श्री राधा हृदय भावना
हम नित्य एक हैं ॥प्रियतम केवल एक ।क्या दो थे कभी सदा एक केवल एक ।एक ! जो दो से बना है ॥दो होते हुये एक साथ रहते नहीं प्यारे । हम दोनों दोनों से बने हैं । मैं मैं हूँ ही तब जब तुम और मैं । पर क्या यह भी कहना उचित होगा .....न । कैसे समझा जा सकता है प्यारे ॥मेरे लिये मैं अर्थात् दो तुम्हारे लिये तुम अर्थात् दो । यहाँ एक अस्तित्व पाता ही तब है जब दो हों ॥ न मैं केवल मैं हूँ न तुम केवल तुम ॥ मैं का अर्थ हम है तुम का अर्थ हम ॥न मुझमें केवल मैं हूँ न तुममें केवल तुम ॥न तुममें केवल मैं हूँ न मुझमें केवल तुम ॥ हम दो प्रतीत होते हैं पर हैं केवल एक और ऐसा एक जो दो से बना है ॥ हम नित्य युगल कहे जाते हैं न ॥नित्य युगल अर्थात् दो जो सदा से साथ हैं । पर क्या ये संपूर्ण अर्थ है प्यारे ॥नित्य युगल अर्थात् जो एक में भी नित्य दो ही हैं ॥ राधा अर्थात् दोनों श्याम अर्थात् दोनों ॥ नित्य युगल का अर्थ दो पृथक अस्तित्व जो सदा से संग नहीं वरन दो , जो दो हैं ही नहीं केवल एक हैं ॥ हम जहाँ भी होते हैं संपूर्ण ही होते हैं ॥हमारी संपूर्णता अक्षुण्ण है सदा ॥ एक में दो होने का अनुभव हैं हम पर दो फिर भी नहीं ॥ न हम केवल एक हैं ना केवल दो ॥ हमारा अदै्वत दै्वेत की सत्ता से अस्तित्व पाता है ॥ ऐसा दै्वेत जो केवल अदै्वेत से प्रकट हुआ है ॥
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