प्रेम ही प्रेम को खींचता है
हां यह एक अद्भुत सत्य है ॥प्रेम प्रेम का आकर्षण करता है ॥ भाव से भाव गहराता है ॥ प्रेम स्वरूप हैं कौन ॥श्यामसुंदर ही तो प्रेम स्वरूप हैं ॥उनके दिव्य चिन्मय स्वरूप की तो बात ही क्या उनके इस धराधाम पर प्रकट सुंदर श्री विग्रहों से लेकर उनके छवि रूपों तक में एक अद्भुत चमत्कार है ॥भाव रहित हृदय लेकर दर्शन करने पर भी हृदय में भाव अंकुर उदित हो जाता है तो भाव भरे हृदय से निरखने से क्या न होगा ॥ हृदय में नेत्रों में प्रेम लेकर तनिक उन्हें निहारिये तो स्वयं उन्हें प्रेमरूप हो हृदय में उतरता अनुभव करेंगें ॥जितना अधिक निरखन होगा उतना ही भीतर समाते जायेगें वे प्रेमरूप ॥ ऐसा लगेगा जैसे उनका रूप पिघल पिघलकर हमारे नेत्रों से होता हुआ हृदय में भरता जा रहा है ॥साथ ही बढ रहा है प्रेम उन्हीं के प्रति क्योंकि वे प्रेम रूप ही है ॥प्रेम ही सौन्दर्य अपार है उनका तो भीतर प्रविष्ट रूप तत्वतः प्रेम ही है ॥ये रूप काम का नहीं वरन शुद्ध प्रेम का संवाहक स्वरूप तथा पोषक भी है ॥ जितना निरखन होगा उतना ही अधिक की प्यास बढती जायेगी ॥ संसार में कैसा भी सौन्दर्य हो अपने शिखर से सदैव अधोगामी गतिमान होता है और देखने वाले को तृप्ति का अनुभव कराते हुये धीरे धीरे विरस की ओर ही ले जाता है परंतु इन्हें जितना निहारिये प्यास मिटती ही नहीं तो तृप्ति संभव ही नहीं कभी ॥ एक इससे भी चमत्कार पूर्ण अनुभव यह होगा कि जैसे जैसे उनका रूप हमारे हृदय में प्रेम बन उतरेगा वैसे वैसे उनके रूप का माधुर्य सौन्दर्य भी बढने ॥ जितने सुंदर वे कल लगे थे आज उससे अधिक सुंदर दिखेंगे और कल और भी अधिक ॥ तो हमारे हृदय के भाव ने उनको अर्थात् प्रेम को खींचा अपनी तरफ ॥ उनका प्रेम परिपूर्ण है वर्धन तो उन्हें हमारी प्रीति का करना है सो स्वयं ही हृदय में विराजमान होकर स्वयं का आकर्षण करते हैं वे ॥
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