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श्यामा जु के श्रृंगार में श्यामसुंदर जु का माधुर्य , संगिनी जु

श्यामा जु के श्रृंगार में श्यामसुंदर जु का माधुर्य

प्रकृति आज अप्राकृतिक श्रृंगार करने बैठी है.....कैसा श्रृंगार और कहाँ.... 
अद्भुत अभिन्न युगल प्रेम की अद्भुत अभिनव अभिव्यक्ति।
अहा !!आसान नहीं पर एक प्रयास मात्र .....
सखी.....प्रकृति जो केवल प्रकृति नहीं है .....प्रियतमा है प्रेमिका है रस है माधुर्य रूप रव लावण्य संगीत रागिनी ....सब
सब कुछ जो श्रृंगार रूपवान नितनव दुल्हिन करती है अपने प्रियतम के लिए।ऐसा अद्भुत श्रृंगार जो केवल और केवल प्रेम में सम्भव होता है जहाँ अप्राकृतिक श्रृंगार की पूर्ण सामग्री भी प्राकृतिक नहीं सजनी।
आ देखें ...कैसा है यह श्रृंगार प्रकृति का सखी....
अति ही सुंदर पुष्पों से सुसज्जित एक आरसी जिसमें नख से शिख तक का प्रतिबिंब स्पष्ट झलक रहा है।
गौरांगी श्यामा जु के समक्ष रखी है श्रृंगार हेतु।सुंदर सुकोमल वदनी श्यामा जु चौंकी पर विराजित अपनी नीली झीनी साड़ी को निहार रहीं हैं।साड़ी के पल्लू से झलकती उनकी प्रेम रंगसनी लाल कंचुकी.....
अहा !!बदन को ढंके हुए अभी यह दो ही वस्त्र प्रिया जु ने धारण किए हैं और उनके नयनों में एक ही प्रियझाँकी जो संकेत कर रही है कि नीली साड़ी तो जैसे श्यामसुंदर हैं और लाल कंचुकी लाल जु का अति निर्मल अमृतमयी सरस प्रेम।स्पष्ट छवि झलक रही उनके नयनों में जैसे उनके समक्ष आरसी नहीं अपितु स्वयं श्यामसुंदर ही विराजित हैं।अद्भुत रसकांति माधुर्यमयी युगल जोड़ी जैसे परस्पर रस में डूबी हुई सी....
अभिन्न ....एकरस .....
सखियों ने तमाम साज सज्जा और श्रृंगार की सामग्री ला कर प्यारी जु के पास पड़े पाटे पर रखी है।
केशराशि अभी अधभीगी हुई सी और अलकें ढुरक ढुरक कर कभी प्रिया जु के कपोल तो कभी अधर चूम रही और भोली श्यामा जु समक्ष वेणु बजाते श्यामसुंदर को निहारती हुईं अपने गोरे बदन पर रोम रोम में उनका स्पर्श महसूस कर रहीं हैं।उन्हें ज्ञात ही नहीं कि कौन सखियाँ उनके आस पास हैं..... बस वो तो खुद को श्रृंगारित करते करकमलों को देख रहीं हैं और रस से सराबोर एक मुस्कान लिए जैसे भाव में ही श्रृंगार का लुत्फ ले रहीं हैं।
कोरे अनछुए से बदन पर सखी पहले उनके अति ही प्यारे मुख का दर्शन करती हुई उनके अधरों पर लाली लगा रही है।सखी की कोमल उंगली और श्यामा जु के गुलाब से भी कोमल अधर  .....अहा !लाली में एक माधुर्य सा भरा है और यह है श्यामसुंदर जु के अधरों का प्रेम माधुर्य।
सखी श्यामा जु का श्रृंगार करती है और श्यामा जु उस श्रृंगार के पीछे के माधुर्य का जो उनके प्रियतम श्यामसुंदर का वास्तविक श्रृंगार ही है।
अधरों के बाद नयनों में कज्जल रेख जिसका माधुर्य श्रृंगार प्रियतम श्यामसुंदर जु के काले कजरारे नेत्र हैं जिसे निरख श्यामा जु के अधरों पर श्वेत दंतकांति की लावण्ययुक्त हंसी सी तैर जाती है और हृदय में मधुर रस की तरंगें उछाल भरती फिर लहलहाने लगतीं हैं जैसे सखी ने श्यामा जु के हृदय मंडल पर श्यामसुंदर जु का माधुर्य रस उकेर दिया हो।
श्यामा जु के हृदय से मधुर चंचल भाव ऐसे पूरे बदन को स्पंदित कर जाते हैं जैसे यह प्रिय की रसमगी करांगुलियों की चंचल चाल है जो एक झनझनाहट के साथ माधुर्य से भरी श्यामा जु को सनसना देती है।
श्यामसुंदर जु के श्रृंगार का माधुर्य और उस श्रृंगार में श्यामा जु की माधुरी अति अद्भुत रसलावण्य से सनी यह श्रृंगार की घड़ी की रूपझाँकी सखी।

अहा !!क्या कहूँ कैसे....
जाने कब मैं युगल संगिनी इस मधुरातधिपति की यह श्रृंगार झाँकी अपने नम दृगों से निरखूंगी जिसका सम्पूर्ण माधुर्य स्वयं श्यामा जु के श्रृंगार में झलकता है।
क्रमशः ......

जयजय मधुराधिपति !!
जयजय माधुर्य रसभरिणी !!

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