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निकुँज गिलहरी भाग-13

भाग-13

इधर ललिता सखी जु श्यामसुंदर जु की आँखों पर पट्टी बाँध देती हैं और सब सखियां यहाँ वहाँ हर और श्यामा जु को छुपाते हुए घेर लेती हैं।श्यामसुंदर बंद आँखों से डोलते हुए श्यामा जु की और बढ़ने लगते हैं जो उनसे मुख फेर कर खड़ी हैं पर श्याम जु जाकर उनका हाथ पकड़ लेते हैं।सब सखियां हैरान होतीं हैं कि ऐसे कैसे लाल जु ने सबको छोड़ श्यामा जु को ही जा पकड़ा।
लेकिन दस्तूर से अब श्यामा जु की बारी आती है तो सखी उनके नेत्रों पर हल्के से वस्त्र बाँध देती हैं और श्यामसुंदर राधे जु के उल्ट दिशा में जा छुपते हैं लेकिन आश्चर्य श्यामा जु भी किसी भी सखी को बिना छुए सीधे श्याम जु का ही हाथ थाम लेतीं हैं।ऐसा कई बार दौहराए जाने पर भी हर बार यही होता रहा।सब सखियां समझ नहीं पा रहीं कुछ भी कि कैसे अब इस खेल का अंत हो।वो श्यामाश्याम जी से इस खेल का रहस्य पूछती हैं तो वे दोनों बस एक दूसरे की तरफ देख कर मुस्करा देते हैं कोई उत्तर नहीं देते।तो सखियां ही आखिरकार इनसे हार मान जाती हैं और मिलकर नोका विहार के लिए यमुनातट चलने का आग्रह करती हैं।प्रियाप्रियतम जिस राह से चलते हैं वहाँ पूरी राह में पुष्प ही पुष्प बिछे हैं और श्यामसुंदर श्यामा जु के साथ चलते ऐसे सुशोभित हो रहे हैं  जैसे नवनवायमान प्रेमरस में डूबे कोई मदमस्त प्रेमपिपासु प्रेमपथ पर बढ़े जा रहे हों।वे धीरे धीरे से चलते जा रहे हैं।सब सखियां अभी भी आश्चर्य चकित ही हैं कि आज ऐसा क्या हो गया है और वो एक और नए खेल के बारे में सोचने लगती हैं।
नोका तक पहुँचते ही श्यामसुंदर श्यामा जु का हाथ थाम लेते हैं और श्यामा जु को नोका पर चढ़ने में उनकी सहायता करते हैं।श्यामा जु शर्माई सकुचाई सी कान्हा जी का हाथ पकड़ लेती हैं और नोका में लगे झूले पर उनके संग विराज जाती हैं।अभी भी उनकी पलकें झुकी सी हैं और वो लजाई हुई हैं।
ललिता सखी जु और विशाखा जु संगीत वाद्ययंत्र लेकर आती हैं। ना जाने अब इनके मन में क्या है।श्यामसुंदर जी से वंशी बजाने को कहती हैं और राधे जु को वीणा देकर वो सब अपने अपने वाद्ययंत्र लेकर बैठ जाती हैं।कहती हैं संगीत प्रतियोगिता होगी अब और फिर निर्णय लिया जाएगा।
प्रतियोगिता शुरू होती है लेकिन अब इसका कोई अंत ही नहीं।कान्हा की वंशी की धुन और राधे जु की वीणा के नाद ने ऐसा समय बांधा है कि पूरा निकुंज संगीत की मधुर मधुर लहरियों से गूँज उठता है।सब तरफ मधुर ध्वनियों से सारा वातावरण महक गया और सब पुष्प पक्षीगण मंत्रमुग्ध हो अपने अपने युगल प्रेम में शोभायमान होने लगे हैं।ऐसी ताल से ताल जुड़ी है कि सखियां भी प्रतियोगिता को भूल बैठी हैं और उस प्रेम सरोवर में प्रेमबद्ध होकर संगीत लहरियों में बहने लगी हैं।और श्यामाश्याम तो रस सुधासागर खुद ही हैं कि आज दोनों में से कोई हार मानने को तैयार ही नहीं।आज जैसे इन्होंने सखियों को हराने की ठान रखी हो।दोनों ही सुंदर अति सुंदर प्रेम धुन बजाते जा रहे हैं और सखियां और गहरा और गहरा डूबती चली जा रही हैं।
यूँ ही प्रेमसुधा में बहते बहते ऐसा समा बंधा है कि किसी को भी भान ही नहीं और मध्यहान का समय हो जाता है कि एक चतुर सखी ललिता सखी जु को होश दिलाती है कि ये सब आज आखिर हो क्या रहा है।सब सखियां अपने अपने वाद्य बजाना भूल प्रिया जु को इशारा करती हैं लेकिन आज श्यामा जु तो अपने प्रियतम का ही पक्ष लेने की ठान चुकी हैं।ना जाने अब क्या हो।।
क्रमशः

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