातों को तमाशबीन बना रखा है
अपनी रूह से सजदे करूँ
तेरी महोब्बत से इबादत हो
लिखने से लफ्ज़ ना दिल बहलता है
नाम दिल में जो हो वही पन्नों पर उतरता है
इश्क इश्क करा नहीं जाता
लफ्ज़ों में कुछ भी कहा नहीं जाता
कब्जा तो हुआ है रूह पर तेरी
सच की बादशाहत रहने दो
झूठा इश्क होता ही नहीं
लिख सकें जो अफसाने प्यार के
ऐसे कलम-ए-पाक लफ्ज ही नहीं
उनकी चौखट का पत्थर भी नायाब है
पत्थर बन भी सको तो ये भी अमुल्य जायदाद है
ठोकरें खाई तूने ज़माने भर की
उनकी ठोकर ने छुआ तब तो भगवान होती
अश्क ना यूँ ही बहे होते
ना इश्क के कसीदे पढ़े होते
गर ना होती ये इबादत तेरी
तो नाम ले के तराने उनके ना गाए होते
लौट सको जो महोब्बत की राहों से
ये ना होगा आसां कभी
की है उन जैसी महोब्बत गर
तो लौट जाने की कोई राह नहीं बनी
ठोकर तुम्हें लगा दूँ ऐसी मेरी महोब्बत नहीं
तू जो बुलाकर ठुकरा दे तो भी तू इबादत मेरी
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