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मध्य रात्रि बरसात का शोर , आँचल सखी जु

मध्य रात्री का समय।सब निद्रा मग्न,केवल वर्षा का शोर।
राधे एक कक्ष से निकल शयन कक्ष की ओर जाने को बाहर आयी।
बाहर बहुत तेज वर्षा हो रही।
वो वर्षा की बूंदो को निहारने लगी,चित्त चंचल होने लगा.....
मोद बढने लगा,राधे वहाँ से कुछ खुले स्थान पर गई।
प्रत्येक बूंद मे श्यामाजु को श्यामसुन्दर दीख रहे,प्रियतम के स्पर्श की सोच अकेली अकेली मुस्कुरा रही.....
तभी विचार किया की केवल कुछ बूंदे पडते ही चली जाउगी,कुछ ही पल मे वो भीगने लगी।
मन होते हुए भी,न भीगने का विचार कर वापस चली।
कुछ कदम ही चली तभी सहसा रसराज ने आगे से आकर राह रोक ली.....
प्रियाजु,मन ही मन पुलकित हुई,किंतु बाहर से अपनी मुस्कान को छिपाती हुई,अपने बडे बडे लोचनो से सहमी सी नटवर को देखने लगी।
वर्षा ओर ओर तेज होती जा रही,तेज पवन चल रही,जिससे बूंदे नाचती सी प्रतीत हो रही।
केवल युगल नितांत अकेले,ऐसी सुन्दर ऋतु, सामने प्रियतम राह रोके खडे,तो बस प्रेम रस बह चला....
रसिक लाल ने प्रिय रसिकनी को अालिंगन मे भर लिया।
नभ मे चपला चमकी,मानो युगल के प्रेम रस को देखने को आतुर.....
किंतु आज राधे भयभीत न हुई,कुछ सजग अवश्य हो गयी...जिससे रासेश्वर की अधर रसपान की चेष्टाए विफल हो गयी.....
राधे दौडकर वहा से दूसरे स्थान पर आयी...श्वासे तेज हो गयी....नयन मूंद लिये।
पर रसराज यू ही थोडे मान जाते,पुनः वहा पहुचे...
विनती की कुछ ओर भीगने की।
बोले,राधे चलो न कितनी सुंदर वर्षा हो रही,कुछ पल ओर भीगते है...
राधेजु ने बहुत मना की,पर वो मनुहार करते रहे।
अंततः हाथो मे हाथ डाले पुनः दोनो चले,कुछ आवरण भी हटा दिये गये........तभी पवन का एक ठंडा झोका आया प्रियाजु सिहर उठी,ये देख श्यामसुन्दर ने हसकर प्रियाजु को अोर अधिक कस कर आलिंगन मे बाँध लिया.....
अब पुनः रसराज की अधरामृत पान की चेष्टा हुई,इस बार वो सफल हुए....
प्रियाजु के नयन बंद देख श्यामसुन्दर बोले नयन तो मिलाओ न राधे.....
सुनकर बहुत परिश्रम से प्रियाजु ने नयन खोले,खुलते ही उन व्याकुल नैनो से मिल गये वो.....
अधरो पर एक चंचल मुस्कान खिल गयी,अधीरता को बढाने वाली मुस्कान.....
अब तो ये नयन ,अधर दो न रहे....
रसराज के कर कमल भी नयी नयी चेष्टाए करने लगे,हर ओर से छूने की चेष्टाए.....
रात्री बढने लगी,युगल को भान ही नही....
वर्षा उसी भाँती प्रेम उन्माद बरसा रही,पवन भी यू ही सहयोग मे लगी....चपला अपनी पूरी शक्ति से दोनो को अधिक से अधिक समय निहारने की चेष्टा मे लगी.....
.....और सबसे बेखबर युगल प्रेमोन्माद मे डूबते जा रहे......
ब्रह्ममुहुर्त हो चला....
युगल श्रमित से हो चले,किंतु प्रेम पिपासा बढती ही जा रही......

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