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आवरण , मृदुला जु

आवरण
उनकी भगवत्ता हमारा जीवत्व उनकी विभुता हमारी क्षुद्रता उनके अपार गुण समूह हमारे अनन्त दोष पुंज उनका अपार सौंदर्य हमारी परम कुरूपता उनकी शुचिता हमारी मलिनता और ऐसे ही ना जाने कितने कितने आवरण ना जाने कबसे हैं उनके और हमारे मध्य ॥ उनकी दृष्टि में तो हम सदा परम निरावृत हैं ॥ हां ये समस्त दोष विकार मलिनता क्षुद्रता आदि आवरण ही तो हैं ॥ दो प्रेमियों के मध्य आवरण तो बाधक ही होता न ॥ वे तो पूर्ण निरावृत देखते हमें सदा परंतु हम ही इन दो आवरणों से युक्त दृष्टि से ही निहारते उन्हें ॥ वे हमें भगवान् ही दिखाई देते ॥ स्वयं में दोष दृष्टि रखना यद्दपि आध्यात्मिक पथ पर परम आवश्यक है परंतु एक सीमा के पश्चात् यह भाव केवल भेद की दूरी का ही सृजन करता है ॥ भक्ति में स्वदोष भान गुण है ॥ प्रेमी भी सदा स्वयं में दोष और अभाव ही अनुभव करता है परंतु वह भाव की एक अवस्था है ॥ जब प्रियतम सन्मुख होतें हैं उस समय तो केवल प्रेम ही प्रेम होता है मध्य ॥ उस क्षण भी यदि अपने विकार , दोष स्मृति में रहते हैं तब अर्थ यह कि अभी प्रेम से परे भी कुछ शेष है ॥ उस समय तो केवल प्रेमानुभूति ही शेष रहती है॥ सारे भेद जब मिट जाते हैं तभी प्रेम का विकास पूर्णतः संभव है ॥ संसार में भी आत्मीय संबंधों में परस्पर भेद मिट जाते है तभी संबंधों में प्रगाढ़ता आ पाती है ॥ जब तक औपचारिकता रहती है तब तक आत्मीयता कहाँ ॥ वे तो यही चाहते हैं सदा कि जीव सब कुछ विस्मृत कर उनके प्रति केवल प्रेम का अनुभव करे ॥ क्यों ....क्योंकि वे परम प्रेमी हैं और आवरण स्वीकार नहीं उन्हें ॥ वे तो यही चाहते कि हम उन्हें भी निरावृत ही देखें ॥उनके ऐश्वर्य विभुता आदि को तज केवल उन्हें परम प्यारा परम आत्मीय ही मानें जानें ॥ प्रेमी की दृष्टि में वे अपने लिये कभी ऐश्वर्य भाव देखना ही नहीं चाहते वरन ये तो पीडा दे देता उन्हें ॥ प्रेम के इस पथ में संसार से बहुत कुछ सीखा जा सकता है ॥बस केवल विषय परिवर्तित करना है प्रेम का ॥ संसार में माता पिता और संतान का आत्मीय संबंध पति पत्नी का मधुर संबंध मित्रता का गहन संबंध सभी परस्पर के बाह्य  आवरणों से परे होते हैं ॥ माता पिता बाहर चाहें जो भी हो परंतु घर में संतान के लिये केवल माता पिता होते है ॥ आत्मीयता का आधार ही अनौपचारिकता है ॥ प्रेम का एक आधार निरुपाधिता है ॥ समस्त उपाधियों से परे दिखाई दें वें हमें परंतु अतिशय प्रिय ॥ उपाधि आवरण तो बाधा हैं प्रेम में ॥

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